क्यों ब्रैडमैन और तेंदुलकर से भी ज़्यादा अनूठे हैं धोनी?

01:00 pm Oct 16, 2021 | विमल कुमार

कहते हैं कि आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते। क्रिकेट में महानता का आकलन करने के समय अक्सर आंकड़ों का ही सहारा लिया जाता है। सर डॉन ब्रैडमैन महानतम बल्लेबाज़ थे और रहेंगे क्योंकि कोई भी ना तो 99.94 के टेस्ट औसत के करीब पहुंचा है और ना ही शायद भविष्य में पहुंचे। 

ठीक उसी तरह से सचिन तेंदुलकर ने अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में सौ शतक लगाकर अपनी विरासत हमेशा के लिए पक्की कर ली। 

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में महेंद्र सिंह धोनी ने आईसीसी के हर फॉर्मेट का सबसे बड़ा कप जीता है। 2007 में टी20 वर्ल्ड कप जीत कर शुरुआत की, 2011 में वन-डे वर्ल्ड कप जीता और फिर 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी। ऐसा करने वाले वो इकलौते कप्तान हैं और संभवत: उनके इस रिकॉर्ड को शायद ही कोई कप्तान तोड़ पाये।

‘सबसे नाकाम’ कप्तान आखिर कैसे बन गया महानतम?

बावजूद इसके आईपीएल में तो धोनी महानतम कप्तान नहीं थे। कम से कम आंकड़े तो यही कहानी कहते हैं। 2021 में चेन्नई को चौथा ख़िताब दिलाने के बावजूद भी धोनी अपने चेले रोहित शर्मा से एक ख़िताब पीछे चल रहे हैं। लेकिन, इस तर्क को आप क्या दुनिया का कोई भी क्रिकेट प्रेमी या जानकार नहीं मानेगा। और इसकी ठोस वजह है जो आंकड़े पूरी तरह से बयान नहीं कर पाते हैं। 

आईपीएल के इतिहास में धोनी से ज्यादा फाइनल 10 (9 चेन्नई के लिए और 1 पुणे के लिए) किसी भी कप्तान ने नहीं खेले। धोनी को 40 फीसदी मौकों पर कामयाबी मिली लेकिन 60 फीसदी मौके पर तो वो चूके! 

ये तो आंकड़े कहते हैं लेकिन इसलिए आंकड़ों पर हमेशा आंख-मूंद कर यकीन नहीं किया जाता है। अब आंकड़े ये तो नहीं कहते हैं कि धोनी को 4 ख़िताब से हाथ इसलिए धोना पड़ा कि उनकी टीम दो बार 1 रन के अंतर से फ़ाइनल में हारी और दो बार आखिरी ओवर में (एक आखिरी गेंद पर 2008 में राजस्थान रॉयल्स के ख़िलाफ़ और 2012 में कोलकाता नाइट राइडर्स के ख़िलाफ़ दूसरी आखिरी गेंद पर)। 

आंकड़े फटाफट क्रिकेट में धोनी की महानता को बयान करने के लिए दो चैंपियंस लीग में टाइटल जीतने का भी ज़िक्र नहीं करेंगे जो दुनिया के किसी भी कप्तान ने हासिल नहीं किया है।

जी हां, भूल गए चैंपियस लीग का फॉर्मेट जहां पर हर देश की टॉप 2 टीमें एक ख़ास टी20 लीग में भिड़ती थीं। यानि वो अपने तरीके का एक वर्ल्ड कप हुआ करता था दुनिया भर की सबसे बेहतरीन घरेलू टीमों के बीच। 

धोनी ने अनूठा फॉर्मूला इजाद किया

लेकिन, धोनी की महानता की विरासत इन सूखे और ठंडे आंकड़ों की मोहताज नहीं है। धोनी की सबसे बड़ी बात ये है कि उन्होंने क्रिकेट के इस नये फॉर्मेट में अपना नया व्याकरण गढ़ा। जहां पूरी दुनिया के खेल डेटा एनालिटिक्स पर ज़ोर दे रहे है, धोनी अब भी परंपरावादी तरीके से गट फीलिंग पर कप्तानी करते हैं। 

इसलिए अब भी वो टीम मीटिंग में यकीन नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे कोई फायदा नहीं होता है और उल्टे खिलाड़ी ऐसे फॉर्मल माहौल में खुद को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते हैं। इसलिए वो अभ्यास सत्र के दौरान ही क्रिकेट की चर्चा करते हैं और रणनीति बनाते हैं।

दोस्ती नहीं रखती कोई मायने

धोनी ने पूरी दुनिया को ये दिखाया है कि भले ही टी20 फॉर्मेट को युवा जोश और असाधारण तरीके से फिट खिलाड़ियों का ही खेल माना जाता है लेकिन आप अनुभव और कौशल को इससे नीचे नहीं रख सकते हैं। 

धोनी ने ये भी फिर से सिखाया कि अगर आप काबिल खिलाड़ी पर लंबे समय तक भरोसा रखेंगे तो वो आपको निश्चित तौर पर एक दिन फायदा दिलायेगा। 

2018 के फाइनल में शेन वॉटसन ने जो हैरत-अंगेज पारी खेलकर मैच-जिताया वो उसी धोनी-भरोसे का नतीजा था वरना पूरे टूर्नामेंट में उससे पहले वॉटसन के बल्ले पर गेंद भी ठीक से नहीं आ रही थी। 

रॉबिन उथप्पा को जब हर किसी ने 37 साल की उम्र में ख़त्म मान लिया तो धोनी ने उनमें फिर से युवा जोश का संचार किया और आप देखिये दो नॉक आउट मैचों में उथप्पा ने क्या कमाल की पारी खेली।

इतना ही नहीं, जब उथप्पा का चेन्नई में चयन हुआ तो सबसे पहली बात धोनी ने उन्हें ये कही कि उन्हें टीम में लाने में उनका कोई रोल नहीं है और ये फैसला मैनेजमेंट और कोच का है। 

दरअसल, धोनी अपने पुराने दोस्त उथ्प्पा को ये संदेश साफ-साफ देना चाहते थे कि वो दोस्ती के बल पर नहीं काबिलियत के दम पर इस टीम में आये हैं। 

दुनिया लाख धोनी और रैना की दोस्ती की कहानी की मिसाल देती रहे लेकिन धोनी अपने सबसे चहेते खिलाड़ी रैना को आखिरी कुछ मैचों में ड्रॉप करने में नहीं हिचकिचाये क्योंकि उन्हें साफ दिख रहा था कि इससे टीम का संतुलन बिगड़ रहा है।

7वें नंबर पर लुढ़के, फिर यही अंक कैसे बना लकी मस्कट?

आईपीएल में धोनी की चार ट्रॉफी में 2021 की ट्रॉफी सबसे यादगार होगी क्योंकि यहां पर वो बूढ़े शेरों के साथ उतर रहे थे। 2018 में उनके खिलाड़ियों की औसत उम्र करीब 31 थी जबकि बाकी दूसरी टीमों की 27.5। 

इसके बावजूद 4 साल के दौरान इस टीम ने दो खिताब जीते। अगर किस्मत ने साथ दिया होता तो शायद ये संख्या तीन भी हो सकती थी। 

सबसे अहम बात यह है कि धोनी ने कैसे चैंपियन टीम को पिछले साल धूल चाटते देखा लेकिन हौसला पस्त होने नहीं दिया। ये वही टीम थी जो पिछले साल 7वें नंबर पर आयी थी। चेन्नई के लिए ऐसे शर्मनाक हालात कभी नहीं हुए थे क्योंकि वो इकलौती ऐसी टीम थी जिसने हर साल प्ले-ऑफ में जगह बनायी थी। 

धोनी और चेन्नई का अभिमान पिछले साल टूटा था और किसी को ये भरोसा नहीं था कि धोनी फिर से इस टीम के साथ वापसी भी कर सकते हैं। 

लेकिन, उन्होंने की। तभी तो चेतेश्वर पुजारा जीत के बाद सोशल मीडिया में ट्रेंड हो रहे थे। फैंस की दलील थी ये धोनी का कमाल है कि पुजारा जैसा खिलाड़ी आईपीएल जीतने वाली टीम का हिस्सा है जबकि विराट कोहली, एबी डिविलियर्स और क्रिस गेल जैसे दिग्गज अब तक ट्रॉफी पर हाथ नहीं लगा सके हैं।