अगर सिर्फ़ जादुई आँकड़ों के बूते क्रिकेट में खिलाड़ियों की महानता को संपूर्णता का दर्जा स्वाभाविक तौर से मिलने लगता तो जैक कैलिस शायद गैरी सोबर्स से ज़्यादा महान होते या फिर अगर स्पिनर की बता करें तो शेन वार्न को नहीं बल्कि मुथैय्या मुरलीधरण को इतिहास का महानतम स्पिनर कहा जाता है। लेकिन, क्रिकेट में आँकड़े आपकी महानता को एक ख़ास मुकाम तक ही ले जा पाते हैं। महानता को संपूर्णता का दर्जा पाने के लिए उसे कई कसौटियों से गुज़रना पड़ता है। महान कपिल देव के 434 टेस्ट विकेट के रिकॉर्ड का पीछा करने के बाद फिर से ये सवाल भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के ज़ेहन में आ रहा है कि क्या वाक़ई अश्विन अनिल कुंबले के बाद भारत के दूसरे सबसे शानदार गेंदबाज़ हैं।
अगर श्रीलंका के मुरलीधरण ने टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा विकेट हासिल करके अपना नाम इतिहास में हमेशा के लिए सुरक्षित कर लिया तो शेन वार्न को शायद अपनी महानता का लोहा मनवाने के लिए 700 विकेट के क्लब में भी जाना ज़रूरी नहीं होता। अगर वार्न ने 500 या 600 विकेट ही झटके होते तब भी उनकी महानता संपूर्ण थी क्योंकि वार्न जैसे दिगग्ज की महानता को किसी आंकड़ों के ज़रिए देखना भूल होती।
पीढ़ी दर पीढ़ी वार्न ने अपने ऐक्शन और जादू से ना जाने कितने युवा खिलाड़ियों को लेग स्पिन गेंदबाज़ी करने के लिए प्रेरित किया, उसकी मिसाल शायद ही आपको क्रिकेट में दोबारा देखने को मिले। अगर मुरली 800 के क्लब में इकलौते स्पिनर या फिर गेंदबाज़ हैं तो 700 के क्लब में वार्न का भी यही हाल है। इन दोनों के समकालीन अनिल कुंबले भी 600 के क्लब में इकलौते स्पिनर हैं। हालांकि उनके साथ इस क्लब में जेम्स एंडरसन जैसा एक महान तेज़ गेंदबाज़ भी है। 500 विकेट का क्लब भी एक ऐसी जगह है जहां फिलहाल कोई भी स्पिनर नहीं दिखाई देता है जहां पर तीन तेज़ गेंदबाज़ मौजूद हैं और यही वह जगह है जो अश्विन के लिए अगला ठिकाना हो सकता है।
अश्विन ना सिर्फ़ दुनिया के 9वें सबसे कामयाब गेंदबाज़ हैं बल्कि श्रीलंका के ख़िलाफ़ होने वाले दूसरे टेस्ट मैच के दौरान वो साउथ अफ्रीका के डेल स्टेन (439 विकेट) को पछाड़कर एक पायदान और ऊपर चले जायेंगे। इसके बाद उनका लक्ष्य 500 विकेट का क्लब ही होगा।
बहरहाल, मौजूदा समय में अश्विन की कामयाबी की असाधारण रफ्तार के बारे में बात की जाए तो आप भौचक्के रह सकते हैं! कपिल देव के 434 विकेट के रिकॉर्ड को अश्विन ने 1 या 2 मैच पहले नहीं बल्कि पूरे 45 मैच पहले हासिल किया और ये एक अनोखी बात है क्योंकि 45 मैच तो अच्छे से अच्छे खिलाड़ियों को नसीब तक नहीं होते हैं। अब खुद ही सोचिये कि भारत के महान गेंदबाज़ों में से वीनू मांकड़ ने तो 44 मैच ही खेले।
अगर पिछले 4 सालों में अश्विन के खेल पर नज़र डाली जाए तो आप पायेंगे कि सिर्फ़ 4 मौक़ों पर ही उन्होंने पारी में 5 विकेट लेने का कमाल दिखाया है लेकिन इस दौरान उन्होंने 125 विकेट महज 28 मैचों में झटके हैं।
इस दौरान उनका औसत 21.04 उनके करियर औसत 24.26 से बेहतर हुआ है तो उनका स्ट्राइक रेट भी 51.2 उनके करियर स्ट्राइक रेट 52.5 से बेहतर है। अश्विन जो अब 36वें वसंत की तरफ़ बढ़ते दिख रहे हैं और हाल के सालों में फिटनेस के फ्रंट पर जूझते दिखे हैं, उनके लिए क्या ये वाक़ई संभव है कि वो 500 विकेट का रास्ता भी इतनी सहज़ता से पार कर लेंगे?
“बहुत कुछ निर्भर करेगा उनकी फिटनेस पर। 500 क्या वो 600 का फिर 700 भी पहुँच सकते हैं। लेकिन अगर वो एक विकेट भी आगे से ना लें तब भी तो उनकी महानता की विरासत सुरक्षित है। इसकी वजह है कि वो भारत के बेहद उम्दा गेंदबाज़ों में से एक रहे हैं और हमारे खेल को आगे लेकर गये हैं, और ये शानदार बात है,” टीम इंडिया के पूर्व गेंदबाज़ हरभजन सिंह ने कुछ ही हफ्ते पहले इस लेखक के साथ एक इंटरव्यू में ये बात कही थी, जो आज भी अश्विन पर शायद पूरी तरह से सटीक बैठती है।
हरभजन वही महान गेंदबाज़ हैं जिन्हें अपने करियर के आखिरी दौर में अश्विन से कड़ा मुक़ाबला झेलना पड़ा था और उन्हें कई मौकों पर टीम और प्लेइंग इलेवन से बाहर रहना पड़ा था। आज भी लोगों के ज़ेहन में हरभजन की हैट्रिक और 2001 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ तीन मैचों की सीरीज़ में 32 विकेट इस बात का आभास देते होंगे कि वो अश्विन से भी बेहतर थे। लेकिन, अश्विन के रिकॉर्ड 9 मौकों पर सबसे ज़्यादा मैन ऑफ द सीरीज़ जीतने के अवार्ड को कैसे नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। भारत तो छोड़िये क्रिकेट इतिहास में सिर्फ मुरलीधरण ही उनसे इस मामले में आगे हैं।
पिछले तीन दशक में दिग्गज भारतीय स्पिनरों ने घरेलू ज़मीं पर ऐसा दबदबा कायम रखा है कि उन्हें चित्त करना टीम इंडिया को हराने के बराबर होता है। नब्बे के दशक में कुंबले ने जो परंपरा शुरू की उसे हरभजन ने आगे बढ़ाया और आज अश्विन उसे बिल्कुल एक अलग स्तर पर ले गये हैं। अगर कुंबले और हरभजन के दौर में भारत ने घरेलू ज़मीं पर 3-3 टेस्ट सीरीज़ में हार का मुंह देखा तो अश्विन के युग में सिर्फ एक बार वो भी इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 2012 में सीरीज़ में हार देखी है।
“मेरे लिए निजी आँकड़ों की कोई ख़ास अहमियत नहीं हैं। मुझे इस बात से फर्क पड़ता है कि क्या हमारा क्रिकेट आगे गया या नहीं। चाहे वो कुंबले हों या मैं या फिर अश्विन, भारतीय क्रिकेट की प्रगति मायने रखती है क्योंकि खिलाड़ी तो आते और जाते रहेंगे,” ये हरभजन का कहना है।
भज्जी का ये तर्क शायद अकाट्य है और महान टीमों की कामयाबी की सबसे बड़ी वजह भी। आप चाहें कितने भी विकेट हासिल कर लें अगर आपकी टीम का जलवा बरकरार नहीं है तो उस कामयाबी के मायने बहुत ज़्यादा नहीं होते हैं। अश्विन ने अब तक अपने करियर में शानदार उपलब्धियाँ हासिल की हैं लेकिन कपिल देव के इस रिकॉर्ड को पार करने के बाद उन्होंने आने वाली पीढ़ी की नज़रों में अपनी महानता का बीमा तो निश्चित तौर पर करवा लिया है।