अन्नदाताओं को खालिस्तानी बताने वालों के चेहरे ज़रूर पहचानिए!

02:31 pm Nov 28, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

पिछले कई मौक़ों की तरह इस बार भी सोशल मीडिया पर एक ‘जमात’ खुलकर मोदी सरकार के बचाव में खड़ी हो गई है। इस ‘जमात’ में बीजेपी के नेता, दक्षिणपंथी विचारधारा का समर्थन करने वाले और मीडिया का एक वर्ग शामिल है, जो कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे किसानों को खालिस्तानी बता रहा है। 

ये वो वर्ग है जो मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बोलने वाले हर शख़्स को पाकिस्तान परस्त, देशद्रोही बताता है, यही काम इस वर्ग ने सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ हुए आंदोलनों के दौरान किया और बिलकुल यही काम यह इस वक़्त कर रहा है।

ये तबक़ा ये भी भूल गया है कि वह इस बार उन किसानों को खालिस्तानी बताने पर तुला हुआ है, जिनके उपजाए अन्न को खाकर वह जिंदा है। 

खालिस्तानी, शाहीन बाग़ कराया ट्रेंड 

पंजाब के किसानों के दिल्ली पहुंचते ही ट्विटर पर खालिस्तानी और शाहीन बाग़ ट्रेंड करा दिया गया। हरियाणा की बीजेपी सरकार ने बड़े-बड़े पत्थर बॉर्डर पर रखवा दिए, तमाम ज़ुल्म किए लेकिन बंजर धरती से भी अन्न उगा देने वाले किसानों को वह नहीं रोक सकी। इस दौरान कई किसान नेताओं ने कहा कि क्या वे पाकिस्तान से आए हैं जो उन्हें दिल्ली नहीं आने दिया जा रहा है। 

जब किसान यहां पहुंच गए तो टीवी के एक वर्ग ने और सोशल मीडिया पर बैठे दक्षिणपंथी कारकूनों ने ऐसा माहौल बना दिया गया कि ये किसान खालिस्तानी हैं, यानी देशद्रोही हैं। ऐसे कुछ ट्वीट देखिए।

पश्चिम बंगाल बीजेपी के सह प्रभारी और बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने एक वीडियो ट्वीट किया। वीडियो में यह दावा किया जा रहा कि एक किसान कह रहा है कि हमने इंदिरा ठोक दी, मोदी...। इस वीडियो में ये कहीं से नहीं पता चलता कि वो किसान ऐसा कह रहा है कि हमने इंदिरा ठोक दी, मोदी...। 

इस वीडियो को लेकर सवाल खड़ा होता है। सवाल यह है कि वीडियो में अपनी पूरी रौ में बोल रहा व्यक्ति जैसे ही इंदिरा वाला बयान आता है, उसकी स्क्रीन को फ्रीज कर दिया जाता है। इससे शक पैदा होता है। कोई भी इसे दो बार सुने, तो उसे यह शक ज़रूर पैदा होगा। क्योंकि किसान अगर आगे इंदिरा वाली बात कह रहा है तो उसे उसी तरह दिखाया जाना चाहिए, जैसे उसके बयान को शुरू से दिखाया जा रहा है। जी न्यूज़ का कहना है कि किसान ने यह बात उसके संवाददाता से कही है। 

लेकिन जब आईटी हेड ने वीडियो ट्वीट कर दिया तो बाक़ी कारकूनों की जिम्मेदारी इसे वायरल करने की थी, उन्होंने इसे लपक किया और किसानों के लिए वाहियात बातें करनी शुरू कर दीं। 

आचार्य विक्रमादित्य नाम के ट्विटर यूजर योगेंद्र यादव की फ़ोटो को ट्वीट कर लिखते हैं कि ये वही लोग हैं जो #CAA #NRC के नाम पर शाहीन बाग़ में आंदोलन कर रहे थे। 

ख़ुद को राष्ट्रवादी बताने वाले अमन चौहान एक फ़ोटो को ट्वीट कर कहते हैं कि ये किसान नहीं हैं, खालिस्तानी हैं। इस फ़ोटो में कुछ किसान धरने पर बैठे हैं और पीछे से भिंडरावाले का फ़ोटो है। ये नहीं पता कि ये लोग कृषि क़ानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान हैं या कोई और। 

एक ट्विटर यूजर किसी स्क्रीनशॉट के साथ दावा करती हैं कि सिख फ़ेडरेशन ने दिल्ली चलो आंदोलन के लिए कनाडा से 1 लाख डॉलर जुटा लिए हैं। उस स्क्रीनशॉट में लिखा है कि दिल्ली चलो आंदोलन के दौरान ये लोग इंडिया गेट पर खालिस्तान का झंडा लहरा सकते हैं। 

ऐसे लोगों को जवाब देने के लिए दूसरी ओर से लोग मैदान में उतरे। पत्रकार साहिल मुरली ने ट्वीट कर कहा कि भारत की नई टेक्स्ट बुक आई है, जिसमें विरोध में बोलने वाले पत्रकारों, किसानों और छात्रों को सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को गालियां दी जाती हैं। 

वकील अमित दत्ता नाम के ट्विटर यूजर जो पेशे से वकील हैं, वो कहते हैं कि कुछ न्यूज़ चैनल किसानों को खालिस्तानी बताकर बेहद ख़तरनाक खेल खेल रहे हैं। 

जे सिंह नागरा दो फ़ोटो ट्वीट कर पूछते हैं कि क्या ये खालिस्तानी पुलिस है क्योंकि उसमें आंदोलनकारी सिख पुलिस कर्मियों को पानी पिला रहे हैं और खाना खिला रहे हैं। 

हिंदुत्व वॉच नाम के यूजर ने लिखा कि बीजेपी की ट्रोल आर्मी किसान आंदोलन का समर्थन करने पर पंजाबी गायकों को भी खालिस्तानी बता रही है। 

सिखों, किसानों को खालिस्तानी बताने पर दिल्ली बीजेपी के सचिव इम्प्रीत सिंह बख़्शी आगे आए और उन्होंने कहा कि किसानों को खालिस्तानी न कहा जाए। उन्हें कांग्रेस, अकाली दल और आप नेताओं ने गुमराह किया है। 

इस तरह की हरक़तें करके पंजाब-हरियाणा के किसानों को देश के बाक़ी किसानों के सामने देशद्रोही साबित करने की कोशिश की जा रही है। कुछ न्यूज़ चैनल सवाल पूछ रहे हैं कि आख़िर इन दोनों राज्यों के किसानों को ही परेशानी क्यों है। 

आपको याद होगा कि शाहीन बाग़ के आंदोलन को किस तरह खुलकर तौहीन बाग़ कहा गया था और ये भी कहा था इसमें बैठे लोग जिहादी, पाकिस्तानी हैं और हिंदुस्तान के टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहते हैं। जबकि उस आंदोलन के दौरान कभी किसी तरह की हिंसा नहीं हुई। 

इससे होगा ये कि देश के दूसरे हिस्सों में बैठे लोग पंजाब-हरियाणा के किसानों को देश का दुश्मन मानने लगेंगे और नफ़रत की खाई और बढ़ेगी। किसानों ने साफ कहा है कि वे इन क़ानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं और तब तक दिल्ली से नहीं जाएंगे। ऐसे में किसानों के ख़िलाफ़ ये एजेंडा आगे और चलेगा, इसमें कोई शक नहीं है। हां, लेकिन अगर कोई देश के ख़िलाफ़ बात करता है तो एजेंसियां जांच कर उसे सख़्त सजा दें लेकिन एडिटेड वीडियो या पुराने फ़ोटो या फिर किसी बयान के कारण किसानों के पूरे आंदोलन को बदनाम करने का काम देश में बहुत ख़राब माहौल बना रहा है।