शराब सस्ती करने पर मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार अपनों के ही निशाने पर आ गई है। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री एवं बीजेपी की फायरब्रांड नेता उमा भारती के अलावा भोपाल की बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने भी शराबबंदी को लेकर आवाज बुलंद की है।
बता दें, शिवराज सिंह चौहान सरकार ने पिछले सप्ताह नई आबकारी नीति लागू की है। नई नीति एक अप्रैल 2022 से लागू होने वाली है। नई नीति में सरकार ने ऐसे प्रावधान किए हैं, जिनसे राज्य में शराब काफी सस्ती हो जाएगी।
सरकार ने करोड़पतियों को घरों में ही बार की स्थापना की आजादी भी दे दी है। आबकारी महकमे को 50 हजार रुपये साल की मामूली फीस चुकाकर लोगों को घर में बार के लिए होमबार लाइसेंस देने का फ़ैसला लिया है।
घर में अधिकतम शराब और बीयर का स्टॉक रखने की सीमा को भी बढ़ाकर चार गुना तक करने का निर्णय राज्य सरकार ने ले लिया है।
सरकार की दलील
शराब सस्ती करने को लेकर शिवराज सरकार की दलील है, ‘शराब महंगी होने से मिलावटी और अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा था। जहरीली शराब की बिक्री के मामले भी सामने आये। कई मौतें इससे हुईं।’
सरकार ने नई आबकारी नीति में आदिवासियों को महुए की शराब घरों में बनाने की आजादी भी दे दी है। महुए की शराब टैक्स फ्री होगी। अंगूर की वाइन बनाना भी करमुक्त होगा।
नई आबकारी नीति के अनुमोदन के बाद से राज्य की बीजेपी सरकार विरोधी दलों और शराब को नापसंद करने वालों के निशाने पर है। तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं। आरोप है कि नई नीति के बाद राज्य में शराब की बिक्री बढ़ जायेगी।
बिक्री बढ़ने और सुरा का अधिक सेवन करने से क्राइम बढ़ेगा, इस तरह की आशंकाएं भी जताई जा रही हैं।
विरोधियों के अलावा शिवराज सिंह चौहान सरकार अब अपने ही दल के नेताओं के निशाने पर आ गई है।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती मार्च 2021 से शराब और नशेबंदी को लेकर मुखर हैं। वे शराब बंदी के लिए विधिवत आंदोलन चलाने की घोषणा भी कर चुकी हैं। हालांकि मार्च 2021 और 15 जनवरी 2022 से विधिवत आंदोलन करने के अपने एलान पर अमल उन्होंने नहीं किया।
उमा भारती ने नई आबकारी नीति को कैबिनेट की हरी झंडी मिलने के बाद शराब और नशेबंदी के लिए पुनः झंडा उठा लिया है। उमा ने अपने आंदोलन की नई तारीख 14 फरवरी 2022 घोषित कर दी है।
आरएसएस का नाम लेकर बनाया दबाव
उमा भारती ने मध्य प्रदेश में शराबबंदी से जुड़े अपने अभियान को लेकर शुक्रवार को एक के बाद एक छह ट्वीट किए। एक ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘शराबबंदी और नशाबंदी के लिए उनकी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवकों, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से चर्चा हो गई है। शराबबंदी-नशाबंदी मध्य प्रदेश में होकर रहेगी।’
उमा भारती ने अन्य ट्वीट में कहा, ‘हमारा शराबबंदी-नशाबंदी अभियान सरकार के खिलाफ नहीं है, शराब और नशे के खिलाफ है। सरकार में बैठे हुए लोगों को समझा पाना भी एक कठिन काम है।’
भारती ने अपने अन्य ट्वीट्स में कहा है, ‘उन कठिनाई के कुछ हिस्से अभी भी मौजूद हैं। कोरोना के नए वैरिएंट के चलते जनभागीदारी नहीं हो सकती। इस अभियान में राजनीतिक निरपेक्ष लोग ही भागीदारी करें। यह निश्चित करना चुनौतीपूर्ण कार्य है।’
उन्होंने कहा है, ‘मैं अभी गंगा अभियान में संलग्न थी, मध्य प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी-नशाबंदी अभियान प्रारंभ करने में कठिनाई थी।’
प्रज्ञा सिंह भी मैदान में
भोपाल की बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी मैदान में उतर आयी हैं। उमा भारती के प्रयासों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा है, ‘दीदी जो कहती हैं, वह करती हैं।’
शराबबंदी के सवाल पर प्रज्ञा ने कहा, ‘शराब और नशाबंदी होनी ही चाहिए। यह प्रवृत्ति समूचे समाज को सर्वनाश के मार्ग पर ले जाती है। घर के घर शराब और नशे की प्रवृत्ति से बर्बाद हो रहे हैं।’
‘इनकम बढ़ाने के लिए बैकडोर एंट्री’
मध्य प्रदेश सरकार और उसके मुखिया शिवराज सिंह अपने इस संकल्प पर अडिग नज़र आये हैं कि नई शराब की दुकानें सूबे में नहीं खुलेंगी। मगर जिस तरह के बैकडोर रास्ते निकाले गए हैं, उससे शराब की खपत कम होने के बजाए बढ़ेगी।
इतना जरूर माना जा रहा है कि अन्य सूबों की तरह शराब सस्ती किए जाने और घर में बनाई जाने वाली महुआ की शराब को करमुक्त करने से जहरीली एवं अवैध शराब के कारोबार पर अंकुश लगेगा।
ढाई लाख करोड़ है कर्ज
मध्य प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढ़कर ढाई लाख करोड़ के पार पहुंच गया है। सरकार के अपने आय बढ़ाने के साधनों में शराब सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। पंजीयन से भी बड़ी कमाई होती है। इसके अलावा पेट्रोल-डीजल पर कर और उपकर आय का माध्यम है।
ऐसे हालातों में शराब से आय बढ़ाने के प्रयासों का अपने ही लोगों द्वारा विरोध किया जाना, सरकार की परेशानी बढ़ाने का सबब बन रहा है।
सरकार में बैठे एक जिम्मेदार अधिकारी ने ‘सत्य हिन्दी’ से ऑफ द रिकार्ड कहा, ‘जीएसटी लागू होने के बाद सरकार के अपने आय के स्रोत बेहद कम हो चुके हैं। केन्द्र के रहमो-करम से ही कामकाज चल पा रहा है। रही-सही कसर कोरोना ने पूरी की हुई है। इन सब हालातों के बीच राजस्व बढ़ाने के उपायों पर अपनों ही द्वारा आंखें तरेरना सरकारी खजाने के लिए हानिकारक है।’
वित्तीय हालात ख़राब
अफसर ने कहा, ‘कर्ज पर ब्याज में काफी बड़ी राशि जा रही है। केन्द्र द्वारा हाथ खींचे जाने और मैचिंग ग्रांट की व्यवस्था नहीं कर पाने से अनेक महत्वपूर्ण विकास कार्य रुके हैं। ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले दिनों में अपने कर्मचारियों को तनख्वाह और रिटायर्ड कर्मचारियों को पेंशन बांटना भी मुश्किल हो जायेगा।’