अब इस बात में कोई गुंजाइश नहीं बची है कि बीजेपी महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को अस्थिर करने के लिए कोई भी हथकंडा आज़माना बाक़ी छोड़ेगी और ऐसे लोगों को भी खुलकर ‘आशीर्वाद’ देगी, जो महाराष्ट्र सरकार के ख़िलाफ़ बोल सकते हों।
फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह की मौत के मामले में ठाकरे सरकार को बदनाम करने के लिए निचले स्तर तक जा चुके पत्रकार अर्णब गोस्वामी और अभिनेत्री कंगना रनौत का उसने चार क़दम आगे बढ़कर साथ दिया।
अर्णब के पक्ष में गृह मंत्री से लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक के बयान आए और कई राज्यों में बीजेपी और हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता सड़क पर उतरे तो कंगना को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जेड सिक्योरिटी की सुरक्षा दी।
अब ताज़ा वाकया यह हुआ है कि सुशांत की मौत के मामले में उद्धव ठाकरे सरकार के ख़िलाफ़ अनाप-शनाप बयानबाज़ी करने वाले पत्रकार अर्णब गोस्वामी के विरोध में आवाज़ उठाने वाले शिव सेना विधायक प्रताप सरनाइक के घर और दफ़्तर पर ईडी ने छापेमारी की है। शिव सेना ईडी के इस क़दम से बौखला गई है।
शिव सेना सांसद संजय राउत ने बीजेपी का नाम लिए बिना कहा है कि अगर आपने आज ये काम शुरू किया है तो हम इसे ख़त्म करना जानते हैं। ये एक नया अध्याय है, जब कभी साथ रहे ये दोनों दल अब एक-दूसरे के समर्थकों पर अपनी ताक़त का इस्तेमाल करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं।
अर्णब के पक्ष में प्रदर्शन करते महाराष्ट्र बीजेपी के कार्यकर्ता।
ठाकरे सरकार निशाने पर
आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी मां की आत्महत्या के मामले में जब अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी हुई थी तो बीजेपी ने सीधे उद्धव ठाकरे पर हमला बोला था। पूरी बीजेपी ठाकरे को ‘सोनिया सेना’ बताने पर तुली हुई थी और इस क़दम की तुलना आपातकाल से की थी। जबकि इस मामले में अन्वय नाइक की पत्नी और बेटे की शिकायत के बाद पुलिस ने कार्रवाई की थी।
वैसे, पिछले साल जब से महा विकास अघाडी की सरकार बनी है, तब से हर दिन ये पूछा जाता है कि बीजेपी इस सरकार को कितने दिन चलने देगी। क्योंकि बीते कुछ सालों में कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश तक विपक्षी दलों की सरकारों का क्या हश्र हुआ है, यह किसी से छिपा नहीं है।
कंगना का भी दिया साथ
कंगना रनौत ने भी उद्धव ठाकरे से तू-तड़ाक की, बेहूदगी की हदें पार कीं, मुंबई को पीओके बताया तब भी बीजेपी खुलकर कंगना के पक्ष में खड़ी हो गई, जबकि शिव सेना ने उसे समझाने की कोशिश की थी कि कंगना जो कुछ कह रही हैं, वह ठाकरे या महा विकास अघाडी सरकार का नहीं बल्कि मुंबई, महाराष्ट्र का अपमान है। लेकिन बीजेपी ने बावजूद इसके कंगना का खुलकर साथ दिया और यही काम अर्णब के मामले में भी किया।
और बढ़ेगी जंग
कभी सालों तक साथ भगवा राजनीति करते रहे ये दोनों दल अब महाराष्ट्र में एक-दूसरे से जमकर दो-दो हाथ कर रहे हैं। संजय राउत ने बीजेपी का नाम लिए बिना कहा है कि उसे महाराष्ट्र की सत्ता में आने का सपना अगले 25 तक के लिए भूल जाना चाहिए। इसका मतलब साफ है कि शिव सेना महा विकास अघाडी के दोनों दलों- एनसीपी और कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन को और मजबूत बनाने के लिए जुटेगी।
देखिए, संजय राउत से खास बातचीत-
दूसरी ओर, बीजेपी की मुश्किलें बढ़ रही हैं। कुछ महीने बाद बृहन्मुंबई महानगर पालिका के चुनाव होने हैं। इसमें महा विकास अघाडी सरकार के तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे, ऐसे में बीजेपी का भट्ठा बैठना तय है।
बीजेपी जानती है कि जब तक वह महा विकास अघाडी सरकार को नहीं गिराती, महाराष्ट्र में उसका राजनीतिक कल्याण नहीं हो सकता। इसलिए, बीजेपी नेता महीने-दो महीने में यह बयान देकर अपने कार्यकर्ताओं को दिलासा देते रहते हैं कि ठाकरे सरकार गिर जाएगी।
कंगना रनौत और अर्णब गोस्वामी, ये दो ऐसे किरदार रहे हैं, जिन्होंने पिछले कुछ महीने में बीजेपी-शिव सेना के सालों से चले आ रहे संबंधों को बर्बाद कर दिया। भले ही ये दोनों दल अलग हो गए थे लेकिन हालात बहुत ख़राब नहीं थे। लेकिन जब अर्णब के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर शिव सेना के विधायक के ठिकानों पर ईडी छापे मारने जाएगी, तो इसके बाद इसे बिलकुल भी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए कि बीजेपी किस हद तक जा सकती है।
बीजेपी बस यह देख रही है कि अर्णब के ख़िलाफ़ खुलकर कौन बोल सकता है। उसे दो लोग मिले और उसने दोनों के सिर पर खुलकर हाथ रखा है। लेकिन महारथियों की इस लड़ाई में ये दोनों ‘प्यादे’ से ज़्यादा कुछ नहीं हैं।
महा विकास अघाडी की सत्ता से विदाई के लिए बीजेपी आगे भी पूरा जोर लगाएगी। उसके नेता राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करते रहते हैं और उनकी राजभवन में लगातार सक्रियता बनी रहती है।
बीजेपी ऐसे और ‘प्यादों’ की तलाश कर रही है, जो उद्धव ठाकरे को पूरे देश की नजरों में कमजोर और सोनिया गांधी के सामने झुकने वाला मुख्यमंत्री साबित कर सकें। हो सकता है वह फ़िल्म और सिने जगत से कुछ और ‘प्यादे’ खोज भी ले लेकिन सत्ता की इस भूख में उसने राजनीतिक मर्यादा और संबंधों के औपचारिक सम्मान को भी ख़त्म कर दिया है।