बिहार उपचुनावः सहनी का बदला, तेजस्वी की चाल से बीजेपी चित
उपचुनाव को आमतौर पर सत्ताधारी दल के लिए आसान माना जाता है लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की बोचहां विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है।
यहां से राजद के अमर कुमार पासवान ने जीत हासिल की है और बीजेपी की बेबी कुमारी की हार में मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी या वीआईपी की उम्मीदवार गीता कुमारी को मिले वोटों का अच्छा योगदान है।
यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। अमर पासवान ने 82, 562 वोट लाकर अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी बेबी कुमारी को 36, 653 मतों से हराया। बेबी कुमारी को 45, 909 वोट मिले।
तीसरे स्थान पर रहीं गीता कुमारी को 29,279 मत मिले। महागठबंधन से अलग लड़ रही कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार तरुण चैधरी को नोटा से भी कम वोट मिले। तरुण को 1336 वोट मिले जबकि नोटा के खाते में 2967 वोट आये।
जीत हासिल करने वाले राजद के उम्मीदवार अमर पासवान वीआईपी के दिवंगत विधायक मुसाफिर पासवान के पुत्र हैं। बिहार विधानसभा
चुनाव 2020 में बोचहां सीट वीआईपी को मिली थी जिसपर उसके उम्मीदवार मुसाफिर पासवान ने जीत हासिल की थी लेकिन उनकी मृत्यु के कारण यह सीट खाली हो गयी थी। तब यह कहा गया था कि मुकेश सहनी को बीजेपी के कोटे से चुनाव लड़ने के लिए 11 सीटें दी गयी थीं जिनमें चार उम्मीदवार जीत पाये थे।
बीजेपी इसे महज एक सीट का परिणाम मानकर खारिज करना चाहेगी लेकिन सियासी गलियारों में अब बहस इस बात पर हो रही है कि क्या तेजस्वी यादव अपनी ’’ए टू जेड’’ पार्टी वाली बात के तहत सवर्ण खासकर भूमिहार मतदाताओं को अपने पक्ष में कर पाने में कामयाब हो रहे हैं।
इसके लिए अलावा यह बात भी कही जा रही है कि मुकेश सहनी ने तो अपना बदला ले लिया जिन्हें बीजेपी के कहने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। इससे पहले बीजेपी ने मुकेश सहनी की वीआईपी के तीनों विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर जबर्दस्त झटका दिया था।
बीजेपी मुकेश सहनी से इसलिए नाराज थी कि उन्होंने अपनी पार्टी के कई उम्मीदवार उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी के खिलाफ दिये थे और उनपर आरोप है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ बयानबाजी की थी।
इस चुनाव परिणाम से जहां तेजस्वी यादव के हौसले बुलंद होंगे वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी राहत महसूस कर रहे होंगे क्योंकि एनडीए सरकार चलाना उनके लिए बीजेपी के बढ़ते प्रभाव के कारण सिरदर्द बना हुआ है। एक तो उन्हें बार-बार अपनी पार्टी जद(यू) के हवाले से यह ताना सुनना पड़ता है कि वे तीसरे नंबर की पार्टी के नेता होते हुए मुख्यमंत्री बने हैं। दूसरी ओर सहनी समाज पर बीजेपी के दावे को कमजोर होते देख जद (यू) और नीतीश कुमार का राहत की सांस लेना स्वाभाविक लगता है। कुछ हलकों में यह भी कहा गया था कि नीतीश कुमार ने इस उपचुनाव में बहुत मन नहीं लगाया था।
मुकेश सहनी की जद (यू) के उन नेताओं से निकटता भी बनी हुई है जो नीतीश कुमार के नजदीकी माने जाते हैं। मुकेश सहनी भी समझते हैं कि नीतीश कुमार ने उन्हें मंत्रीपद से बीजेपी के दबाव में हटाया था।
इस चुनाव परिणाम से मुकेश सहनी को यह कहने का मौका मिल गया है कि मल्लाह या निषाद समाज के असली नेता वहीं हैं। बीजेपी ने मुजफ्फरपुर से अपने सांसद अजय निषाद से मुकेश सहनी के खिलाफ कई बयान दिलवाये थे। हालांकि मुकेश सहनी ने अजय सहनी के खिलाफ खुलकर बोलने से परहेज किया है।
चुनाव परिणाम आने से पहले ही मुजफ्फरपुर जिले में भूमिहार जाति के वोटरों की बीजेपी की उम्मीदवार बेबी कुमारी के प्रति ’धधकती हुई नाराजगी’ की बात सामने आ रही थी।
एक और अहम बात यह है कि यह भी माना जा रहा था कि तेजस्वी ने स्थानीय निकायों से विधान परिषद चुनाव में इस जाति को ’उचित प्रतिनिधित्व’ देकर अपने पक्ष में करने में काफी हद तक कामयाबी हासिल कर ली थी।
यह भी कहा जा रहा कि बेबी की हार में बीजेपी के एक पूर्व मंत्री जो इसी जाति से आते हैं, और एक अन्य प्रभावशाली भूमिहार नेता ने आरजेडी को चुपके से या खुलेआम मदद की है। इसे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के प्रति नाराजगी के रूप में भी देखा जा रहा है जिन्हें बेबी कुमारी की उम्मीदवारी को लेकर इस समाज के विरोध का सामना करना पड़ा था। बेबी कुमारी पर 2015-20 में विधायक रहते हुए भूमिहार समाज की उपेक्षा का आरोप लगा था। वैसे, बेबी ने 2010 में कांग्रेस से भी चुनाव लड़ा था मगर तब उन्हें बहुत ही कम वोट मिले थे।
तेजस्वी यादव की दूसरी कामयाबी यह मानी जा रही थी कि उन्होंने अमर पासवान को टिकट देकर मुसाफिर पासवान की मौत के बाद की सहानुभूति वोट पर अपनी पकड़ बना ली। हालाँकि अमर पासवान मुकेश सहनी की वीआईपी से ही चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे लेकिन राजद से मिले आफर के बाद उन्होंने अपना इरादा बदल लिया और उसी के उम्मीदवार बन गये। इधर मुकेश सहनी ने पूर्व मंत्री रमई राम की बेटी गीता कुमारी को टिकट दे दिया।
यह बात भी गौर करने की है कि इस बार अगर अमर पासवान को पिता की मौत से उत्पन्न सहानुभूति की लहर के वोट मिले हैं तो बेबी कुमारी को 2015 में लोजपा से टिकट कटने के बाद सरेआम बिलखने के कारण सहानुभूति के वोट मिले थे। तब स्वर्गीय रामविलास पासवान के अध्यक्ष रहते लोजपा ने अंतिम समय में उनका टिकट काट दिया था और बेबी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत गयी थीं। 2020 में यह सीट वीआईपी को मिली तो लोजपा की ओर से चिराग पासवान ने उन्हें चुनाव लड़ने का आफर कर दिया मगर तब वे तैयार नहीं हुईं और चुनाव से अलग रहीं।
चुनाव से ठीक पहले मुकेश सहनी आरजेडी के साथ नजर आ रहे थे लेकिन महागठबंधन की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ही उससे अलग होने का ऐलान कर दिया था और बाद में एनडीए में शामिल हो गये थे।
मुकेश सहनी खुद तो सिमरी बख्तियारपुर से विधानसभा चुनाव हार गये लेकिन उनकी पार्टी के चुनाव चिह्न पर लड़े चार उम्मीदवार जीते तो एनडीए सरकार के बनने-बिगड़ने के लिए बहुत अहम थे।
इसलिए उस समय मुकेश सहनी को मंत्री बना दिया गया और बाद में जनवरी 2021 में एक ऐसी सीट से उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया गया जिसकी अवधि कम थी और इस जुलाई को समाप्त हो रही है। यह सीट बीजेपी के विनोद नारायण झा के विधानसभा चुनाव जीतने के कारण खाली हुई थी।
मुकेश सहनी ने समझौते के तहत अपने अधिकतर टिकट उन उम्मीदवारों को दिये जिनके नाम बीजेपी ने तय किये थे। नतीजा यह हुआ कि एनडीए की सरकार बनने के बाद से बीजेपी से नामित विधायक मुकेश सहनी से अलग राय रखने लगे थे।इसका अंदाजा मुकेश सहनी को भाी था मगर वे कुछ नहीं कर पाये। इसका लाभ उठाकर बीजेपी ने तीन विधायकों को अपने पाले में कर लिया।
मतगणना से ठीक एक दिन पहले मुकेश सहनी ने बयान दिया था कि बोचहां में बीजेपी तीसरे नंबर पर पहुंच गयी है और अगले लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी बिहार में तीसरे नंबर पर रहेगी। उन्होंने बीजेपी पर वीआईपी को ठगने को आरोप लगाया और दावा किया कि इससे जनता का समर्थन वीआईपी के लिए बढ़ता गया।