बजट पेश किए जाने के बाद भारत के रिज़र्व बैंक यानी आरबीआई ने पहली बार सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर का अनुमान व्यक्त किया है। इसने कहा है कि 2021-22 में जीडीपी 10.5 फ़ीसदी रहने का अनुमान है। आरबीआई ने कहा है कि विकास दर को तेज़ करना इस वक़्त सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। महामारी की चपेट में रहने के बाद 31 मार्च, 2021 को ख़त्म होने वाले चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद 7.7 प्रतिशत के सिकुड़ने का अनुमान है।
आरबीआई ने बजट पेश किए जाने के बाद मोनिटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक के बाद इसकी घोषणा की है। इसके साथ ही इसने नीतिगत दरों की भी घोषणा की है।
इसने महंगाई नियंत्रण में आती हुई दिखने पर प्रमुख ब्याज दरों को पहले की तरह ही बरकरार रखा है। रेपो रेट 4 फ़ीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.5 फ़ीसदी ही रहेगा। बता दें कि आरबीआई जिस ब्याज दर पर बैंकों को उधार देता है उसे रेपो रेट कहा जाता है। आरबीआई में जमा बैंकों की राशि पर आरबीआई जिस दर से बैंकों को ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। जब भी बाज़ार में नकदी की उपलब्धता बढ़ जाती है तो महँगाई बढ़ने का ख़तरा पैदा हो जाता है और तब आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है ताकि बैंक ज़्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रक़म उसके पास जमा करा दें।
आरबीआई ने कहा है कि ओवरऑल महंगाई दर जनवरी से मार्च के बीच 5.2 फ़ीसदी रहने का अनुमान है।
ताज़ा आँकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर 2020 में खुदरा मुद्रास्फीति यानी महंगाई तेज़ी से गिरकर 4.59 प्रतिशत पर आ गई। खुदरा महंगाई नवंबर में 6.93 प्रतिशत थी।
दिसंबर में सब्जियों की क़ीमतों में 10.41 प्रतिशत की गिरावट के कारण खाने वाले सामानों में महंगाई दिसंबर में तेज़ी से घटकर 3.41 प्रतिशत हो गई जो नवंबर में 9.50 प्रतिशत थी।
बता दें कि इस बार के बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इतनी हिम्मत दिखाई है कि चालू वित्तवर्ष में न सिर्फ़ सरकार का घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट साढ़े नौ परसेंट पहुँचने की बात खुलकर कबूल की बल्कि यह भी बताया कि अभी इस साल ही अस्सी हज़ार करोड़ रुपए का क़र्ज़ और लेना पड़ेगा। कुल मिलाकर सरकार इस साल 18.48 लाख करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। कोरोना काल में यह कोई आश्चर्य भी नहीं है। ऐसी आशंका थी।
हालाँकि ज़्यादातर विशेषज्ञ मान रहे थे और अंदाजा लगा रहे थे कि यह आँकड़ा सात से आठ परसेंट के बीच रह सकता है। लेकिन संशोधित अनुमान में यह साढ़े नौ परसेंट तक पहुँच चुका है। अगले साल जब बजट आएगा तब ही शायद पता चले कि बीते साल का घाटा दरअसल रहा कितना। हालाँकि यहाँ यह साफ़ करना ज़रूरी है कि वित्तमंत्री ने इस बार घाटे में वो घाटे भी शामिल करके दिखा दिए हैं जिन्हें अब तक सरकारें छिपाकर रखती थीं या जिन्हें बैलेंस शीट से बाहर रखा जाता था।