अयोध्या न सिर्फ रूप बदल रही है बल्कि रूप को ही पहचान बना रही है। सदियों तक जिसकी पहचान प्रवाह और प्रार्थना रही है, अब भव्य भवन उसकी पहचान होंगे। यह अलग बात है कि पुनरुद्धार उस पहचान को धूमिल ही करेगा जिसे अयोध्या कहा जाता है। संतों के पद की रज उठाकर लोग घर ले जाते हैं। उस रज को वाहनों से रौंदा जाए यह तो कहीं से धर्म नहीं है।
क्या जरुरी है कि संतों के चरणों की रज को वाहनों से रौंदा जाए। प्रार्थनाओं से पोषित वीथियों के मौन, शांति को हॉर्न के शोर से पीड़ित किया जाए। प्रभु के शयन में भी बाधा उत्पन्न होगी। आराधकों की प्रार्थनाएं भी विचलित होती हैं।
अयोध्या के घर-घर में मंदिर हैं या यूं कहिए कि हर मंदिर घर है। जब घर के सामने सड़क बना दी जाएगी और उससे उठने वाले शोर से घर/मंदिर के अंदर साधनारत व्यक्ति की प्रार्थना खंडित होगी। प्रार्थना खंडित होगी तो अंदर से तमस निकलेगा। यह ना तो ऊर्जाओं के लिए अच्छा है और ना ही व्यवस्थाओं के लिए। धर्म क्षेत्र आने का मतलब है कि सब चिंताओं को छोड़कर आना।
अयोध्या में योगी सरकार सड़कों का चौड़ीकरण क्यों कर रही है ताकि कारें चल सके, काफिला निकल सके। सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि पैदल चलने की समस्या नहीं है। वैसे भी वाहन का उपयोग धार्मिक कार्यों में निषेध माना जाता है। परिक्रमा पैदल ही की जाती है।
योगी सरकार को चाहिए कि धर्म नगरी का जो केंद्र है- रामकोट, उसे वाहन मुक्त घोषित कर दे। यह धर्म के अनुकूल है। तब तोड़फोड़ की आवश्यकता भी नहीं होगी और धार्मिकता भी बनी रहेगी।
अयोध्या जैसी धार्मिक नगरी का विकास हो रहा है तो पूरा जोर सड़क पर, भवन पर, बिजली पानी व अन्य सुविधाओं पर है जबकि ये सब धर्म क्षेत्र के लिए बहुत आवश्यक नहीं होते। ना ही ये धर्म नगरी की पहचान होते हैं। यह तो सब जानते हैं कि प्रार्थनाएं कुटिया में ही सफल हैं।
बड़े-बड़े भवनों ने निकल कर बाहर कुटिया में माथा टेका है। धर्म की सिद्धि तो वहां है ही नहीं। यहां तक कि जो बड़े-बड़े मंदिर बनाए गए लेकिन जब वह बड़े मंदिर बने तो वहां के पुजारियों ने माना कि जो सबसे अच्छा भक्त होगा वह किसी वीथियों में भटक रहा होगा। बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाएं दुनिया में बनी हैं लेकिन जितने भी मौलिक आविष्कार हुए हैं वह किसी कोयले की खदान में, पेड़ के नीचे, किसी मजदूर, गडरिए के हाथ हुए हैं।
आज भी जो नवीन आविष्कार हो रहे हैं, वह प्रयोगशालाओं के बाहर ही हो रहे हैं। रूस को जिस बंदूक ने पहचान दिलाई, दुनिया में छा गई एके-47। वह एक सैनिक ने घर की भट्टी में झोंक कर बनायी गयी। कहने का मतलब यह है कि भवनों, व्यवस्थाओं से धर्म की सिद्धि नहीं होती।
जब कभी नगरों का विकास होता है, खासकर धार्मिक नगरों का तो जो समस्या आती है वो वहां की छोटी-छोटी गलियां होती हैं। यह गलियां सरकार को चुभती हैं कि सकरी हैं, चलने के लिए रास्ता नहीं है जबकि वह गलियां ही धार्मिक स्थानों की सुविधाएं हैं। क्योंकि जैसे ही वह सड़क बनेगी तो उनकी गति बहुत तेज हो जाएगी। धर्म का पक्ष तो यह है कि संभल-संभल कर पग धरा जाए।
वाहन मुक्त होने का फायदा भी धार्मिक है। सड़क पर पीछे से हार्न बजाते वाहन से पैदल चलने वालों के अंदर तमस उठता है और वाहन चलाने वाले के अंदर गर्व का भाव। तमस और गर्व के भाव दोनों का उठना धर्म क्षेत्र की यात्राओं के लिए ठीक नहीं है। क्यों ना योगी सरकार रामकोट का क्षेत्र वाहन मुक्त घोषित कर दे।
राम मंदिर परिसर सहित धर्म क्षेत्र से जब हवाई जहाज उड़ान बाधित है तो उसकी वीथियों का वाहनों से रौंदा जाना यह कौन सा विकास है। ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की समस्याओं का समाधान नहीं है। इंडिया गेट पर हेक्सागन बना है, आठ भुजाओं वाला सर्कल। सी हेक्सागन पर गाड़ी खड़ी करके आप फिर पैदल पूरे एरिया में घूम सकते हैं। वाहनों का प्रवेश वर्जित है। इससे समभाव भी आएगा।
बड़े-बड़े राजा महाराजा भी जब ऋषियों से मिलने जाते थे तो सैनिक गारद, अस्त्र शस्त्र बाहर ही छोड़ देते थे। तुलसीदास जी ने लिखा है कि 'संत मिलन को जाइए तज माया अभिमान, ज्यों-ज्यों पग आगे बढ़ें कोटिन यज्ञ समान'। अयोध्या में तो राममंदिर गर्भगृह के परिसर तक वाहन जाने की व्यवस्था हो रही है। लोग समझते हैं कि धार्मिक स्थल दुर्गम स्थानों पर बने हैं। इसका भी कारण है।
सामान्यतः मानव मन सर्वसुलभ का सम्मान कम करता है। इसलिए भी दुर्गमता पूज्य है। अनुशासन भी तभी जागता है जब परिक्रमाओं में राजा, रंक फकीर सब साथ चलें। इससे दंभ और तमस दोनों मिटेगा और रामत्व जागेगा।
बेलगाम सत्ता लोकतंत्र में लोकभावनाओं को कुचल कर जता रही है कि वो जो कर रही है वही भावना है, वही आस्था है और वही धर्म है। निश्चित तौर से कुछ समय बाद अयोध्या आने पर आपकी आंखें जगमगाती लाइटों से चुंधिया जाएगीं। वह सब कुछ होगा जो एक बेहतरीन पर्यटन स्थल के लिए होना चाहिए।
बस सवाल यह है कि क्या अयोध्या धार्मिक रह पाएगी। क्या अयोध्या में रामत्व रहेगा। जैसे अयोध्या में पौराणिकता नष्ट हो रही है, वैसा ही कुछ समय पूर्व काशी और उज्जैन में भी हुआ है।
भव्य राम मंदिर बनाने के लिए कई हजार करोड़ रुपया ट्रस्ट के खाते में जमा हो चुका है। मंदिर की आड़ में अयोध्या को एक नया स्वरूप दिया जा रहा है। यूं तो अयोध्या का इतिहास ही बनने बिगड़ने का रहा है लेकिन इस बार बस रही नव्य अयोध्या के हिस्से कई स्याह पहलू भी हैं। घुटती, सिसकती आहों पर रिमोट चालित अयोध्या बस रही है।
भव्य मंदिर और पंचसितारा संस्कृति के निर्माण पर गर्व करने के बजाय अयोध्या कुछ लोगों की धर्म, धार्मिक आस्थाओं और धार्मिक निर्माण का केंद्र बनती दिख रही है।
(लेखक, अवध विश्वविद्यालय पुरातन छात्र सभा अध्यक्ष व स्वतंत्र पत्रकार हैं)