राजस्थान में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में दो केंद्रीय मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष समेत 12 दिग्गज मैदान में हैं। दूसरे चरण की 13 सीटों पर 26 अप्रैल को मतदान होगा और पहले चरण में कम वोटिंग के कारण इन सीटों पर मुकाबला अहम और दिलचस्प हो गया है। पीएम मोदी मंगलवार को खुद टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा क्षेत्र में चुनावी रैली करने पहुंचे थे। जहां उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र के अलावा हनुमान चालीसा, शोभा यात्रा का जिक्र किया। मोदी की नजर में यही बड़े चुनावी मुद्दे हैं।
जिन 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहा है, उनमें से दो पर त्रिकोणीय मुकाबला है और बाकी पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। आठ लोकसभा सीटों कोटा, बांसवाड़ा-डूंगरपुर, भीलवाड़ा, बाड़मेर-जैसलमेर, जोधपुर, जालौर, चित्तौड़गढ़ और टोंक-सवाई माधोपुर पर 12 बड़े चेहरे मैदान में हैं।
ये सभी 13 सीटें पिछले दो लोकसभा चुनावों से बीजेपी के पास हैं, इसलिए भाजपा के लिए उम्मीदें और दांव बहुत ऊंचे हैं, जबकि कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, सिर्फ पाने के लिए है। यहां पर उन 8 प्रमुख सीटों की बात करेंगे, जिन पर अगर भाजपा हारती है तो उसकी काफी किरकिरी होगी।
कोटा में गुंजल ने ओम बिड़ला को किया परेशानः लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला लगातार तीसरी बार कोटा से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह पहली बार 2014 में सांसद बने थे। 2019 में वह 2.79 लाख वोटों से जीते और लोकसभा अध्यक्ष बनाए गए। कांग्रेस इस सीट पर भाजपा से आए प्रह्लाद गुंजल पर दांव लगा रही है। इसे राजस्थान की लोकसभा लड़ाई का 'प्रमुख मैच' माना जा रहा है। प्रह्लाद गुंजल एक मजबूत गुर्जर नेता हैं, जो दो बार भाजपा से विधायक चुने गए थे लेकिन मार्च में कांग्रेस में शामिल हो गए। गुंजल दरअसल वसुंधरा राजे के वफादार लोगों में रहे हैं। कांग्रेस ने जैसे ही गुंजल को अपना उम्मीदवार बनाया, कोटा का हाई-प्रोफाइल चुनाव में बदल गया। भले ही वसुंधरा राजे यहां ओम बिड़ला के लिए प्रचार कर रही हैं लेकिन जनता इशारों और हालात को समझ रही है।
जोधपुर में शेखावत का दम
जोधपुर सीट पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी लगातार तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। 2014 में वह पहली बार जोधपुर से सांसद बने और उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया। 2019 में वह 2.74 लाख वोटों से जीते। कांग्रेस ने इस सीट से नए चेहरे करण सिंह को मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी शेखावत का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मुकाबला कड़ा था, क्योंकि भाजपा ताजा-ताजा विधानसभा चुनाव हारी थी। लेकिन इस बार यहां मुकाबला बहुत आसान है। शेखावत का सवाल है कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव को जालौर से क्यों लड़ाने पर मजबूर हुए। उन्हें पिछला चुनाव भूला नहीं होगा, जिसमें वैभव करीब पौने तीन लाख वोटों से हार गए थे।
बाड़मेर में निर्दलीय हावीः केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी 2019 में 3.23 लाख वोटों के अंतर से यह सीट जीतकर सांसद बने थे। इस बार इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है क्योंकि निर्दलीय उम्मीदवार रविंदर सिंह भाटी विधायक भी हैं और युवाओं के बीच उनकी अच्छी पकड़ है। कांग्रेस हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से आए उम्मेदाराम बेनीवाल पर दांव खेल रही है। बाड़मेर में निर्दलीय भाटी ने मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। वो भाजपा से विद्रोह करके चुनाव लड़ रहे हैं। उनका प्रचार अभियान काफी आक्रामक है। चुनाव समीक्षक मुकाबला ही निर्दलीय और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच बता रहे हैं। भाजपा से टिकट से इनकार किए जाने के बाद 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले भाटी ने पार्टी छोड़ दी, और बाड़मेर जिले के शेओ विधानसभा क्षेत्र से स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा। उनकी रैलियों और रोड शो में भारी भीड़ उमड़ी, विशेषकर युवाओं की, और उन्होंने 31 प्रतिशत से अधिक वोट-शेयर के साथ जीत हासिल की थी। उनको उसी करिश्मे का भरोसा लोकसभा में भी है। लेकिन उनके साथ यह प्रचार भी जुड़ गया है कि वो अगर चुनाव जीते तो भाजपा में शामिल हो जाएंगे।
चित्तौड़गढ़ में राजपूतों को मनाने में जुटी भाजपा
इस सीट से बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी लगातार तीसरी बार मैदान में हैं। पिछला चुनाव उन्होंने 5.76 लाख वोटों से जीता था। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस के उदयलाल आंजना से है। आंजना अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री थे इसलिए यहां दिलचस्प मुकाबला होने की उम्मीद है। यह सीट राजपूत बहुल है। केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला की टिप्पणी की वजह से राजपूत यहां भाजपा का खुलकर विरोध कर रहे हैं। लेकिन चित्तौड़गढ़ में भाजपा को 'मोदी फैक्टर' पर भरोसा है। कांग्रेस यहां बेरोजगारी, किसान कल्याण और महंगाई जैसे मुद्दों को उठा रही है। भाजपा राजपूतों को जीतने की कोशिश में है लेकिन राजपूत मान नहीं रहे हैं।
बांसवाड़ा के आदिवासी किधर जाएंगेः आदिवासी बहुल यह सीट इसलिए महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि यहां बीजेपी ने महेंद्र जीत सिंह मालवीय को मैदान में उतारा है, जो पिछली अशोक गहलोत सरकार में मंत्री थे लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी बदल ली थी। दूसरी ओर, कांग्रेस भारतीय आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार राजकुमार रोत का समर्थन कर रही है जो विधायक भी हैं। कांग्रेस के बागी अरविंद डामोर के कारण इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। दक्षिण राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर जिलों में राजस्थान की 14% आदिवासी आबादी का लगभग दो तिहाई हिस्सा रहता है। वे धीरे-धीरे आरएसएस से संबद्ध वनवासी कल्याण परिषद का गढ़ बन गए हैं, जो यहां काम करता है और स्कूलों, सांस्कृतिक समूहों और यहां तक कि चिकित्सा शिविरों के माध्यम से हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाता है। इस संदर्भ में, मालवीय का पाला बदलना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था और इसका उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा-आरएसएस की उपस्थिति को बढ़ाना था। इसके बावजूद कांग्रेस समर्थित बीएपी उम्मीदवार राजकुमार रोत के पास सुनहरा मौका है। आदिवासी पहचान पर जोर, आदिवासी समुदाय के लिए एक अलग राज्य की मांग और आदिवासियों के लिए शिक्षा और नौकरियों में 75% आरक्षण के वादे के कारण बीएपी का समर्थन आधार दक्षिण राजस्थान में तेजी से बढ़ा है। इसके अलावा, रोत की युवा अवस्था, स्वच्छ छवि और आदिवासी मुद्दों और आदिवासी अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता ने बीएपी की चुनावी संभावनाओं को बेहतर कर दिया है। इसलिए त्रिकोणीय मुकाबला होने के बावजूद भाजपा के लिए यहां कुछ भी आसान नहीं है।
भीलवाड़ा में पानी है मुद्दा
कांग्रेस ने इस सीट से पिछली सरकार के दौरान पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को मैदान में उतारा है। वह हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में राजसमंद से चुनाव हार गए थे। वह 2009 में भीलवाड़ा से सांसद चुने गए थे और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने थे। भाजपा प्रत्याशी दामोदर अग्रवाल यहां मोदी मैजिक के सहारे हैं। उनका भाषण लोकल मुद्दों पर न होकर राष्ट्रीय मुद्दों पर होता है। जबकि स्थानीय लोग सीपी जोशी को भीलवाड़ा का भगीरथ कहते हैं। जो चंबल नदी का पानी भीलवाड़ा में ले आए। आज लोगों के घरों में पीने का जो पानी उपलब्ध है, उसके लिए वे सीपी जोशी को याद करते हैं। सीपी जोशी भी अपने संपर्क अभियान में सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर बात करते हैं। अपने खाते की तमाम उपलब्धियों को वो गिनाना नहीं भूलते। कुल मिलाकर भीलवाड़ा में पानी आज भी मुद्दा है।
जालौर में वैभव क्या बचा पाएंगे कांग्रेस की इज्जत
जालौर लोकसभा सीट पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत की वजह से वीआईपी सीट बन गई है। कांग्रेस प्रत्याशी वैभव गहलोत बीजेपी के लुंबा राम चौधरी के खिलाफ मैदान में हैं। वैभव ने इस बार जोधपुर से सीट बदल ली है, जहां वह पिछला चुनाव गजेंद्र सिंह शेखावत से हार गए थे। भाजपा ने यहां से तीन बार के सांसद देवजी पटेल का टिकट काटकर लुंबा राम चौधरी को उतारा है। इसी से पता चलता है कि भाजपा को अपने तीन बार के सांसद की छवि पर भरोसा नहीं है। लुंबा राम के पास अपनी कोई उपलब्धि नहीं है बताने को। उनका संबंध भी सिरोही जिले से है। लुंबा राम को सिर्फ और सिर्फ मोदी मैजिक का भरोसा है। वैभव गहलोत के लिए भी यह नई संसदीय सीट है। वो स्थानीय मुद्दों पर फोकस कर रहे हैं। बेटे को जिताने के लिए खुद अशोक गहलोत मेहनत कर रहे हैं।
टोंक-सवाईमाधोपुर में बाहरी और लोकल की लड़ाई
इस सीट पर राजस्थान के पूर्व डीजीपी हरीश मीणा बीजेपी के दो बार के सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। मीणा 2014 में दौसा से भाजपा सांसद थे लेकिन 2018 में कांग्रेस में चले गए और देवली से विधायक बने और इस बार भी वह उसी सीट से विधायक हैं। लेकिन उनकी लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव में आजमाने का फैसला किया है। सुखबीर सिंह जौनपुरिया का संबंध हरियाणा से है। इसलिए उन्हें बाहरी आदमी बताकर कांग्रेस जबरदस्त हमले कर रही है। जौनपुरिया इलाके के लोगों से सवाल करते हैं कि क्या डीजीपी मीणा साहब ने अपनी कार में कभी किसी आम आदमी को बैठने दिया। लेकिन लोकल मुद्दों पर सुखबीर सिंह जौनपुरिया के पास कोई जवाब नहीं होता है। मोदी ने मंगलवार को उनके लिए एक चुनाव रैली को संबोधित किया। जिसमें वो कांग्रेस की आड़ में मुस्लिमों पर हमला करते रहे। मोदी ने यहां धार्मिक मुद्दे उभारे। देखना यह है कि मोदी का मंगलवार का भाषणा मतदान से सिर्फ तीन दिन पहले भाजपा प्रत्याशी जौनपुरिया की कोई मदद कर पाएगा।