‘पहले हिंदू-मुसलमानों, अब हिंदू-सिखों के बीच बंटवारा कर रही बीजेपी’

11:45 am Dec 16, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

अपने राजनीतिक विरोधियों और उसकी विचारधारा से इत्तेफाक न रखने वाले हर शख़्स को ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का सदस्य बताती रही बीजेपी को लंबे वक़्त तक उसके सहयोगी रहे सुखबीर सिंह बादल ने करारा जवाब दिया है। 

बादल ने मंगलवार को लोगों को बताया है कि बीजेपी इस मुल्क़ में कितना ख़तरनाक खेल रही है। सियासत का लंबा तजुर्बा रखने वाले बादल पाकिस्तान की सीमा से लगने वाले सूबे पंजाब के 10 साल तक डिप्टी सीएम रहे हैं और सोच-समझकर बोलने के लिए जाने जाते हैं। 

पढ़िए कि सुखबीर सिंह बादल ने पत्रकारों के साथ बातचीत में क्या कहा है। जूनियर बादल ने कहा कि किसानों के आंदोलन में जवान और किसान दोनों आ गए हैं और बीजेपी को अपने अहंकारी रवैये को छोड़कर किसानों की बात सुननी चाहिए। 

शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर ने कहा कि जिन लोगों ने ये कृषि क़ानून बनाए हैं, उन लोगों ने जिंदगी भर खेती नहीं की है और केंद्र सरकार अफ़सरों के कहने पर चल रही है। 

बादल ने कहा, ‘अफ़सोस इस बात का है कि देश के एक सूबे को धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश की गई है। जो उनकी सरकार के साथ होता है उसे देशभक्त कहते हैं और जो नहीं होता उसे ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ कह देते हैं। सही मायने में बीजेपी असली ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ है।’

सुखबीर ने आगे बहुत गंभीर बात कही है। उन्होंने कहा, ‘पहले हिंदू-मुसलमानों के रिश्ते टुकड़े-टुकड़े किए। अब जानकर प्रचार कर रही है और हिंदू और सिखों के बीच बंटवारे की कोशिश कर रही है।’ 

उन्होंने कहा कि अकाली दल इस बात को क़तई बर्दाश्त नहीं करेगा कि पंजाब में भाईचारे का माहौल ख़त्म हो और अगर बीजेपी ऐसी कोशिश करेगी तो इसके लिए अकाली दल हर क़ुर्बानी देगा।

पूर्व डिप्टी सीएम ने आगे कहा कि पंजाब बिना अमन-भाईचारे के तरक्की नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, ‘मैं बीजेपी के नेतृत्व को चेतावनी देना चाहता हूं कि छोटी सी बात के पीछे वे भाइयों को न लड़ाएं। जो किसान धरने पर बैठे हैं, वे देशभक्त हैं और उन्होंने अपने बच्चे देश की रक्षा के लिए सरहदों पर क़ुर्बान किए हैं।’ 

किसान आंदोलन पर सुनिए चर्चा- 

सुखबीर के ये बोल बीजेपी नेताओं के कानों में चुभेंगे ज़रूर और देश भर के लोग भी इसे संजीदगी से लेंगे क्योंकि ये बात वो शख़्स कह रहा है जो बीजेपी के साथ लंबे वक़्त तक गठबंधन में रह चुका है। निश्चित रूप से वो बीजेपी की विचारधारा और कामकाज के तरीक़े को बाहर वालों से बेहतर जानता होगा। 

आतंकवादी बताने पर हमलावर

कुछ दिन पहले भी सुखबीर बादल ने बीजेपी पर जोरदार हमला बोला था। अकाली दल के प्रधान सुखबीर ने कहा था, ‘केंद्र सरकार की ओर से कहा जा रहा है किसानों के आंदोलन में आतंकवादी, अलगाववादी आ गए हैं तो फिर सरकार उन्हें बातचीत के लिए क्यों बुला रही है।’

बादल ने कहा था, ‘अगर सरकार की बात मान लें तो देशभक्त और न मानें तो आतंकवादी, इससे ख़राब बात और क्या हो सकती है।’ उन्होंने कहा था कि हमारे लिए देश सबसे पहले है और किसान देश के लिए ही लड़ाई लड़ रहे हैं।

सुखबीर ने कहा था कि केंद्र सरकार इन कृषि क़ानूनों को उसी तरह थोपने की कोशिश कर रही है जिस तरह उसने नोटबंदी और जीएसटी को थोपा था। 

सुखबीर सिंह बादल की यह बात भारत के हर उस शख़्स को बीजेपी नेताओं के अपने विरोधियों को ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का बताने के बयान के बारे में सोचने के लिए मज़बूर करेगी, जो अनजाने या बहकावे में आकर ख़ुद भी इसी भाषा का इस्तेमाल करने लगे थे। 

बीते सालों में बीजेपी के आम कार्यकर्ता को छोड़िए, बहुत पढ़े-लिखे अरूण जेटली से लेकर क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और तमाम आला मंत्री अपने विरोधियों के लिए ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का इस्तेमाल करते रहे। 

बीजेपी के नेताओं को सुखबीर बादल के उस बयान को और गौर से सुनना चाहिए जिसमें वह कह रहे हैं कि देश के एक सूबे को धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश की गई है। यह बात बेहद गंभीर है। बीजेपी और सरकार की लीडरशिप इसे इग्नोर कर देगी लेकिन देश के लोग शायद ऐसा नहीं करेंगे।

सुखबीर के पिता सरदार प्रकाश सिंह बादल भारत की सियासत में सबसे लंबा अनुभव रखने वाले नेता हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भारत का नेल्सन मंडेला कहा था। किसानों की मांग के समर्थन में कुछ दिन पहले ही सीनियर बादल ने उन्हें मिला पद्म विभूषण अवार्ड भी वापस कर दिया था। 

खालिस्तानी-वामपंथी का नैरेटिव 

बीजेपी और सरकार की पूरी लीडरशिप ने किसान आंदोलन को अपने लिए चुनौती बनता देख जिस तरह के जुबानी हमले किसानों पर किए हैं, उससे देश के बड़े समुदाय में जबरदस्त नाराजगी है। हैरानी की बात यह है कि सरकार के मंत्री और बड़े बीजेपी नेता दिन-रात किसान आंदोलन में खालिस्तानियों, वामपंथियों का हाथ होने का प्रचार कर रहे हैं लेकिन उन्हें ठंड के दिनों में दिल्ली के बॉर्डर्स पर लाखों की संख्या में बैठे लोग नज़र नहीं आ रहे हैं।