लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों के बाद पंजाब की कैबिनेट से इस्तीफ़ा देने वाले नवजोत सिंह सिद्धू लंबे समय तक शांत रहने के बाद फिर फ़ॉर्म में आते दिख रहे हैं। सिद्धू के पंजाब की कैबिनेट से बाहर आने की वजह मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से हो रही लगातार खटपट थी।
इस बीच, कई चर्चाएं चलीं कि सिद्धू आम आदमी पार्टी में जा सकते हैं, अपना कोई राजनीतिक दल लांच कर सकते हैं या फिर से बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। सिद्धू के बारे में कहा जा रहा है कि उनकी शर्त अमरिंदर सिंह को कुर्सी से हटाने की है।
सिद्धू को मनाने की लाख कोशिशें कांग्रेस आलाकमान ने की। नए-नवेले प्रदेश प्रभारी हरीश रावत सिद्धू के घर गए, खाना खाया और पूरी ताक़त झोंक दी कि सिद्धू पार्टी छोड़कर न जाएं।
संकट में कांग्रेस आलाकमान
लेकिन लगता है कि सिद्धू ने अब कांग्रेस छोड़ने का पूरा मन बना लिया है और इसीलिए वह मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ लगातार नारेबाज़ी कर रहे हैं। या फिर सिद्धू कांग्रेस में तभी रहेंगे, जब अमरिंदर सिंह को पद से हटाया जाए। लेकिन विधानसभा चुनाव में सिर्फ़ सवा साल का वक्त बचा है और ऐसे में हाईकमान अमरिंदर को हटाने का जोख़िम नहीं ले सकता।
इस बीच, पंजाब में केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ जोरदार आंदोलन हुए और पंजाब देश का पहला ऐसा राज्य बना जिससे इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ विधानसभा में विधेयक पेश किया। लेकिन उससे पहले ही सिद्धू ने अमरिंदर सरकार को निशाने पर ले लिया।
सिद्धू ने ताज़ा हमला करते हुए कहा है, ‘आज की तारीख़ में पंजाब सरकार के पास गेहूं और चावल के अलावा किसी और फसल की ख़रीद का सरकारी मॉडल नहीं है और न ही हमारे पास भंडारण और बाज़ार में फ़सल बेचने की क्षमता है।’
सिद्धू ने वीडियो संदेश जारी कर पूछा, ‘अगर पंजाब की खेती में सब कुछ सही है और सिर्फ़ केंद्र के तीन क़ानूनों से दिक्कत है तो आख़िर इतने सालों से किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं। अगर दूसरे राज्यों में पंजाब से सस्ता चावल और गेहूं मिलेगा तो पूंजीपति हमारा अनाज एमएसपी पर ख़रीदने क्यों आएंगे।’
सिद्धू ने पूछा, ‘राज्य सरकार क्या करेगी। पंजाब के लोग हमारी तरफ देख रहे हैं और हम उन्हें पीठ दिखाकर नहीं भाग सकते।’
राहुल की मौजूदगी में हमला
कुछ दिन पहले कृषि क़ानूनों के विरोध में जब राहुल गांधी पंजाब के दौरे पर आए थे तब भी सिद्धू ने मंच से ही अमरिंदर सरकार को घेरा था। सिद्धू ने कहा था, ‘अगर हिमाचल सरकार अपने सेब पर एमएसपी दे सकती है तो पंजाब सरकार भी अपनी फसलों पर दे सकती है। सरकारें दिखाने के लिए नहीं होतीं, हल देने के लिए होती हैं। पंजाब सरकार जिम्मेदारी ले और हल दे।’
राहुल गांधी की मौजदूगी में सिद्धू के अपनी ही सरकार को निशाने पर लेने के कारण बताया गया है कि राहुल के साथ ही प्रभारी हरीश रावत भी नाराज हुए। इसके बाद हुई रैलियों में सिद्धू को नहीं बुलाया गया।
बीजेपी में वापसी करेंगे
सिद्धू के बारे में जोर-शोर से चर्चा है कि वह जल्द ही अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी में वापसी कर सकते हैं। इन चर्चाओं को बल तब मिला जब इसी साल अगस्त महीने में सिद्धू की पत्नी और अमृतसर से विधायक नवजोत कौर सिद्धू ने कहा था कि बीजेपी अगर शिरोमणि अकाली दल से नाता तोड़ दे तो पार्टी में वापसी पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
अब सिद्धू की यह चाहत पूरी हो चुकी है कि बीजेपी शिरोमणि अकाली दल से अलग हो जाए। सिद्धू जानते हैं कि अमरिंदर सिंह के रहते वो कांग्रेस में आगे नहीं जा सकते, शायद इसलिए ही उन्होंने खुलकर बग़ावत करते हुए बीजेपी में वापसी की तैयारी कर ली है।
लोगों के बीच सिद्धू।
सिद्धू सियासी रूप से महत्वाकांक्षी शख़्स हैं। उनकी इच्छा पंजाब का मुख्यमंत्री बनने की है। उनके पक्ष में पॉजिटिव बात यह है कि उनका हिंदू और सिख, दोनों समुदायों के मतदाताओं में आधार है। वह बहुत अच्छी हिंदी बोलते हैं, मशहूर क्रिकेटर रहे हैं और इस वजह से भारत में ख़ूब जाने जाते हैं।
हिंदू और सिख मतदाताओं में लोकप्रिय होने के कारण बीजेपी सिद्धू को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बना सकती है।
सिद्धू की वापसी का दावा
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहन लाल ने कुछ दिन पहले ही दावा किया था कि सिद्धू की बीजेपी में वापसी का रास्ता साफ हो गया है और वह 2022 का विधानसभा चुनाव बीजेपी की ओर से ही लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि सिद्धू के लिए बीजेपी के दरवाजे हर वक्त खुले हैं।
बुरी तरह घिरे कैप्टन
कांग्रेस आलाकमान के लिए पंजाब बहुत बड़ा सिरदर्द बन चुका है क्योंकि केवल सिद्धू ही अमरिंदर के ख़िलाफ़ नहीं हैं बल्कि पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलों ने भी कैप्टन के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला हुआ है। इसके अलावा सिद्धू के समर्थक मंत्रियों व विधायकों ने भी अमरिंदर सिंह की मुसीबतें बढ़ाई हुई हैं। सिद्धू, बाजवा और दूलों की एक ही मांग है कि अमरिंदर को हटाया जाए, लेकिन आलाकमान के लिए ऐसा करना आसान नहीं है। ऐसे में सिद्धू जल्द ही कांग्रेस से अपनी राह अलग कर लें तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।