लाल क़िले पर हुई घटना के कारण मेरा सिर शर्म से झुक गया: अमरिंदर

02:21 pm Jan 30, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

किसानों के आंदोलन से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य पंजाब में इन दिनों उथल-पुथल का माहौल है। राज्य के सभी जिलों में पिछले कई महीनों से कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन चल रहा है और 26 जनवरी को दिल्ली के लाल क़िले पर कुछ सिखों द्वारा निशान साहिब फहराए जाने के पीछे पृथक खालिस्तान राष्ट्र की ख़्वाहिश रखने वालों द्वारा उन्हें उकसाए जाने की बात सामने आ रही है। 

निशान साहिब फहराने वाला शख़्स पंजाब का ही है। किसान आंदोलन को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह कई बार चिंता जता चुके हैं। किसान आंदोलन में शामिल सिख नौजवानों को भड़काने में पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने की बात भी कही जा रही है। 

अमरिंदर सिंह ने पंजाबी न्यूज़ वेबसाइट ‘रोज़ाना स्पोक्समैन’ को दिए इंटरव्यू में कई चिंताओं को सामने रखा है। मुख्यमंत्री ने लाल क़िले में निशान साहिब फहराए जाने को लेकर कहा है कि भारत सरकार को इस घटना में शामिल लोगों की जांच कराई जानी चाहिए। उन्होंने ऐसे नेताओं पर निशाना साधा जो इस घटना में शामिल लोगों की तारीफ़ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस घटना से हिंदुस्तान की बेइज्जती हुई है और जो भी लोग इस घटना में शामिल रहे हैं, उन्हें इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी। 

पाकिस्तान का हाथ होने की आशंका

उन्होंने कहा कि पंजाब के अशांत होने का सबसे बड़ा फ़ायदा पाकिस्तान को ही होना है और लाल क़िले की घटना में उसका भी हाथ हो सकता है। अमरिंदर ने कहा कि इस घटना में शामिल लोग किसके संपर्क में थे, इसका पता भारत सरकार को लगाना चाहिए। लेकिन किसान आंदोलन में शामिल किसान संगठनों के नेताओं को इसके चलते परेशान नहीं किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि तिरंगा हमारी आज़ादी का प्रतीक है और इस घटना के कारण उनका सिर शर्म से झुक गया है। 

अमरिंदर ने कहा, ‘1947 में विभाजन के बाद आधा पंजाब पाकिस्तान में चला गया, उसके बाद अकाली नेताओं ने हरियाणा, हिमाचल को अलग करवा दिया। 1995 में मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह का क़त्ल हो गया। कुछ लोग हर वक़्त गड़बड़ी फैलाने की कोशिश में रहते हैं बिना ये सोचे कि पंजाब का भविष्य कैसा होगा।’ 

नौजवानों के भविष्य को लेकर चिंतित

मुख्यमंत्री ने पंजाब के नौजवानों के भविष्य को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि उनका बेहतर भविष्य सिर्फ़ विकसित और शांत पंजाब में ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि कुछ भड़काऊ लोग अपने सियासी फायदे के लिए नौजवानों को भड़का रहे हैं। 

अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘पंजाब में कोई इंडस्ट्री नहीं आ रही है। आख़िर ऐसे हालात में कौन सी इंडस्ट्री यहां आएगी। अगर इंडस्ट्री नहीं रहेगी तो नौजवानों को नौकरी कैसे मिलेगी। नौजवान इस तरह की हरक़तें करेंगे तो उन्हें पूरे देश में कोई भी एप्रीशिएट नहीं करेगा।’ उन्होंने कहा कि हमें बाहर से निवेश की सख़्त ज़रूरत है। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष भारत ही तरक्की कर सकता है। 

किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो- 

‘आतंकवाद का दौर देखा’

कुछ दिन पहले भी अमरिंदर सिंह ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बात करते हुए किसान आंदोलन के कारण राज्य की क़ानून व्यवस्था के बिगड़ने का अंदेशा जताया था। कैप्टन ने कहा था कि उनकी हमदर्दी किसानों के साथ है लेकिन वे राज्य की क़ानून व्यवस्था को नहीं बिगड़ने देंगे। मुख्यमंत्री ने कहा था कि उन्होंने अपने जीवन में पंजाब में आतंकवाद का दौर देखा है। मुख्यमंत्री ने कहा था कि अब वक़्त आ गया है कि प्रधानमंत्री इस मामले को गंभीरता से लें और इन क़ानूनों को ख़त्म करें वरना उनकी सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रूख़ करेगी।

26 नवंबर को जब किसानों ने पंजाब से दिल्ली कूच किया था और दिल्ली के बॉर्डर्स पर आकर डट गए थे तो कुछ ही दिन बाद अमरिंदर सिंह दिल्ली आए थे और उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की थी। अमरिंदर सिंह ने शाह को बताया था कि इस आंदोलन से देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर हो रहा है। उन्होंने कहा था कि किसान आंदोलन से पंजाब की माली हालत ख़राब हो रही है। 

पंजाब की सियासत पर भी असर 

किसान आंदोलन ने पंजाब की सियासत पर ख़ासा असर किया है। किसानों के इन क़ानूनों की जोरदार मुख़ालफत करने के बाद शिरोमणि अकाली दल को एनडीए से बाहर निकलना पड़ा था। इसके अलावा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत की सियासत के सबसे बुजुर्ग नेता सरदार प्रकाश सिंह बादल ने सरकार को पद्म विभूषण अवार्ड लौटा दिया था। बादल के बाद शिरोमणि अकाली दल (डेमोक्रेटिक) के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा ने भी पद्म भूषण अवार्ड वापस करने का एलान कर दिया था। 

भड़का रही आईएसआई

पंजाब भारत का सरहदी सूबा है। पाकिस्तान की सीमाएं इससे मिलती हैं। बीते कुछ समय से पंजाब को अशांत करने की नापाक कोशिशें तेज हुई हैं और इसके पीछे पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का हाथ बताया जाता है। किसान आंदोलन की आड़ में आईएसआई के अलावा सिख अलगाववादी संगठन जैसे सिख फ़ॉर जस्टिस, बब्बर खालसा इंटरनेशनल लगातार सिख युवाओं को हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ भड़का रहे हैं और रेफ़रेंडम 2020 के लिए भी ये पूरा जोर लगा चुके हैं। ऐसे नाजुक हालात में केंद्र सरकार के सामने किसान आंदोलन बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ा है और उसे बहुत संभलकर इस चुनौती से निपटना होगा।