नकदी संकट से जूझ रही पंजाब सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले नौ महीनों में 30,000 करोड़ रुपये का भारी कर्ज ले लिया है। आशंका है कि सरकार के पास फंड की भारी कमी होने वाली है। सरकार मुश्किल से ही सरकारी कर्मचारियों को तनख्वाह का भुगतान कर पा रही है। आमदनी तो कुछ खास बढ़ी नहीं और बिजली पर सब्सिडी के तौर पर क़रीब 1500 करोड़ रुपये हर महीने ख़र्च हो रहे हैं। तो सवाल है कि पंजाब ऐसी स्थिति में कैसे आर्थिक हालत सुधारेगा? कहीं राज्य की अर्थव्यवस्था दिवालिया होने की तरफ़ तो नहीं बढ़ रही है?
राज्य की मौजूदा स्थिति क्या है यह राज्य के वित्त मंत्री के बयान से भी पता चलता है। अपने बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने कहा था कि सरकार चालू वित्त वर्ष में 35,000 करोड़ रुपये से अधिक का उधार नहीं लेगी। लेकिन इसने तीन तिमाहियों से भी कम समय में 30,000 करोड़ रुपये पहले ही उधार ले लिए हैं। यानी अभी भी एक तिमाही से ज़्यादा का समय बाक़ी है। ऐसे में क्या कर्ज की तय सीमा को वह पार नहीं कर जाएगी? कम से कम विशेषज्ञ तो ऐसा ही अनुमान लगा रहे हैं।
वैसे तो राज्य की आर्थिक हालत ख़राब होने के लिए कई वजहों को गिनाया जा सकता है, लेकिन क्या ऐसे हालात में मुफ़्त में हजारों करोड़ की बिजली मुफ़्त करने की घोषणा से आर्थिक दबाव नहीं बढ़ेगा?
बिजली पर जो सब्सिडी दी जा रही है, उससे तो आर्थिक हालात ख़राब होने के ही संकेत मिलते हैं। द इंडियन एक्सप्रेस ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से लिखा है कि राज्य सरकार का बिजली सब्सिडी बिल प्रतिदिन 54 करोड़ रुपये और हर महीने 1500 करोड़ रुपये है। यानी एक साल में क़रीब 18000 करोड़ रुपये सब्सिडी के तौर पर ख़र्च करने होंगे। अब इस हिसाब से कल्पना की जा सकती है कि सरकार पर कितना बोझ बढ़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी ने कहा है, 'चीजें और खराब होने वाली हैं। सरकार को आने वाले दिनों में धन की भारी कमी का सामना करना पड़ेगा। सरकारी खजाने का बड़ा नुक़सान बिजली सब्सिडी के कारण होगा। इसके तहत सरकार लोगों को 300 यूनिट बिजली मुफ्त दे रही है। अब तक बिजली विभाग के खजाने में 4,000 करोड़ रुपये की बचत थी, लेकिन अब छह महीने में सब्सिडी पर पैसा ख़र्च कर दिया गया है। एक बार जब बिजली उपयोगिता की बचत ख़त्म हो जाएगी तो सरकार को समेकित निधि से भुगतान करना होगा।'
जून महीने में पेश राज्य के बजट अनुमानों के मुताबिक़, पंजाब को चालू वित्त वर्ष में कर्ज चुकाने पर 36,068 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। इसमें से 20,122 करोड़ रुपये का उपयोग अकेले ब्याज भुगतान के लिए किया जाएगा, जबकि शेष 15,946 करोड़ रुपये का उपयोग कर्ज चुकाने के लिए किया जाएगा।
पिछले वित्त वर्ष के अंत तक राज्य पर 2.63 लाख करोड़ रुपये का भारी कर्ज है जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 45.88 प्रतिशत है। अगले वित्त वर्ष के अंत तक कर्ज बढ़कर 2.84 करोड़ रुपये हो जाएगा। इसके अलावा, राज्य की एजेंसियों, बोर्डों और निगमों पर 55,000 करोड़ रुपये का कर्ज है।
ऐसे में सरकार अपने कर्मचारियों को बमुश्किल वेतन दे पा रही है। जीएसटी के मद में राज्य को अपने 16,000 करोड़ रुपये के वार्षिक मुआवजे का नुक़सान हुआ है। आप सरकार ने पहले कहा था कि वह केवल बालू खनन से 20,000 करोड़ रुपये बनाने में सक्षम होगी, अभी तक वह रेत खनन व्यवसाय को सुव्यवस्थित नहीं कर पाई है और रेत की ऊँची क़ीमतों से जूझ रही है। तो सवाल वही है कि ऐसे हालात में राज्य सरकार बिजली सब्सिडी का क़रीब सालाना 18000 करोड़ रुपये का खर्च कैसे समायोजित करेगी? क्या यह बिजली सब्सिडी राज्य की आर्थिक स्थिति को डँवाडोल नहीं कर रही है?