पंजाब में नयी राजनीतिक पार्टी के आने से मची सियासी हलचल के बीच फ़िल्मों की रिलीज पर विवाद क्यों है? एक तरफ़ कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ की रिलीज पर आपत्ति की जा रही है तो दूसरी तरफ़ दिलजीत सिंह दोसांझ की फिल्म Punjab 95 में सेंसर बोर्ड द्वारा लगाए गए कट का विरोध हो रहा है।
पंजाब में फ़िल्मों को लेकर भी विवाद बना हुआ है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने फिल्म इमरजेंसी पर एतराज जताया है। पंजाब में फिल्म को बैन करने के लिये मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र भी लिखा गया है। उनका कहना है कि इमरजेंसी फिल्म में सिखों की छवि खराब करने की कोशिश की गई है और अगर फिल्म रिलीज हुई तो सिखों में रोष पैदा होगा। पंजाब के भिन्न-भिन्न शहरों में कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी का विरोध शुक्रवार सुबह से ही शुरू हो गया था। जगह-जगह सिनेमाघरों के सामने लोग प्रदर्शन करने के पहुँच गए थे।
दिलजीत सिंह दोसांझ की फिल्म Punjab 95 को भारत में रिलीज करने की अनुमति पर अनिश्चितता बनी हुई है। विदेशों में यह फिल्म 7 फरवरी को रिलीज होगी। दिलजीत दोसांझ की प्रधानमंत्री से हाल की मुलाकात के बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि इस फ़िल्म को भारत में जल्द ही रिलीज किया जा सकता है। पंजाब में इस मामले में प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है। Punjab 95 पंजाब के मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा के जीवन की घटनाओं और कार्यों पर आधारित है।
पंजाब में उग्रवाद के दौर में गुमशुदा घोषित हुए लोगों की शिनाख्त और गिनती के बारे में उनके द्वारा किये काम और पुलिस की अवैध हिरासत में ज्यादतियों और हत्याओं और गुप्त रूप से की गयी अंत्येष्टि को उजागर करने के लिए जसवंत सिंह खालड़ा को सम्मान दिया जाता है। बाद में सितंबर 1995 में उनका अपहरण हो गया था और कुछ समय बाद उनकी हत्या हो गई थी। बाद में 6 पुलिस अधिकारियों को उनके अपहरण और हत्या में दोषी पाया गया और न्यायालय द्वारा सजा दी गई थी।
शुक्रवार को पंजाबी गायक फ़िल्मी कलाकार दिलजीत दोसांझ ने इंस्टाग्राम से यह जानकारी सार्वजनिक की थी कि फिल्म 7 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज होगी। 11 जनवरी को दिलजीत दोसांझ ने अपनी फ़ेसबुक पर सूचना शेयर की थी कि 'Punjab 95 फरवरी में'।
बताया जा रहा है कि फ़िल्म में 120 कट सेंसर बोर्ड द्वारा लगाए गए हैं। जसवंत सिंह खालड़ा की पत्नी बीबी परमजीत खालड़ा ने सेंसर बोर्ड की 120 कट की मांग की निंदा की है और कहा है कि फ़िल्म को बनाने में परिवारिक सहमति ली गई है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी मांग की है कि है फ़िल्म को बिना किसी कट के ही पंजाब में दिखाया जाए।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने सरकार से मांग की है कि यह फिल्म पंजाब में हुई घटनाओं की सचाई का कथानक है इसलिए इसे बिना कट के ही रिलीज किया जाना चाहिए।
नयी सियासी पार्टी
इधर, पंजाब में एक नयी सियासी हलचल नयी राजनीतिक पार्टी अकाली दल (वारिस पंजाब दे) के बनने के साथ ही शुरू हो गई है। 14 जनवरी को श्री मुक्तसर साहिब में माघी मेले के दौरान की गई जनसभा में इसका ऐलान असम के डिब्रूगढ़ में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत जेल में बंद अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह और फरीदकोट के सांसद सरबजीत सिंह खालसा ने किया। अमृतपाल को इस पार्टी का मुखिया बनाया गया है। 18 जनवरी को श्री अकाल तख्त पर नमन करके पार्टी के लिए नए सदस्यता अभियान की शुरुआत की गई है। माना जा रहा है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के जल्द ही होने वाले चुनावों में पार्टी अपने उम्मीदवार उतारेगी। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में वर्तमान में शिरोमणि अकाली दल का बाहुल्य है जो कि सुखबीर सिंह बादल गुट से हैं।
‘वारिस पंजाब दे’ जत्थेबंदी पहले किसान आंदोलन के दौरान पंजाब के फ़िल्मी कलाकार दीप सिद्धू द्वारा बनाई गई थी। उनकी मृत्यु के बाद अमृतपाल ने इस जत्थेनादि की कमान संभाल ली थी। पंजाब की समस्याओं को अपने मुख्य एजेंडे में रख कर पार्टी पंथक राजनीति की नयी वैकल्पिक धारा के रूप में खुद को प्रस्तुत कर रही है। शिरोमणि अकाली दल को अभी तक पंथक राजनीति की मुख्य पार्टी माना जाता रहा है। हालाँकि विगत में सिमरनजीत सिंह मान ने भी अपनी एक अलग अकाली दल (अमृतसर) का गठन किया हुआ है।
80 के दशक में पंजाब में अशांति और संघर्ष का दौर रहा जिसमें कुछ उग्र विचारधाराओं ने पंजाब सूबे के अलगाववाद को हवा दी थी जिसका काफी नुक़सान प्रदेश ने भुगता भी और उस विचार को पूरी तरह ख़ारिज करके राजनीतिक स्थिरता हासिल की। प्रगतिवादी और धर्मनिरपेक्षता की सोच को लेकर आगे बढ़नेवाले पंजाब ने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र और प्रादेशिक नेतृत्व पर विश्वास कायम रखा।