तिरंगाः बीजेपी बेच रही 20 रुपये में झंडा, रेलवे सैलरी से काटेगी 38 रुपये!

04:41 pm Aug 07, 2022 | सत्य ब्यूरो

हर घर तिरंगा योजना को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। रेलवे ने सरकारी तौर पर अपने कर्मचारियों को पत्र लिखकर कहा है कि रेलवे हर कर्मचारी को अपने घर पर फहराने के लिए झंडा देगी लेकिन उसके बदले उनके वेतन से 38 रुपये काट लिए जाएंगे। रेलवे की तमाम यूनियनें इसका विरोध कर रही हैं। देश में करीब साढ़े दस लाख रेलवेकर्मी हैं। रेलवे कर्मियों को झंडा सप्लाई करने की जिम्मेदारी एक ही वेंडर को दी गई है। 

एबीपी न्यूज के मुताबिक यही तिरंगा झंडा अगर आप बीजेपी दफ्तर से खरीदें तो वहां इसे 20 रुपये में बेचा जा रहा है। जबकि जीपीओ (प्रधान डाकघर) पर भी यह 25 रुपये में है। तमाम एनजीओ भी इसे 20 रुपये में बेच रही हैं। महानगरों में अगर रेड लाइट पर आप इसे खरीद पा रहे हैं तो दस रुपये तक में यही झंडा मिल जाता है।

रेलवे यूनियनें इसी वजह से इसका विरोध कर रही हैं। नॉर्थ सेंट्रल रेलवे कर्मचारी संघ ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि रेलवे कर्मचारी राष्ट्रभक्त हैं। वो खुद अपने पैसे से झंडा खरीद लेंगे। संघ के मंत्री चंदन सिंह ने कहा कि यह आदेश हम लोगों पर नहीं थोपा जाए। हम अपने पैसे से झंडा खरीदकर लहरा लेंगे। इसी तरह जोनल महामंत्री आरपी सिंह ने कहा कि  स्टाफ बेनीफिट फंड से इस झंडे को खरीदा जाए। रेलवे बोर्ड ने अपने सभी दफ्तरों से कहा है कि 15 अगस्त को हर दफ्तर पर झंडा फहराया जाए।

तिरंगे झंडे पर इतनी राजनीति कभी नहीं हुई। लोग राष्ट्रप्रेम की वजह से इसे पहले ही अपने घरों, वाहनों, दफ्तरों आदि पर लगाते आ रहे हैं। लेकिन पीएम मोदी ने हाल ही में जब इसे आजादी के अमृत महोत्सव से जोड़ते हुए लगाने की अपील की तो बीजेपी और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों ने इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर दिया है। 

कांग्रेस ने तो आरोप भी लगाया कि आरएसएस ने अपने मुख्यालय पर 27 साल तक राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया तो अब दूसरों से जबरदस्ती क्यों की जा रही है। लोग तो खुद ही स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं।

पीएम मोदी की अपील पर संघ और उसके प्रमुख संगठनों विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने पहले कोई उत्साही प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन धीरे-धीरे उनमें से कुछ ने लगाया। लेकिन इनमें से अधिकांश के ट्विटर हैंडल से राष्ट्रीय तिरंगा गायब है, और वहां संघ की शाखा में फहराया जाने वाला ध्वज लगा हुआ है।

कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का आह्वान किया और पहली बार तिरंगा फहराया। उसने सभी भारतीयों से 26 जनवरी, 1930 को इस अधिनियम का अनुकरण करने का आग्रह किया, तो तत्कालीन आरएसएस प्रमुख ने सदस्यों को अपील की अवहेलना करने का निर्देश दिया था। संगठन ने स्वतंत्रता के बाद दशकों तक नागपुर में अपने मुख्यालय में राष्ट्रीय ध्वज फहराने से इनकार कर दिया, इसके बजाय भगवा ध्वज को चुना। आज भी भाजपा के तमाम नेताओं की महत्वकांक्षा भगवा को राष्ट्रीय ध्वज बनाने की है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने तो भगवा को ध्वज राष्ट्रीय ध्वज बन सकता है।

हालाँकि, पीएम मोदी और उनकी सरकार देशभक्ति के खुले प्रदर्शन में दृढ़ विश्वास रखते हैं। भारत ने सांसदों द्वारा तिरंगा मोटरसाइकिल यात्रा देखी: हर घर तिरंगा अभियान भी चल रहा है। फिर भी, यह पूछा जाना चाहिए कि क्या इस सब में कोई बेदाग देशभक्ति वाला है जो स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल रहा हो। भारतीय लोकतंत्र की इमारत के निर्माण खंड हाल के वर्षों में खतरनाक रूप से खराब हो गए हैं। मूलभूत मूल्यों से राष्ट्र को दूर किया जा रहा है; बहस और असहमति, लोकतंत्र के प्रतीक चिन्हों पर नकेल कसी जा रही है। क्या यह संभव है कि ये खामियां मोदी सरकार को राजनीतिक लाभांश के रूप में झंडा लहराने में निवेश करने के लिए मजबूर कर रही हों?