योगी को मथुरा से उतारने का मकसद कुछ और है, भगवान ने नहीं लिखवाया है वह पत्र  

02:01 pm Jan 03, 2022 | सत्य ब्यूरो

यूपी का मथुरा 2022 के विधानसभा चुनाव का हॉट स्पॉट बनने जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मथुरा से चुनाव लड़ाने की मुहिम छेड़ दी गई है। योगी ने मथुरा के 20 चक्कर लगाए। ये मुहावरा नहीं है। यह तथ्य है। यह बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है।

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा आज शाम लखनऊ में दो बैठकें करने वाले हैं। बहुत मुमकिन है कि इसमें यह फैसला ले लिया जाए। पहली बैठक बीजेपी के प्रदेश कार्यालय और दूसरी बैठक शाम को योगी के घर पर रखी गई है। 

मथुरा ही क्यों

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन बीजेपी को कड़ी चुनौती दे रहा है। इसकी काट बीजेपी अभी तक नहीं कर पाई है। प्रधानमंत्री और योगी बार-बार पश्चिमी यूपी के दौरे कर रहे हैं। खूब भीड़ भी उनकी रैलियों में आ रही है लेकिन बीजेपी इसके बावजूद आश्वस्त नहीं है। क्योंकि उसे लगता है कि पश्चिमी यूपी के ग्रामीण आंचल में किसानों की नाराजगी अभी तक खत्म नहीं हुई है। किसान नेता राकेश टिकैत के आये दिन बयान, धरना, प्रदर्शन बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाते जा रहे हैं। 

यही वजह है कि बीजेपी के पास पश्चिमी यूपी में धार्मिक ध्रुवीकरण के अलावा कोई रास्ता नहीं है। मथुरा इसी बेल्ट में है। वो मथुरा में योगी को उतार कर इस प्रयोग को करना चाहती है। 

बीजेपी ने योगी को कुछ दिनों पहले संकेत दिया था कि उन्हें मथुरा से चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। पौने पांच साल के कार्यकाल में योगी ने मथुरा के बीस चक्कर लगाए हैं। 

पिछले चार महीनों में उनके करीब सात-आठ चक्कर मथुरा के लगे हैं।


बीजेपी की इस रणनीति की झलक 19 दिसम्बर को तब मिली थी, जब योगी ने वहां उस दिन रैली करने पहुंचे थे। लेकिन अचानक ही उन्होंने कहा कि वो पहले कृष्ण जन्मभूमि स्थान जाएंगे। अफसर इसके लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि वहां किसी तरह का इंतजाम प्रशासन की ओर से नहीं था। लेकिन हठ योग पर किसका बस चलता है। 

योगी ने भागवत भवन और गर्भगृह में पूजापाठ किया। इसके बाद वो रैली स्थल पर पहुंचे और वहां पहली लाइन जो उनके मुख से निकली, वो थी - मथुरा 19 वीं बार आया हूं। आता ही रहूंगा। 19 दिसम्बर की कहानी 29 दिसम्बर को पूरी हुई। जब उन्होंने पड़ोस के जिले फर्रुखाबाद में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमने अयोध्या में जो किया, सबके सामने है, हमने काशी में जो किया सबके सामने हैं तो भला मथुरा और वृंदावन कैसे पीछे छूट सकते हैं। उन्होंने भीड़ से हाथ उठवाकर पूछा था कि क्या वो लोग अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होने और काशी में काशी कॉरिडोर के निर्माण से खुश हैं। भीड़ ने हां में जवाब दिया। इसके बाद योगी ने कहा कि अब मथुरा-वृंदावन की बारी है। 

योगी की इस घोषणा के बाद मथुरा में आरएसएस से जुड़े संगठनों ने कृष्ण जन्मभूमि की कथित मुक्ति का नारा तेज कर दिया है। आए दिन प्रदर्शन हो रहे हैं। कई बार स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि मथुरा जिला प्रशासन को जन्मभूमि के आसपास कड़े सुरक्षा प्रबंध करने पड़ते हैं। प्रशासनिक अफसरों का कहना है कि हम लोगों के सिर पर यह नई मुसीबत है। हर समय वहां का अपडेट हम लोग लेते रहते हैं।

सांसद ने इसीलिए लिखा पत्र

बीजेपी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव का आज जो पत्र जारी हुआ, उसकी टाइमिंग और नाम पर गौर करिए। भगवान कृष्ण को यादव समुदाय यदुवंशी मानता है और यादव समुदाय के हर घर में कृष्ण की फोटो मिल जाएगी। हरनाथ सिंह यादव ने पत्र भी आज यानी 3 जनवरी को लिखा, जब नड्डा लखनऊ में दो महत्वपूर्ण बैठकें करने वाले हैं। जाहिर है कि यह पत्र बीजेपी की बैठक में पढ़ा जाएगा या उस पर चर्चा होगी। पत्र नड्डा के ही नाम पर है। नड्डा आज योगी से या तो उनकी मंशा पूछेंगे या फिर सीधे कहेंगे कि आप मथुरा से कूद पड़ो। 

हालांकि सांसद हरनाथ यादव का कहना है कि उनसे वो पत्र भगवान कृष्ण ने लिखवाया है। यादव की आस्था को चुनौती नहीं दी जा सकती लेकिन लगता है कि भगवान कोरोना की चिन्ता छोड़कर बहुत फुरसत में हैं जो किसी सांसद से ऐसा पत्र लिखवा रहे हैं। 

हरनाथ सिंह यादव की जगह यह पत्र मथुरा की बीजेपी सांसद हेमा मालिनी ने क्यों नहीं लिखा या उनसे लिखवाया गया। हरनाथ सिंह यादव को ही क्यों चुना गया।  बहरहाल, हेमा मालिनी भी आज रात मथुरा पहुंच रही हैं और वो 11 जनवरी तक मथुरा में ही जमी रहेंगी। विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगी। हो सकता है कि उनका भी कोई बयान इस संबंध में आए। 

योगी आदित्यनाथ का अभी तक इस संबंध में सिर्फ इतना ही बयान आया है कि पार्टी जहां से कहेगी, वहां से लड़ूंगा। बता दें कि मथुरा से पहले योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने की चर्चा भी चल चुकी है। लेकिन अयोध्या के किसी बीजेपी नेता या सांसद ने ऐसा अनुरोध पत्र पार्टी अध्यक्ष के पास नहीं भेजा। बीजेपी में पत्र व्यवहार जैसी चीजें तभी सार्वजनिक की जाती हैं या कराई जाती हैं, जब उसके पीछे कोई रणनीति होती है।