झारखंडः चंपाई सोरेन अकेले पड़े, 4 वफादारों ने साथ छोड़ा, भाजपा की मुहिम नाकाम

08:59 am Aug 21, 2024 | सत्य ब्यूरो

झारखंड में दो हफ्ते से चल रहे राजनीतिक खेल का लगभग समापन हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन जो भाजपा में जाने की फिराक में थे, अपने कदम पीछे ले लिए हैं। चंपाई पिछले हफ्ते दिल्ली आए थे और दिल्ली में बैठकर उन्होंने अपनी नाराजगी एक्स पर पोस्ट कर दिखाई। उन्होंने खुद को सीएम पद से गलत तरह से हटाने का मुद्दा भी उठाया। एक हफ्ते पहले हालात ये थे कि चंपाई सोरेन भाजपा में अब गए कि तब गए। दूसरी तरफ भाजपा उम्मीद कर रही थी कि झारखंड से बड़ी तादाद में विधायक दिल्ली आएंगे और चंपाई के साथ भाजपा में शामिल हो जाएंगे। ऐसा कुछ नहीं हुआ। चंपाई के चार विधायक भी मंगलवार को वापस हेमंत सोरेन खेमे में चले गए  

जमीन के एक मामले में ईडी ने हेमंत सोरेन को जनवरी 2024  में गिरफ्तार किया था। हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दिया और अपना उत्तराधिकारी वरिष्ठ पार्टी नेता चंपाई सोरेन को बनाया। लेकिन उसके बाद हाईकोर्ट ने ईडी को फटकार लगाते हुए हेमंत सोरेन को जमानत दे दी। हेमंत सोरने के आने के बाद स्थितियां बदलीं। चंपाई सोरेन से इस्तीफा देने को कहा गया। जुलाई में हेमंत सोरेन फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। चंपाई सोरेन ने इसे अपना अपमान माना। वो एक्स पर ट्वीट करते रहे। झारखंड मुक्ति मोर्चा के चार विधायक और बाहर से कुछ भाजपा विधायक चंपाई सोरेन को थपकी दे रहे थे कि- चंपाई तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। चंपाई ने फ्लाइट पकड़ी, पहले कोलकाता गए, फिर वहां से दिल्ली आए। 

मंगलवार को इस राजनीतिक घटनाक्रम में नाटकीय परिवर्तन हुआ। चंपाई के चार वफादार विधायक रामदास सोरेन (घाटशिला), संजीव सरदार (पोटका), मंगल कालिन्दी (जुगसलाई) और समीर कुमार मोहंती (बहरागोरा) वापस हेमंत के पास आ गए। चारों विधायक हेमंत के आवास पर मिलने पहुंचे और पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबध्दिता दोहराई। 

विधायक रामदास सोरेन ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आवास के बाहर कहा कि शिबू सोरेन हमारे राजनीतिक मसीहा हैं और जेएमएम हमारा घर है। हम कहीं नहीं जा रहे हैं। हेमंत बाबू ने हम लोगों से मुलाकात की और निर्देश दिया कि विधानसभा चुनाव में जीजान से जुट जाएं। क्योंकि बहुत थोड़ा समय बचा है। रामदास सोरेन पूर्वी सिंहभूम जिले के जेएमएम जिला अध्यक्ष भी हैं। रामदास ने इस बात से इनकार किया कि चंपाई ने हेमंत सोरेन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उन लोगों को उकसाया। हम झारखंड मुक्ति मोर्चा में हैं। अगर चंपाई दादा पार्टी में हैं, तो हम भी उनके साथ हैं। जो भी पार्टी में होगा, हम लोग उसके साथ हैं।

उधर, चंपाई के सुर भी बदलते नजर आए। वो मंगलवार को ही रांची वापस चले गए। चंपाई ने जोर देकर कहा कि वो किसी भी भाजपा नेता से नहीं मिले और न यहां वो इस काम के लिए आए थे। दिल्ली में उनका कुछ व्यक्तिगत काम था, इसलिए आए थे। यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ये सब अफवाहें कौन फैला रहा है। चंपाई के नजदीकी लोग चंपाई के अगले कदम को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। वे कुछ भी जानकारी नहीं दे रहे हैं। समझा जाता है कि आने वाले दिनों में चंपाई रैली करेंगे और उसमें अपनी पूरी बात रखेंगे। लेकिन वो रैली किस तरह की होगी, कोई नहीं जानता।

भाजपा की मुहिम फेलरविवार को चंपाई सोरेन ने एक्स पर एक पोस्ट साझा किया था, जिसमें उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए इसकी चर्चा की है कि किन परिस्थितियों में उनके सामने यह नौबत आई है। उन्होंने लिखा है, “आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं।” हालांकि फिलवक्त चंपाई सोरेन ने यह नहीं स्पष्ट किया है कि वे कौन सा विकल्प चुनने जा रहे हैं। चंपाई बिना विकल्प चुने झारखंड लौट गए। झारखंड के विश्लेषक तरह-तरह के कयास लिख रहे थे और वे चंपाई के जरिए आदिवासी सीटों पर भाजपा के लिए संभावनाएं तलाशते दिखे।

चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री के पद से हटाये जाने के बाद से बीजेपी अक्सर हेमंत सोरेन और जेएमएम पर निशाने साधती रही है। अब चंपाई सोरेन ने जब सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर की है, तो बीजेपी के नेताओं ने इसे हाथों हाथ लपक लिया है।

चंपाई को लेकर भाजपा से बयान आने लगे। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, विधायक दल के नेता अमर कुमार बाउरी सरीखे नेताओं ने चंपाई सोरेन की तारीफ़ की। भाजपा दरअसल अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी में है और चंपाई सोरेन को अपने पक्ष में कर महागठबंधन को झटका देने की चाल चल रही थी। यह चाल उस समय से तेज है, जब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा को झारखंड का प्रभारी बनाया गया। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी झारखंड चुनाव की जिम्मेदारी दी गई है।  

झारखंड में अपने संगठन के बल पर चुनाव जीतने में लगातार नाकाम होती रही भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर को अपनी पार्टी में शामिल किया था। हालांकि इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाई थी। चंपाई सोरेन के पास अपना कोई आधार नहीं है। उनका जो कुछ भी आधार है वो झारखंड मुक्ति मोर्चा के दम पर है। इसलिए लगता नहीं कि चंपाई कोई साहस दिखा पाएंगे।