इंडिया गठबंधन की कोई भी बैठक बिना किसी विवाद के खत्म नहीं हुई। अभी तक इंडिया गठबंधन की चार बड़ी बैठकें हो चुकी हैं लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि बैठक का अंत खुशगवार माहौल में नहीं होता। मंगलवार को इंडिया गठबंधन की बैठक दिल्ली के अशोक होटल में हुई। करीब चार घंटे की बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मीडिया को संबोधित किया। सबकुछ ऐसा प्रदर्शित किया जा रहा था कि 28 दलों के नेता बैठक में आए और यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस से ही यह संकेत मिल गया कि सबकुछ ठीक नहीं था।
आमतौर पर इंडिया की हर बैठक के बाद होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस को विपक्ष के सभी प्रमुख नेता बारी-बारी से संबोधित करते हैं। खड़गे के बोलने के बाद उम्मीद थी नीतीश, लालू और ममता भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलेंगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। खड़गे के बोलने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म घोषित कर दी गई। ऐसा क्यों हुआ, आगे पढ़िए।
सूत्रों का कहना है कि आरजेडी संस्थापक लालू यादव और जेडीयू नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कांग्रेस अध्यक्ष का नाम बतौर पीएम पेश करने से खुश नहीं थे। खड़गे का नाम टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी और अरविन्द केजरीवाल ने पेश किया था, जिस पर सभी एकमत थे लेकिन बाद में जब प्रेस कॉन्फ्रेंस संबोधित करने की बारी आई तो लालू और नीतीश दोनों ने मना कर दिया। उनका मना करने का अंदाज ऐसा था, जैसे वो बहुत नाराज हों। बैठक के दौरान ही दोनों नेता उठकर भी चले गए थे।
सूत्रों का कहना है कि लालू और नीतीश दरअसल ममता के रवैए और बयानबाजी से नाराज थे। ममता ने इंडिया गठबंधन की बैठक शुरू होने से पहले मंगलवार सुबह बयान दिया था कि प्रधानमंत्री के नाम का फैसला 2024 के नतीजे आने के बाद किया जाएगा। इससे पहले आप प्रमुख केजरीवाल ने दो बार ममता से मुलाकात की। केजरीवाल सोमवार शाम को ममता से जाकर मिले। फिर मंगलवार सुबह भी वो ममता से मिलने गए, उसके बाद डीएमके प्रमुख स्टालिन से मिलने पहुंचे। हालांकि ये शिष्टाचार मुलाकातें थीं लेकिन केजरीवाल की ममता से दो बार मुलाकात के बाद ममता का बयान आया था लेकिन बैठक में ममता का रुख खड़गे के पक्ष में झुका आया। इस तरह की राजनीति से लालू और नीतीश नाराज थे।
सूत्रों का कहना है कि आरजेडी और जेडीयू नेताओं का मानना था कि तरह-तरह के संदेश जाने से जनता में राय गलत बनती है। ममता बनर्जी ने सुबह कुछ कहा और शाम 4 बजे उनका रवैया कुछ और था। हालांकि खड़गे ने समझदारी दिखाते हुए साफ कर दिया कि अभी प्रधानमंत्री नाम या चेहरे पर कोई बात नहीं, सबसे पहले चुनाव जीतना लक्ष्य है। यही बात उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कही।
खड़गे नहीं तो और कौनः लालू और नीतीश खड़गे का नाम पेश किए जाने पर सहमत नहीं थे तो आखिर उनकी पसंद क्या है। लालू की पसंद राहुल गांधी हैं। लालू कई मौकों पर यह बात कहते रहे हैं कि राहुल गांधी को अगला पीएम बनाया जाना चाहिए। दूसरी तरफ नीतीश कुमार खुद को भी दावेदार मानते हैं। उनकी पार्टी तो लगातार यह संकेत दे रही है कि नीतीश को अगला पीएम चेहरा बनाया जाए। जेडीयू की यूपी यूनिट ने फूलपुर से नीतीश को चुनाव लड़ने का आग्रह किया। जेडीयू ने बाकायदा मांग की कि नीतीश को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाया जाए। नीतीश समर्थकों ने मंगलवार की बैठक से पहले पोस्टरबाजी भी की, जिसमें नीतीश को इंडिया का संयोजक बनाने की मांग की गई।
यह तथ्य है कि नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की शुरुआत की। लेकिन इस शुरुआत से पहले उन्होंने दिल्ली आकर कई दौर की बैठकें मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से की। पटना में 23 जून को विपक्षी एकता की बैठक हुई। नीतीश ही सूत्रधार थे। इस बैठक में 15 दलों के नेता पहुंचे थे। लेकिन आप के केजरीवाल ने कांग्रेस पर हमला करके माहौल बिगाड़ दिया था। उस वक्त उनका एक ही मुद्दा था कि केंद्र के खिलाफ उनकी पार्टी के स्टैंड पर विपक्ष एकजुटता दिखाए। कांग्रेस खेल समझ गई। कांग्रेस उन्हें हीरो बनने का मौका नहीं देना चाहती थी। केजरीवाल भी बैठक के बीच से ही चले गए थे।
विपक्षी गठबंधन की अगली बैठक 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में हुई। 26 दल शामिल हुए। इस बैठक में इंडिया नाम रखा गया। नीतीश इस नाम पर सहमत नहीं थे। नीतीश का कहना था कि विपक्षी एकता का नाम इंडिया नहीं होना चाहिए। लेकिन उनके अलावा सभी इस नाम पर सहमत नजर आए।
इंडिया की तीसरी बैठक मुंबई में 31 अगस्त से 1 सितंबर तक हुई। इस बार 28 दल इस बैठक में मौजूद थे। इसे बहुत कामयाब बैठक माना गया। इसमें इंडिया की कई उपसमितियां बनीं और उन्हें काम सौंपे गए। लेकिन टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी इस बैठक में इस बात पर नाराज थीं कि सीट शेयरिंग पर जल्द से जल्द क्यों नहीं फैसला लिया जा रहा है। उसे टाला नहीं जाना चाहिए। सपा के अखिलेश यादव ने भी उनका समर्थन किया।
इस तरह चौथी बैठक तक किसी न किसी दल के नेता की नाराजगी की खबरें आ जाती हैं। लेकिन दिल्ली में हुई चौथी बैठक में नीतीश और लालू की नाराजगी इंडिया गठबंधन को महंगी पड़ सकती है। चौथी बैठक में एक और भी छोटी सी घटना हुई है, जिसका संज्ञान लेना भी जरूरी है। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस समय अपना आपा खो बैठे, जब डीएमके नेता टी.आर. बालू ने हिन्दी बोलने वाले नेताओं के भाषणों का अनुवाद मांगा। क्योंकि तीन घंटे की बैठक में अधिकांश भाषण हिन्दी में हुए थे। हालांकि राजनीतिक इवेंट में इस घटना का बहुत महत्व नहीं है, लेकिन अगली बैठक में अब इसका भी इंतजाम करना पड़ेगा।