पंजशिर घाटी में रेजिस्टेंस फ्रंट युद्ध ख़त्म करने और तालिबान से बातचीत करने को तैयार है। अफ़ग़ानिस्तान के नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट यानी एनआरएफ़ए के एक प्रमुख नेता अहमद मसूद ने रविवार को समझौते के धार्मिक विद्वानों के प्रस्तावों का स्वागत किया। अहमद मसूद ने फ़ेसबुक पेज पर इसकी घोषणा की। रेजिस्टेंस फ्रंट की ऐसी घोषणा तब आई है जब तालिबान ने कहा है कि उन्होंने पंजशिर के आसपास के ज़िलों को सुरक्षित करने के बाद प्रांतीय राजधानी पंजशिर में अपनी लड़ाई लड़ी। दो दिनों से ऐसी रिपोर्टें आ रही हैं कि तालिबान ने पंजशिर में कब्जा कर लिया है, लेकिन रेजिस्टेंस फ्रंट इन दावों को खारिज करता रहा है।
पंजशिर घाटी ही वह इलाक़ा है जहाँ तालिबान को ज़बरदस्त चुनौती मिली। अमेरिका की वापसी और राष्ट्रपति अशरफ ग़नी के देश से भाग जाने के बाद 15 अगस्त को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था। यानी क़रीब तीन हफ़्ते पहले तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के बाक़ी हिस्सों पर नियंत्रण कर लिया था। इस बीच ख़बर आई थी कि रेजिस्टेंस फ्रंट ने पंजशिर के आसपास के तीन ज़िलों पर भी कब्जा कर लिया था, लेकिन बाद में तालिबान के लड़ाकों ने फिर से उन क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया।
पंजशिर में तालिबान और रेजिस्टेंस फ्रंट के बीच चल रहे युद्ध के बीच अफ़ग़ानिस्तान के धार्मिक नेताओं ने आग्रह किया कि युद्ध बंद हो और बातचीत का रास्ता अपनाया जाए। और इसी बीच रेजिस्टेंस फ्रंट के नेता अहमद मसूद का बयान आया। मसूद ने फ़ेसबुक पोस्ट में कहा, 'एनआरएफ़ए सैद्धांतिक रूप से मौजूदा समस्याओं को हल करने, लड़ाई को तत्काल ख़त्म करने और बातचीत जारी रखने के लिए सहमत है।'
उन्होंने कहा, 'स्थायी शांति के लिए एनआरएफ़ए इस शर्त पर लड़ना बंद करने के लिए तैयार है कि तालिबान भी पंजशीर और अंदराब पर अपने हमलों और सैन्य गतिविधियों को रोक दे।' उन्होंने कहा कि इसके बाद धार्मिक विद्वानों की उलेमा परिषद के साथ सभी पक्षों की एक बड़ी बैठक हो सकती है। रेजिस्टेंस फ्रंट के इस बयान पर तालिबान की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
पंजशिर से तालिबान को चुनौती देते रहने वाले अहमद मसूद, अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। अहमद शाह मसूद तालिबान के ख़िलाफ़ बनी मिलिशिया के नेता थे। वह 1980 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान के सोवियत विरोधी प्रतिरोधी समूह के प्रमुख नेताओं में से एक थे। अहमद शाह मसूद ने ही तालिबान के ख़िलाफ़ नॉर्दन एलायंस बनाया था। 11 सितंबर 2001 के हमले से दो दिन पहले ही अल क़ायदा ने अहमद शाह मसूद की हत्या कर दी थी। इसके बाद अहमद मसूद ने मिलिशिया की कमान संभाली।
अफ़ग़ानिस्तान के अधिकतर हिस्सों में तालिबान के कब्जे के बाद मसूद ने तालिबान विरोधी लोगों को इकट्ठा किया। इसमें स्थानीय लड़ाकों के साथ पूर्व में अफ़ग़ान सेना से जुड़े रहे सैनिक भी शामिल हैं।
इससे पहले भी बातचीत के लिए तालिबान और रेजिस्टेंस फ्रंट के बीच कई प्रयास किए गए, लेकिन वे सफल नहीं रहे। प्रत्येक पक्ष ने अपनी विफलता के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया।
बता दें कि अफ़ग़ानिस्तान में सरकार गठन की तैयारियों के बीच शुक्रवार को तालिबान ने दावा किया था कि पंजशिर भी अब उसके नियंत्रण में है। मीडिया रिपोर्टों में तालिबान के कम से कम तीन सूत्रों ने इसका दावा किया था। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, एक तालिबान कमांडर ने कहा, 'अल्लाह की कृपा से हमने पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है। चुनौती देने वालों को हरा दिया गया है और पंजशीर अब हमारे अधीन है।' हालाँकि, इन रिपोर्टों को स्वतंत्र रूप से पुष्ट नहीं किया जा सका। रेजिस्टेंस फ्रंट ने तालिबान के कब्जे के दावों को खारिज किया था।
पंजशिर में रेजिस्टेंस फ्रंट के नेता अहमद मसूद और अमरूल्लाह सालेह ने एलान किया था कि पंजशिर पर किसी का कब्जा नहीं होने दिया जाएगा। दो दिन पहले ही ख़ुद के पंजशिर छोड़कर भागने की ख़बर को अमरूल्लाह सालेह ने झूठा क़रार दिया था और उन्होंने कहा है कि वह पंजशिर में ही हैं और तालिबान को चुनौती दे रहे हैं।
अहमद मसूद के साथ ही अमरूल्लाह सालेह भी हैं जो तालिबान को चुनौती दे रहे हैं। इस प्रांत में ताजिक समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। सालेह भी इसी समुदाय से आते हैं।