जिस सवाल का जवाब लंबे समय से पूछा जा रहा था कि क्या समूचा विपक्ष लोकसभा चुनावों के पहले एक हो पाएगा, 13 फ़रवरी के दिन इसका जवाब मिलने लगा। वैलेंटाइन डे की पूर्व संध्या पर विपक्षी दलों ने एक दूसरे को 'आई लव यू' कहा और जो एक दूसरे को 'आई लव यू' नहीं कहना चाह रहे थे वे भी एक दूसरे से मिले ज़रूर। देर रात विपक्षी दलो के प्रमुख नेता एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के घर पर बैठे और यह समझ बनी कि चुनाव के पहले एकजुटता दिखाना ज़रूरी है। विपक्षी नेताओं में यह समझ बनी है कि वे लोकसभा चुनाव पूर्व एक झंडे के तले इकठ्टा होंगे यानी चुनाव पूर्व गठबंधन बनेगा। साथ ही एक साझा कार्यक्रम भी बनेगा। विपक्षी एकता की दिशा में यह अत्यंत महत्वपूर्ण क़दम है। इस बैठक में कुल पंद्रह दलों के लोगों ने शिरकत की।
टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने साफ़ शब्दों में कहा, 'हम सब लोग राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ काम करेंगे। हमारा एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम होगा और हम चुनाव पूर्व गठबंधन करेंगे।' ममता का यह बयान काफ़ी अहम है। वह पिछले लंबे समय से राष्ट्रीय स्तर पर सारी विपक्षी पार्टियों को एक झंडे तले लाने की कोशिश में जुटी हैं। बीजेपी और दूसरे आलोचक लगातार यह सवाल खड़े कर रहे थे कि तमाम क्षेत्रीय दलों के बीच गहरे मतभेद हैं और इस नाते इनका एक साथ आना असंभव है। यह भी आरोप लगाया जा रहा था कि इन नेताओं के बीच 'इगो' की लडाई भी तगड़ी है। और हर कोई प्रधानमंत्री बनना चाहता है।
इस बैठक ने यह संकेत दे दिया है कि आपसी मतभेदों के बावजूद विपक्ष मोदी के ख़िलाफ़ एक मंच पर आने को तैयार है। राहुल गांधी का इस बैठक में आना इस संकेत को और मज़बूती देता है।
राहुल गांधी ख़ुद चलकर शरद पवार के घर गए थे। पवार विपक्षी नेताओं में सबसे वरिष्ठ नेता हैं। वह 1991 में कांग्रेस पार्टी में थे और प्रधानमंत्री पद को लिए अपनी दावेदारी भी रखी थी। बाद में नरसिम्हा राव के आगे उन्हें हार माननी पड़ी। सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद शरद पवार ने विदेशी मूल का मुद्दा उठा कर पार्टी छोड़ी थी और एनसीपी का गठन किया था। अब पवार और राहुल गांधी पुरानी बातों को भुलाकर एक साथ काम करना चाहते है। महाराष्ट्र में दोनों दल गठबंधन को तैयार हैं। ऐसे में राहुल का पवार के घर आना बहुत कुछ कहता है। राहुल गांधी ने बाहर निकल कर कहा, 'आज की बैठक अच्छी रही। हम में आज यह सहमति बनी है कि बीजेपी जिस तरह संस्थाओं पर हमले कर रही है उससे मिलकर लड़ना होगा।' राहुल ने यह भी कहा कि हम लोगों ने तय किया है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाना चाहिए और इसके लिये बातचीत भी शुरू हो गई है। हम सब लोग मिलकर बीजेपी को हराएँगे।”
इस बैठक की एक बडी ख़ासियत रही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और 'आप' के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल का पहली बार साथ बैठकर राजनीतिक रणनीति पर चर्चा करना। अभी तक ये दोनों नेता एक दूसरे के साथ खड़े भी होना पसंद नहीं करते थे। इस बैठक के पहले, दिन में, 'आप' की अगुवाई में जंतर मंतर पर संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ रैली हुई। इस रैली में जब सारे नेताओं ने फ़ोटो खिंचाने के लिए हाथ बढ़ाया तो अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस नेता आनंद शर्मा का हाथ थामे देखा गया। यह तस्वीर एक कहानी कहती है।
आनंद शर्मा का हाथ पकड़े अरविंद केजरीवाल की तस्वीर ने चुग़ली की कि जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहा है, यह एहसास विपक्षी दलों को हो रहा है कि अगर आपसी मतभेदों को भुला कर एकजुट नहीं हुए तो मोदी को हटाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी होगा।
राहुल और केजरीवाल के मिलने से इस संभावना को बल मिलता है कि दिल्ली में दोनों दल एक मोर्चे के तहत चुनाव लड़ सकते है और अगर ऐसा हुआ तो फिर बीजेपी के लिए 2014 का प्रदर्शन दोहरा पाना असंभव होगा और हो सकता है वह दिल्ली की सातों सीट हार जाए। हालाँकि 2013 में कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए 'आप' को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया था। इसलिए दोनों दल एक सांथ हो जाएँ तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।
कुछ लोगों को यह भी कहना था कि राहुल और अरविंद के बीच दोस्ती मुश्किल है क्योंकि राहुल इस बात को भूल नहीं पाए हैं कि अरविंद केजरीवाल ने ही सबसे पहले राबर्ट वाड्रा के भ्रष्टाचार का मसला उठाया था, जिसकी वजह से आज वाड्रा के साथ साथ पूरे नेहरू गांधी परिवार की फ़ज़ीहत हो रही है।
'आप' काफी दिनों से दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाने को इच्छुक थी। पर कांग्रेस की तरफ से सकारात्मक जवाब नहीं मिल रहा था। नाराज़ होकर पिछले दिनों 'आप' ने कॉंग्रेस पर तीखे हमले किए। दोनों पार्टियों के बीच तल्ख़ी को कम करने के लिये तेलुगू देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू और ममता बनर्जी ने अहम भूमिका निभाई। इन दोनों नेताओं की पहल पर इस बैठक में दोनों नेताओं के बीच बातचीत भी हुई। हालाँकि अभी यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि दोनों में गठबंधन होगा ही। लेकिन बर्फ़ तो पिघली ही। यह अपने आप में बडा संकेत है। हालाँकि अभी बहुत कुछ होना बाकी है।
अभी यह भी तय होना है कि कांग्रेस और 'आप' अगर साथ आते हैं तो यह दोस्ती सिर्फ़ दिल्ली तक होगी या फिर पंजाब जैसे दूसरे प्रदेशों में भी हाथ मिलेंगे। इसी तरह बंगाल में वाम दलों और टीएमसी के बीच संबंध तय होना बाकी है। केरल में कांग्रेस और लेफ़्ट के बीच क्या भूमिका होगी।
और सबसे बडी बात क्या विपक्षी गठबंधन में कोई प्रधानमंत्री पद का घोषित उम्मीदवार होगा या नहीं। इस बैठक में मायावती शामिल नही हुईं और न ही उनकी तरफ से कोई और बैठक में आया। मायावती के बारे में अटकलें तेज़ है कि वह ख़ुद प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार है। और अभी तक भले ही उन्होने यूपी में अखिलेश यादव के साथ सीटों का बँटवारा कर लिया हो, लेकिन वह राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता की कोशिशों से फ़िलहाल दूर ही रही हैं।
ऐसे में ढेरों सवाल है जिनके हल खोजे जाने हैं। अभी विपक्ष को मीलों चलना है। समय कम है। पर यह ज़रूर कहा जा सकता है कि शुरुआत हो गई है। अंजाम क्या होगा, यह तो ख़ुदा ही जाने।