जब महामारी ने महान उपन्यासकार रोम्यां रोलाँ को दबोचा, कैसे वो भूखों मरने से बचे?

08:30 am May 10, 2020 | हरजिंदर - सत्य हिन्दी

कहते हैं महामारियाँ व्यवहार बदल देती हैं। कुछ अच्छी चीजें अचानक ही बुरी बन जाती हैं और कुछ बुरी चीजें अच्छी मानी जाने लगती हैं। मसलन, अभी चंद रोज़ पहले तक किसी से हाथ मिलाना या उसे गले लगाना गर्मजोशी, दोस्ती और सभ्य व्यवहार का प्रतीक माना जाता था, पर रातों-रात यह सोच बदल गई है। यह व्यवहार और उसे लेकर समाज की सोच किस तरह से बदलती है, इसका एक अच्छा उदाहरण मशहूर लेखक, उपन्यासकार और नाटककार रोम्यां रोलाँ से जुड़ा है, जिन्हें 1918 में स्पैनिश फ्लू की महामारी ने दबोच लिया था।

रोम्या रोलाँ वैसे तो फ्रांस के रहने वाले थे लेकिन एक बार जब वह स्विट्ज़रलैंड गए तो इस बीच पहला विश्वयुद्ध शुरू हो गया और वह वहीं रह गए। स्विट्ज़रलैंड ने इस युद्ध के दौरान ख़ुद को निष्पक्ष देश घोषित कर रखा था और इस लिहाज़ से वह उनके लिए फ्रांस के मुक़ाबले ज़्यादा सुरक्षित भी था। इस बीच 1915 में रोम्या रोलाँ को नोबेल पुरस्कार मिला जिससे वह काफ़ी प्रसिद्ध भी हो गए थे। 1918 में जब विश्व युद्ध लगभग ख़त्म हो चुका था तो रोम्या रोलाँ जिनेवा लौटे। जहाँ वह अपनी माँ के पास घर जाने के बजाए एक होटल में ठहरे।

जल्द ही साफ़ हो गया कि रोम्यां रोलाँ अकेले नहीं आए, उनके साथ स्पैनिश फ्लू भी आया है। यह जानकारी मिलते ही होटल के कर्मचारियों का बर्ताव बदल गया। उन्होंने इस महान साहित्यकार के पास जाना तो दूर उनके कमरे की ओर जाने से भी इनकार कर दिया। यहाँ तक कि उन्हें खाना मिलना भी बंद हो गया, लगा कि जल्द ही उनके भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। यह ख़बर जब उनकी माँ को लगी तो उन्होंने रोज़ खाना पहुँचाना शुरू कर दिया। इस भोजन की बदौलत रोम्या रोलाँ न सिर्फ़ बच पाए बल्कि उन्होंने स्पैनिश फ्लू को भी मात दे दी।

होटल के कर्मचारियों ने उनके साथ जो बर्ताव किया उसकी निंदा की जानी चाहिए थी। यह बर्ताव न सिर्फ़ होटल और आतिथ्य क़ारोबार की पेशेवर नैतिकता के लिहाज़ से ग़लत था बल्कि मानवीयता के लिहाज़ से भी इसे सही नहीं ठहराया जा सकता था। लेकिन जिनेवा में इसे लेकर जो प्रतिक्रिया हुई वह काफ़ी अलग थी। यह कहा गया कि उन कर्मचारियों का बर्ताव सही था, क्योंकि अगर वे रोम्या रोलाँ से मिलते तो उनके ज़रिए यह महामारी पूरे शहर में फैल सकती थी। बाद में एक तर्क यह भी गढ़ा गया कि व्यवहार भले ही ग़लत हो लेकिन इससे उस होटल के कमरे में वे परिस्थितियाँ बन गईं जो ऐसे में किसी रोगी के क्वॉरंटीन के लिए ज़रूरी होती हैं।

बेशक इस तरह की सोच के पीछे एक कारण यह भी था कि उस समय फ्रांस पर यह आरोप लग रहा था कि उसने ही पूरी दुनिया को महामारी में झोंका है। रोम्या रोलाँ मूल रूप से फ्रांस के ही थे और अपने साथ महामारी को लेकर आए थे इसलिए वे निशाने पर आने से कैसे बच सकते थे

होटल कर्मचारियों के इस बर्ताव की भले ही कुछ लोगों ने तारीफ़ की हो लेकिन ऐसा नहीं हुआ कि इससे जिनेवा हमेशा के लिए बच गया हो। बाक़ी दुनिया की तरह बहुत जल्द स्पैनिश फ्लू स्विट्ज़रलैंड की राजधानी जिनेवा भी पहुँच गया। आँकड़े बताते हैं कि जल्द ही इस महामारी ने उस देश की 50 फ़ीसदी आबादी को संक्रमित कर दिया। तक़रीबन पूरी दुनिया में ही स्पैनिश फ्लू का यही बर्ताव था।