देश की आर्थिक स्थिति को लेकर पहले जिस तरह का अनुमान लगाया गया था, उस तरह की स्थिति नहीं दिखती है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ ने 2022-23 में देश की जीडीपी वृद्धि दर 7 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया है। ताज़ा अनुमान सरकार के 8-8.5 प्रतिशत की वृद्धि के पहले के पूर्वानुमान की तुलना में बहुत कम है। पिछले वित्त वर्ष में यह जीडीपी वृद्धि दर 8.7 फ़ीसदी रही थी। तो क्या वैश्विक मंदी का असर भारत पर भी बुरा पड़ रहा है? आख़िर किस वजह से जीडीपी वृद्धि दर में यह गिरावट आने का अनुमान है?
एनएसओ के आँकड़ों से पता चलता है कि देश के विनिर्माण क्षेत्र के ख़राब प्रदर्शन से जीडीपी पर असर पड़ रहा है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एनएसओ ने विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में वित्त वर्ष 2022 में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले 1.6 प्रतिशत रहने की भविष्यवाणी की है।
एनएसओ के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में कृषि क्षेत्र में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में दर्ज 3 प्रतिशत से अधिक है। व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और सेवाएँ 2021-22 में 11.1 प्रतिशत से 13.7 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। हालांकि, निर्माण क्षेत्र की वृद्धि एक साल पहले के 11.5 प्रतिशत से घटकर 9.1 प्रतिशत रहने की संभावना है।
अब यदि एनएसओ के इस अनुमान के अनुसार भारत की वृद्धि दर रहती है तो सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था का टैग भारत खो सकता है। ऐसा इसलिए कि पहले जीडीपी के 8-8.5 प्रतिशत की वृद्धि का पूर्वानुमान था और यह दूसरे सभी देशों से ज़्यादा था। लेकिन ताज़ा पूर्वानुमान के अनुसार भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7 फ़ीसदी रहती है तो यह सऊदी अरब के अनुमानित 7.6 प्रतिशत से कम होगी।
बता दें कि हाल ही में दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर की जीडीपी का आँकड़ा आया है। इस तिमाही में जीडीपी विकास दर 6.3 फ़ीसदी रही। यह पिछली तिमाही से आधे से भी कम है। अप्रैल-जून की तिमाही में अर्थव्यवस्था 13.5 फ़ीसदी की दर से बढ़ी थी।
दूसरी तिमाही की वृद्धि दर की रफ़्तार कितनी धीमी है इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले साल यानी 2021-22 की इसी तिमाही में जीडीपी में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
हालाँकि, इस साल की जनवरी-मार्च की तिमाही में 4.1 फ़ीसदी से जब अप्रैल-जून की तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 13.5 फ़ीसदी की रफ़्तार से बढ़ी थी तो कुछ लोग काफ़ी उत्साहित थे। जबकि वह आँकड़ा भी अपेक्षा से काफ़ी कम था। आरबीआई ने अगस्त महीने की शुरुआत में ही जीडीपी की पहली तिमाही के आँकड़े आने से पहले कहा था कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगभग 16.2 प्रतिशत होगी। लेकिन इससे क़रीब 3 फ़ीसदी प्वाइंट कम ही रही थी।
भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक वित्तीय स्थितियों के मद्देनज़र आरबीआई ने दिसंबर में चालू वित्त वर्ष के लिए देश की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 7 प्रतिशत से घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है। यानी आरबीआई के अनुमान की मानें तो वृद्धि दर एनएसओ के अनुमान 7 फ़ीसदी से भी कम रहने की संभावना है।
बता दें कि दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है और इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। यह असर मामूली नहीं है, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख देने वाला है। यह मंदी लाने वाला है। यह बात शोधकर्ता ही कह रहे हैं। सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च के अनुसार, दुनिया की अर्थव्यवस्था 2023 में मंदी की ओर बढ़ रही है।
महंगाई और बेरोजगारी 2022 की सबसे बड़ी चिंताएँ थीं जो वो विरासत में 2023 को सौंप गया है। और साथ में सौंप गया है एक ख़तरनाक, लंबी और तकलीफदेह मंदी की आशंका। दुनिया के ज्यादातर अर्थशास्त्री यही कह रहे हैं कि इस साल, खासकर आर्थिक मोर्चे पर, भारी उतार चढ़ाव देखने पड़ेंगे। 2008 की आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी करनेवाले अर्थशास्त्री नूरिएल रुबिनी तो कह चुके हैं कि दुनिया 1970 के दौर जैसी विकट आर्थिक स्थिति की ओर जा रही है।