क्या भारत में किसी बड़े नेता, सांसद, विधायक या अधिकारी पर कोरोना को लेकर नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माना लगा है? क्या इसकी कल्पना भी की जा सकती है? भारत में भले ऐसा है, लेकिन कई देशों में तो प्रधानमंत्री तक नहीं बख्शे जाते। नॉर्वे के प्रधानमंत्री पर भी ऐसा ही जुर्माना लगा है।
नॉर्वे की पुलिस ने कहा है कि शुक्रवार को इसने प्रधानमंत्री एर्ना सोल्बर्ग पर जुर्माना लगाया है। सोल्बर्ग ने अपना जन्मदिन मनाने के लिए परिवारिक लोगों के लिए एक आयोजन किया था। पुलिस ने उनके इस कार्यक्रम को कोरोना के सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को तोड़ने वाला बताया और इसीलिए उन पर 20 हज़ार नॉर्वेजियन क्राउन यानी क़रीब 2352 डॉलर का जुर्माना लगाया। 2352 डॉलर भारतीय मुद्रा में क़रीब 1 लाख 76 हज़ार रुपये हुआ।
उनपर यह जुर्माना तब लगाया गया है जब पिछले महीने ही अपने जन्मदिन समारोह के लिए उन्होंने माफ़ी मांगी थी। उन्होंने फ़रवरी के आख़िर में यह आयोजन तब किया था जब नॉर्वे में 10 से ज़्यादा लोगों के इकट्ठे होने पर प्रतिबंध था। उनके कार्यक्रम में परिवार के 13 सदस्य शामिल हुए थे। नॉर्वे में फ़रवरी के उन दिनों में हर रोज़ 300-500 कोरोना संक्रमण के मामले आ रहे थे और तब सक्रिए मामलों की संख्या क़रीब 6 हज़ार के आसपास थी।
इसके बावजूद नॉर्वे की पुलिस का बयान काफ़ी अहम है और सीख देने वाला है। उसने बयान में कहा है कि ऐसे अधिकतर मामलों में पुलिस ने जुर्माना नहीं लगाया होता, लेकिन प्रधानमंत्री कोरोना से जुड़ा प्रतिबंध लागू करने में सरकार में सबसे अग्रणी हैं। 'रायटर्स' की रिपोर्ट के अनुसार, जुर्माने को लेकर एक बयान में कहा गया कि 'हालाँकि सभी के लिए क़ानून बराबर है, लेकिन क़ानून की नज़र में सभी बराबर नहीं हैं।' बयान में यह भी कहा गया कि इसलिए सामाजिक प्रतिबंधों पर नियमों में आम जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए जुर्माना जारी करना सही है।
पुलिस ने कहा कि प्रधानमंत्री सोल्बर्ग के साथ ही उनके पति सिंद्रे फिनिस भी जन्मदिन के कार्यक्रम के फ़ैसले के लिए उतने ही ज़िम्मेदार थे, लेकिन उन पर जुर्माना नहीं लगाया गया।
प्रधानमंत्री सोल्बर्ग ने कोरोनो वायरस के संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए सख्त नियम बनाए हैं, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ पूरे यूरोप की अपेक्षा संक्रमण और मौतों की सबसे कम दर है। देश में अब तक 1 लाख 3 हज़ार संक्रमण के मामले आए हैं और 684 मौतें हुई हैं।
अब नॉर्वे की तुलना भारत से करके देखें तो अजीबो गरीब स्थिति दीखती है। नॉर्वे में जहाँ हर रोज़ 300-500 केस आ रहे थे वहाँ सोशल डिस्टेंसिंग के नियम तोड़ने पर प्रधानमंत्री पर जुर्माना लगाया गया, वहीं भारत में स्थिति अलग है। यहाँ हर रोज़ एक लाख से ज़्यादा पॉजिटिव केस आ रहे हैं, रविवार को तो 1 लाख 68 हज़ार केस आए, लेकिन यहाँ चुनावी रैलियाँ धड़ल्ले से हो रही हैं। राजनीतिक दलों के नेता चुनावी रैलियों में ज़्यादा से ज़्यादा भीड़ दिखाती हुई तसवीरों को गर्व से ट्वीट कर रहे हैं। बेखौफ! जितना ज़्यादा ऐसे लोग नियमों से बैखौफ हैं उतने ही ज़्यादा कोरोना बेकाबू है, लेकिन शायद ही उन लोगों को कोई फर्क पड़ रहा है। माफ़ी मांगने और जुर्माने की तो बात ही दूर है।
दिल्ली के हाई कोर्ट ने हाल ही में कार को सार्वजनिक जगह क़रार देते हुए एक फ़ैसला दिया कि उस गाड़ी में अकेले जा रहे व्यक्ति को भी मास्क पहनना ज़रूरी होगा और ऐसा नहीं करने पर जुर्माना लगाया जाएगा। उम्मीद थी कि इस फ़ैसले के बाद नेता चुनावी रैलियों में भीड़ इकट्ठी करने में संकोच करेंगे, पर ऐसा होता दीखा नहीं।
पश्चिम बंगाल से लेकर असम और केरल व तमिलनाडु तक मुख्यमंत्रियों से लेकर देश के गृह मंत्री व प्रधानमंत्री सहित कई केंद्रीय मंत्री चुनावी रैली करते रहे। तब भी जब कहा गया कि देश में कोरोना की दूसरी लहर आ गई है। वे तब भी रैली करते रहे जब भारत में कोरोना के केस दुनिया में सबसे ज़्यादा आने लगे। वे तब भी रैली करते रहे जब देश के ही कुछ राज्यों में रात का कर्फ्यू लगाया गया, कुछ ज़िलों में लॉकडाउन लगाया गया, लोगों को सड़कों पर मास्क नहीं पहनने के लिए पीटा गया, सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं करने पर आम लोगों पर जुर्माना लगाया जाता रहा।
अजीब विडंबना देखी गई कि जो लोग देश में उच्चस्तरीय बैठकों में तो यह कहते रहे कि लोगों को इकट्ठा नहीं होना है, मास्क पहनना है, सामाजिक दूरी का ध्यान रखना है उन्हीं लोगों की चुनावी रैलियों में इनका खुलेआम उल्लंघन होता रहा। देश की पुलिस ने क्या किया, सबने देखा!