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एक बार फिर महागठबंधन संग सरकार बनाएंगे नीतीश

एक बार फिर महागठबंधन संग सरकार बनाएंगे नीतीश

नीतीश पहले भी महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार चला चुके हैं। देखना होगा कि इस बार यह सरकार कितना लंबा सफर तय करेगी? 

बिहार में आखिरकार बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन टूट गया और अब महागठबंधन के साथ नई सरकार सत्ता में आएगी। मंगलवार सुबह से ही पटना से लेकर दिल्ली तक यह सियासी चर्चा जोरों पर थी कि नीतीश कुमार आज एक बार फिर बीजेपी से अपना सियासी रिश्ता खत्म कर देंगे। ऐसा ही हुआ और शाम को 4 बजे के आसपास नीतीश कुमार राज्यपाल फागू चौहान के पास पहुंचे और उन्हें अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया। इसके साथ ही उन्होंने नई सरकार बनाने का दावा भी पेश किया है।

ऐसा पहली बार नहीं होगा जब नीतीश और महागठबंधन मिलकर बिहार में सरकार बनाएंगे। साल 2013 में जब नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़ा था तब भी उन्होंने महागठबंधन के साथ सरकार बनाई थी और जुलाई, 2017 तक यह सरकार चली थी। 

नीतीश ने 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। तब नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने थे जबकि लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने थे। 

लेकिन 2017 में उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया था और बीजेपी और अन्य दलों के साथ सरकार बनाई थी लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके पास ही रही थी। 

नीतीश ने 2020 का चुनाव बीजेपी, विकासशील इंसान पार्टी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के साथ मिलकर लड़ा था और सत्ता में उनकी वापसी हुई थी। लेकिन इस बार यह साथ ज्यादा नहीं चला और नवंबर, 2020 में बनी एनडीए सरकार दो साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सकी।

पुराना है साथ 

बीजेपी और नीतीश का साथ पुराना है। 1995 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के हाथों हार मिलने के बाद नीतीश कुमार की अगुवाई वाली समता पार्टी ने 1996 में बीजेपी के साथ गठबंधन किया था। इसके बाद समता पार्टी जेडीयू में शामिल हो गई लेकिन बीजेपी के साथ उसका गठबंधन बना रहा। 

बीजेपी के सहयोग से ही नीतीश कुमार साल 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने हालांकि तब यह कार्यकाल सिर्फ 7 दिन का ही रहा। लेकिन 2005 और 2010 में वह बीजेपी के सहयोग से फिर से मुख्यमंत्री चुने गए थे।

 - Satya Hindi

बीजेपी नेताओं की सियासी महत्वाकांक्षा 

2013 में नीतीश के बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने से पहले और 2017 में फिर से गठबंधन करने के बाद बिहार बीजेपी के नेताओं के मन में यह सियासी महत्वाकांक्षा पनप चुकी थी कि राज्य में अब मुख्यमंत्री जेडीयू का नहीं बीजेपी का होना चाहिए। कई नेताओं ने इस महत्वाकांक्षा को खुलकर सामने भी रखा। लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व जानता था कि नीतीश कुमार के बिना राज्य में सरकार बनाना बेहद मुश्किल है।

ऐसे में जब 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू की सीटें 2015 की 71 सीटों के मुक़ाबले 43 ही रह गईं, तो बीजेपी के नेताओं की सियासी महत्वाकांक्षाओं ने एक बार फिर सिर उठाया। उन्हें उम्मीद थी कि अब राज्य में बीजेपी का मुख्यमंत्री बनेगा लेकिन उनकी हसरत पूरी नहीं हुई। हालांकि बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री बनाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगातार सक्रिय रहे। इस क्रम में मुकेश सहनी की वीआईपी के 3 विधायकों को भी बीजेपी में शामिल कराया गया। 

शिवसेना में एकनाथ शिंदे के द्वारा की गई बगावत से सतर्क हुए और बिहार बीजेपी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बढ़ते नियंत्रण और दखल की वजह से असुरक्षित महसूस कर रहे नीतीश ने बीजेपी से अलग होने का मन बना लिया था।

सरकार के सामने चुनौतियां 

विपक्षी दलों के महागठबंधन और नीतीश कुमार को लगभग डेढ़ साल बाद लोकसभा चुनाव 2024 के साथ ही विधानसभा चुनाव 2025 का भी मुकाबला करना है।

दूसरी ओर, बीजेपी भी नीतीश पर हमलावर रहेगी। ऐसे में नीतीश कुमार और महागठबंधन के सामने भी चुनौतियां बहुत ज्यादा हैं क्योंकि 2020 में यह दल एक-दूसरे के आमने-सामने रहे थे। ऐसे में आने वाले दिन बिहार की सियासत में निश्चित रूप से दिलचस्प रहेंगे। 

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