लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले से ही पश्चिम बंगाल बीजेपी के फोकस वाले शीर्ष राज्यों में था। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने मोर्चा संभाला था। बीजेपी की ओर से सरकार के ख़िलाफ़ संदेशखाली, नागरिकता क़ानून और तमाम घोटाले जैसे मुद्दे उठाए गए। चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम बंगाल में 27 लोकसभा सीटों के लिए 22 जनसभाएं और एक रोड शो किए। लेकिन बीजेपी इन 27 सीटों में से 20 सीटों पर हार गई। यही नहीं वह 2019 की जीती हुई 5 सीटें भी नहीं बचा पाई। आख़िर ऐसा क्यों हुआ? इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? क्या शुभेंदु अधिकारी इस हार के लिए निशाने पर हैं?
इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि चुनाव में क्या स्थिति रही है। पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से टीएमसी 29, बीजेपी 12 और कांग्रेस 1 सीट पर जीत दर्ज कर सकी है। बीजेपी का यह 2019 से भी ख़राब प्रदर्शन है। कूचबिहार, बांकुरा, मेदिनीपुर, बैरकपुर और झारग्राम सीटें भी हाथ से निकल गईं। जिन 12 सीटों पर पार्टी जीती है उनमें भी जीत का अंतर कुछ उल्लेखनीय नहीं है।
पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव की सफलता को दोहराने में विफल रहने और जमीन खोने के साथ बीजेपी की राज्य इकाई में दरारें एक बार फिर खुलकर सामने आ गई हैं। इसमें कम से कम दो प्रमुख नेताओं ने हाल के दिनों में राज्य नेतृत्व की आलोचना की है। पार्टी के बिष्णुपुर के सांसद सौमित्र खान ने बुधवार को पहला वार किया जब उन्होंने कहा, 'अगर आरएसएस और केंद्रीय भाजपा नेतृत्व के प्रयास नहीं होते, तो हम जितनी सीटें जीत पाए, उतनी भी नहीं जीत पाते। हम एक भी सीट नहीं जीत पाते। पार्टी में कोई अनुभवी नेता नहीं है, जिसने अपने करियर में चुनावी सफलता का अनुभव किया हो। नेताओं में संगठनात्मक ज्ञान की भी कमी है।' सौमित्र ने अपनी पूर्व पत्नी और टीएमसी उम्मीदवार सुजाता मंडल को क़रीब 5 हज़ार वोटों से हराया है। उन्होंने राज्य के नेतृत्व पर इस हार का ठीकरा फोड़ा।
पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और पार्टी के बर्धमान-दुर्गापुर उम्मीदवार दिलीप घोष भी टीएमसी के कीर्ति आजाद से 1.38 लाख वोटों से हार गए।
उन्होंने भी राज्य नेतृत्व पर निशाना साधा। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का नाम लिए बिना घोष ने बुधवार को कहा, 'षड्यंत्र और चुगली राजनीति का हिस्सा हैं। मैं उन्हें इसी तरह लेता हूं। इसके बावजूद मैंने काफी मेहनत की, लेकिन सफलता नहीं मिली। राजनीति में हर कोई डंडा लेकर घूमता है। पार्टी 2021 तक तेज गति से आगे बढ़ रही थी, जो उसके बाद किसी तरह अटक गई। हम उसी गति से आगे नहीं बढ़ सके जिस गति से हम 2021 तक आगे बढ़ रहे थे। हमने इस साल काफी उम्मीदें रखी थीं, लेकिन प्रदर्शन नहीं कर सके। कुछ कमी जरूर रही होगी। हमें इसकी जांच करनी चाहिए। हर चीज पर चर्चा होनी चाहिए।'
दिलीप घोष को 2021 में राज्य भाजपा अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। इसके अलावा, उन्हें उनकी मेदिनीपुर सीट से हटाकर बर्धमान-दुर्गापुर भेद दिया गया था, जिसे इस चुनाव में टीएमसी ने वापस हासिल कर लिया।
अंग्रेज़ी अख़बार के अनुसार भाजपा के कुछ अंदरूनी सूत्रों ने आरोप लगाया कि शुभेंदु ने घोष की स्थिति को कमजोर करने के लिए निर्णय को प्रभावित किया।
राज्य में बीजेपी के ख़राब प्रदर्शन के लिए राज्य भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार निशाने पर हैं। उन्होंने पार्टी की हार की जिम्मेदारी ली, लेकिन उन्होंने किसी का नाम लिए बिना कहा, 'राज्य अध्यक्ष के तौर पर मुझे इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। शायद मैं हर फैसला नहीं ले सकता। किसी ने तो फैसला लिया था। लेकिन मुझे ही इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।' राज्य भाजपा प्रमुख ने खुद उत्तर बंगाल में बालुरघाट सीट पर 10 हज़ार वोटों से जीत दर्ज करके मुश्किल से अपनी सीट बचाई।
अख़बार ने भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के हवाले से बताया है कि राज्य की 42 सीटों में से 34 सीटों पर उम्मीदवार चुनने में अधिकारी की भूमिका रही। इनमें से सात सीटों पर उम्मीदवार जीते। विपक्ष के नेता और उनके खेमे के सदस्यों ने पार्टी के भीतर से हो रही आलोचना पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। सूत्रों ने यह भी कहा कि बंगाल में आरएसएस नेतृत्व अधिकारी की भाजपा में भूमिका से खुश नहीं है। रिपोर्ट है कि संघ चाहता है कि घोष मेदिनीपुर विधानसभा उपचुनाव लड़ें, जिसपर टीएमसी के मेदिनीपुर सांसद जून मलैया को अब विधानसभा सीट खाली करने पर उपचुनाव होगा। भाजपा के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, 'अगर वह जीतते हैं, तो दिलीप घोष को शुभेंदु अधिकारी की जगह राज्य विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया जा सकता है। हालाँकि, इसकी अभी तक आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई है।