विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि मंकीपॉक्स के अब तक कम से कम 19 देशों में मामले सामने आ चुके हैं। इसने कहा है कि इन देशों में मंकीपॉक्स के अब तक 131 मामले पुष्ट किए जा चुके हैं और 106 संदिग्ध मामले हैं जिनकी पुष्टि की जानी बाक़ी है। इसी के साथ कनाडा में 10 नये मामलों की पुष्टि हुई है और इस तरह वहाँ अब तक 15 मामले आ चुके हैं।
कनाडा में स्वास्थ्य अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने क्यूबेक में मंकीपॉक्स के 10 नए मामलों की पहचान की है। मंकीपॉक्स यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हाल के हफ्तों में पाया गया है। यूके, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी, बेल्जियम, फ्रांस, नीदरलैंड, इटली और स्वीडन जैसे देशों में मामलों की पुष्टि हुई है।
यह आम तौर पर अफ्रीका में उत्पन्न होने वाली एक दुर्लभ बीमारी है जो आमतौर पर अपने आप ठीक हो जाती है। लेकिन कभी कभी अफ्रीका के बाहर भी इसके मामले सामने आए हैं। 2003 में अमेरिका में कम से कम 71 मामले आए थे। तब मंकीपॉक्स किसी यात्री से नहीं फैला था, बल्कि अफ्रीकी देश घाना से आयात किए गए रोडेंट (चूहे) की वजह से फैला था। उन रोडेंट ने तब पालतू कुत्तों को संक्रमित किया, और फिर अमेरिकी लोग संक्रमित हुए।
मंकीपॉक्स एक संक्रामक बीमारी है जो संक्रमित जानवरों, आमतौर पर रोडेंट से मनुष्यों में फैलती है। वायरस को पहली बार 1958 में मैकाक के एक समूह में खोजा गया था, जिसका अध्ययन अनुसंधान उद्देश्यों के लिए किया जा रहा था।
तो क्या इसकी कोई वैक्सीन बनी है? मंकीपॉक्स के लिए कोई विशिष्ट टीका नहीं है, लेकिन कुछ रिपोर्टों में चेचक वाले टीके को 85% सुरक्षा प्रदान करता बताया गया है क्योंकि दोनों वायरस काफी समान हैं।
इस बीमारी के लिए अलग से कोई वैक्सीन नहीं बनी है, लेकिन स्मॉलपॉक्स यानी चेचक के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वैक्सीन को लगाया जा रहा है।
हालाँकि, ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार इसके भी मामले सामने आए हैं जिसमें स्मॉलपॉक्स की वैक्सीन लगाए व्यक्ति को मंकीपॉक्स का संक्रमण हो गया।
बीमारी के लक्षण
यह सिरदर्द और बुखार से शुरू होता है। ये सामान्य चीजें हैं जो एक वायरल संक्रमण होने पर शरीर में होती हैं। संक्रमण होने से शरीर की रक्षा प्रणाली काम शुरू करती है और इस वजह से सिरदर्द और बुखार होता है। सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द होता है। फिर, एक या दो सप्ताह के भीतर कुछ लोगों को दाने हो जाते हैं जो फुंसी के रूप में उठ आते हैं। लेकिन जब शरीर की रक्षा प्रणाली जब पूरी तरह एक्टिव हो जाती है तो उस संक्रमण को ख़त्म कर देता है। लेकिन इसके लिए मरीज की अच्छी तरह डॉक्टर की देखभाल की ज़रूरत होती है।
कितना घातक है यह?
अफ्रीका से बाहर फैली इस बीमारी से अब तक शून्य मौतें हुई हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार मध्य अफ्रीकी नस्ल के लिए 1-3 प्रतिशत मृत्यु दर या 10-13 प्रतिशत मृत्यु दर भी देखी गई है। इस बीमारी की मृत्यु दर इस बात पर निर्भर करती है कि रोगियों की देखभाल कैसे की जाती है। यदि कोई मरीज घर पर है, जहां कोई ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है, कोई आईसीयू नहीं है, कोई चिकित्सा पेशेवर मरीज की देखभाल नहीं कर रहा है तो उसकी मृत्यु का जोखिम अधिक है। ग्रामीण अफ्रीका में मृत्यु दर ज़्यादा रही है, लेकिन अच्छी स्वास्थ्य देखभाल और दवाओं वाले देशों में मृत्यु दर 1 प्रतिशत से नीचे या 0 प्रतिशत रही है।