टाइम्स नाउ और ज़ी न्यूज़ के बाद अब न्यूज़ नेशन टीवी चैनल के एक कार्यक्रम को मीडिया इथिक्स यानी आचार संहिता का उल्लंघन करने वाला पाया गया है। न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी यानी एनबीडीएसए ने 15 नवंबर को अपने आदेश में न्यूज़ चैनल न्यूज़ नेशन के 6 नवंबर, 2020 के कार्यक्रम 'धर्मांतरण जिहाद' वाले वीडियो को हटाने का आदेश दिया है। इसके ख़िलाफ़ की गई शिकायत का हवाला देते हुए एनबीडीएसए ने कहा है कि प्रसारण के दौरान निष्पक्ष रहने में विफल रहने पर ब्रॉडकास्टर को अपने एंकरों के ख़िलाफ़ सुधार करने वाली कार्रवाई करनी चाहिए।
देश में टीवी न्यूज़ चैनलों के स्वनियमन के लिए निजी और स्वैच्छिक संस्था एनबीडीएसए का गठन किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता में एनबीडीएसए काम कर रहा है। हाल के दिनों में इस संस्था ने एक के बाद एक कई अहम फ़ैसले दिए हैं।
एक एनजीओ सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस ने न्यूज़ नेशन के ख़िलाफ़ 'धर्मांतरण जिहाद' कार्यक्रम के ख़िलाफ़ शिकायत की थी। उस शिकायत पर एनबीडीएसए ने कहा, 'प्रसारक को आत्मनिरीक्षण करने की ज़रूरत थी और इसे उन एंकरों के ख़िलाफ़ उपचारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए जो प्रसारण के दौरान तटस्थ और निष्पक्ष रहने में विफल रहते हैं। एनबीडीएसए ने यह भी देखा कि जिस तरह से एंकर कार्यक्रम करते हैं, उनको उसके बारे में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।'
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, एनजीओ द्वारा न्यूज़ नेशन के ख़िलाफ़ एनबीडीएसए में दर्ज कराई गई शिकायत में दावा किया गया था कि न्यूज़ नेशन के एंकर दीपक चौरसिया ने मौलाना सैयद उल कादरी को बुलाया और उन्हें पूरे मुसलिम की ओर से माफी मांगने के लिए मजबूर किया। शिकायत में यह भी कहा गया कि पूरे समुदाय और मौलाना का ऑन-एयर अपमान किया गया और उन्हें झूठ की फैक्ट्री कहा गया।
कार्यक्रम को नफ़रत फैलाने वाला क़रार दिया गया। शिकायत में यह भी कहा गया है कि इस्लामोफोबिया वाले विचारों को बढ़ावा देने और लोगों को धर्म-विरोधी व राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है।
इस पर न्यूज़ नेशन ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि न तो एंकर और न ही ब्रॉडकास्टर विवादित कार्यक्रम में मौजूद अन्य पैनलिस्ट द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों या उनके कार्यों के लिए उत्तरदायी थे।
इसके बावजूद न्यूज़ नेशन ने सफ़ाई में कहा है कि अगर किसी बात या किसी बयान से किसी भी स्तर पर किसी को ठेस पहुंची हो तो वह माफी मांगता है।
दोनों पक्षों यानी शिकायत और इस पर आई प्रतिक्रिया देखने के बाद एनबीडीएसए ने निष्कर्ष निकाला कि चैनल ने सिर्फ़ सामान्यीकृत जवाब दिया और वह शिकायतकर्ता की शिकायतों पर कोई विशिष्ट जवाब देने में विफल रहा।
इसी कारण एनबीडीएसए ने न्यूज़ नेशन को 'धर्मांतरण जिहाद' पर उसके कार्यक्रम के सभी वीडियो को हटाने का आदेश दिया और सात दिन में इसकी जानकारी प्राधिकरण को देने को कहा।
इससे पहले ऐसा ही आदेश एनबीडीएसए ने ज़ी न्यूज़ को लेकर दिया था। इसने 19 नवंबर को अपने आदेश में कहा है कि ज़ी न्यूज़ के वे तीन वीडियो आपत्तिजनक हैं जिनमें किसान आंदोलन को खालिस्तानियों से जोड़ा गया था।
एनबीडीएसए ने दो कार्यक्रमों के वीडियो के अलावा एक अन्य वीडियो में भी पाया कि ज़ी न्यूज़ ने झूठी रिपोर्ट दी थी कि लाल क़िले से भारतीय ध्वज हटा दिया गया था। एनबीडीएसए ने ज़ी न्यूज़ को उन प्रसारणों के वीडियो को तुरंत हटाने का निर्देश दिया। उसने कहा है कि ये वीडियो यदि अभी भी चैनल की वेबसाइट, यूट्यूब, या किसी अन्य लिंक पर उपलब्ध हैं तो उन्हें हटाया जाए।
ज़ी न्यूज़ ने इसी साल 19 जनवरी और 20 जनवरी को दो कार्यक्रम प्रसारित किए थे। 'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार उन कार्यक्रमों का शीर्षक "ताल ठोक के: खालिस्तान से कब सावधान होगा किसान?" और "ताल ठोक के: नहीं माने किसान तो क्या गणतंत्र दिवस पर होगा 'गृह युद्ध'?" इन्हीं को लेकर शिकायत की गई थी।
टाइम्स नाउ के मामले में प्रधान संपादक राहुल शिवशंकर के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज की गई थी। उन्होंने 'इंडिया अपफ्रंट' शो की मेजबानी की थी। उनके 14 सितंबर के कार्यक्रम के लिए "उमर की गिरफ्तारी में चौंकाने वाला रहस्य खुला, क्या वामपंथी लॉबी सच जानती है कि दिल्ली दंगों के प्रमुख गवाह को धमकी सरगना से जुड़ी है?' शिकायतकर्ता उत्कर्ष मिश्रा ने एनबीडीएसए को लिखा कि राहुल शिवशंकर ने 'वामपंथियों की गुप्त बैठक' के बारे में बात की, जबकि बैठक वास्तव में जूम कॉल पर एक वेबिनार थी जिसे फेसबुक पर लाइव वीडियो के रूप में अपलोड किया गया था। शिकायत में कहा गया है, 'प्रसारक ने चर्चा की प्रकृति और उद्देश्य को लेकर स्पष्ट रूप से दर्शकों को गुमराह करने और समुदायों के बीच शत्रुता बढ़ाने का प्रयास किया।'