मथुरा शाही ईदगाह को लेकर हिन्दू संगठनों का नया आंदोलन सरकार के लिए नई चुनौती बन गया है। अखिल भारत महासभा और अन्य हिंदू संगठनों ने आज मंगलवार 6 दिसंबर को ईदगाह में हनुमान चालीसा पढ़ने और सरयू, सोरो और काशी से जल लाकर यहां चढ़ाने की घोषणा की है। इस घोषणा के मद्देनजर सरकार ने यहां सैकड़ों की तादाद में पुलिस बल तैनात कर दिया है। ड्रोन से ईदगाह पर नजर रखी जा रही है। पुलिस ने ईदगाह की तरफ कांवड़ लेकर बढ़ रहे एक युवक को हिरासत में भी लिया है। पुलिस ने उसकी पहचान हिंदूवादी नेता सौरव शर्मा के रूप में बताई है। वो आगरा का रहने वाला है। फिलहाल हिंदू संगठनों की योजना विफल हो गई है लेकिन यह विवाद बढ़ने वाला है।
शाही ईदगाह और कृष्ण जन्म भूमि वाले रास्ते पर पुलिस ने ट्रैफिक बैन कर रखा है। सिर्फ पुलिस की गाड़ियों को आने-जाने की अनुमति है। उनकी भी चेकिंग की जा रही है। अखिल भारत महासभा ने कहा था कि अगर उन्हें ईदगाह में जलाभिषेक और हनुमान चालीसा का पाठ नहीं करने दिया गया तो वे आत्मदाह कर लेंगे। इससे पुलिस ज्यादा परेशान है, क्योंकि ऐसे लोगों की पहचान का सवाल उसके सामने है। आत्मदाह की धमकी संगठन के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष दिनेश शर्मा ने दी थी। मथुरा के एसएसपी शैलेश पांडे ने कहा कि शहर में धारा 144 लागू है। किसी भी तरह की नई गतिविधि की इजाजत शाही ईदगाह में नहीं करने दी जाएगी।
हालांकि मथुरा में शुरू की गई ताजा मुहिम पर अभी तक आरएसएस या बीजेपी का कोई बयान नहीं आया है। अखिल भारत हिंदू महासभा खुद को आरएसएस से जुड़ा संगठन नहीं बताता है और न ही संघ के मातृ संगठनों में इसका जिक्र है। लेकिन उसकी नीतियां और गतिविधियां संघ से जुड़े बाकी संगठनों से जैसे ही हैं। अयोध्या में बाबरी मसजिद गिराए जाने के विवाद में एक साध्वी का नाम प्रमुखता से आया था। उनका आश्रम मथुरा में बताया जाता है। ऐसे में आशंका यही है कि संघ सामने नहीं आकर अन्य संगठनों से इस मुद्दे को उभार रहा है। 2024 में आम लोकसभा चुनाव है। बीजेपी जिस तरह चुनाव से पहले ध्रुवीकरण कराती रही है, उससे भी इस मुद्दे को जोड़कर देखा जा सकता है।
क्या है मथुरा विवादः मथुरा विवाद आठ दशक से अधिक पुराना है और इसमें 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक को कोर्ट में चुनौती दी गई है। यहीं पर शाही ईदगाह है। कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और अन्य पक्षों ने शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर कर रखी है। जिस पर सुनवाई जारी है।
याचिकाकर्ता कटरा केशव देव मंदिर के कैंपस से 17वीं शताब्दी में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग कर रहे हैं। उनका दावा है कि मस्जिद कथित तौर पर कृष्ण के जन्मस्थान पर बनाई गई थी। मस्जिद को 1669-70 में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर बनाया गया था। इसके सबूत मौजूद हैं। लेकिन कृष्ण जन्मभूमि ट्र्स्ट आस्था के आधार पर इस केस को लड़ रहा है।
याचिकाकर्ता 1968 के उस समझौते को मानने को तैयार नहीं हैं जो जमीन के मालिक कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ, मंदिर प्रबंधन और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के बीच हुआ था। 1968 के उस समझौते के तहत हिस्से के रूप में, मंदिर प्राधिकरण ने जमीन का हिस्सा ईदगाह को दे दिया था।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि समझौते की कोई कानूनी वैधता नहीं है। क्योंकि कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, जिसके पास स्वामित्व और जगह का टाइटल है, वह इसमें पक्षकार नहीं है। अदालत को उस भूमि को देवता को ट्रांसफर करने का आदेश देना चाहिए जिस पर मस्जिद बनाई गई थी।
क्यों चर्चा में आया विवाद
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की तरह, कृष्ण जन्मभूमि मामले ने 2019 में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जोर पकड़ा। हालांकि आरएसएस ने पहले वादा किया था कि अयोध्या के बाद अब किसी विवाद को नहीं उठाया जाएगा लेकिन आरएसएस से जुड़े संगठनों ने काशी और मथुरा पर 2019 के फैसले के बाद जबरदस्त बयानबाजी शुरू कर दी।
मथुरा मामले में पहली याचिका सितंबर 2020 में मथुरा सिविल कोर्ट में लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य ने "भगवान श्रीकृष्ण विराजमान" की ओर से दायर की थी। उन्होंने मांग की थी कि मस्जिद को हटा दिया जाए और जमीन कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को लौटा दी जाए।
हालाँकि, सिविल जज ने 30 सितंबर, 2020 को इस मुकदमे को नामंजूर करते हुए खारिज कर दिया था। पीटीआई ने उस समय बताया जज के फैसले को कोट करते हुए लिखा था- जज ने कहा कि कोई भी याचिकाकर्ता मथुरा से नहीं था और इसलिए इस मामले में उनकी वैध हिस्सेदारी नहीं थी।
इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने आदेश में संशोधन के लिए मथुरा जिला अदालत का रुख किया। उनकी याचिका मंजूर कर ली गई। ट्रस्ट और मंदिर के अधिकारियों को मुकदमे में पार्टी बनाया गया। मथुरा की अदालतों में 2020 से लेकर अब तक श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले को लेकर कम से कम एक दर्जन मुकदमे दर्ज हो चुके हैं।
एक याचिकाकर्ता ने तो अदालत की निगरानी में वहां पर खुदाई की मांग भी की है। एक अन्य अर्जी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को शाही ईदगाह मस्जिद में "हिंदू मंदिर के निशान" की मौजूदगी का सर्वे करने के लिए भेजने की मांग की गई है।
एक अन्य याचिका में अदालत से मस्जिद के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है ताकि यह तय किया जा सके कि वहां मौजूद "मंदिर के चिन्ह" सुरक्षित हैं। अदालत से शाही ईदगाह मस्जिद के परिसर में रहने वालों के अलावा अन्य लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने यानी नमाज रोकने का आदेश पारित करने का भी अनुरोध किया गया है।
13.77 एकड़ जमीन का इतिहासः शाही ईदगाह मस्जिद 1670 में औरंगजेब शासनकाल में बनी थी। 1815 में, तत्कालीन बनारस (अब वाराणसी) के राजा पाटनी मल ने ईस्ट इंडिया कंपनी से नीलामी में 13.77 एकड़ जमीन खरीदी थी।
20वीं शताब्दी की शुरुआत में यह भूमि बनारस के राजा की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1935 में एक फैसले में इसके मालिकाना हक को बरकरार रखा।
करीब 10 साल बाद इस जमीन को कारोबारी युगल किशोर बिड़ला ने खरीद लिया। उन्होंने क्षेत्र में कृष्ण मंदिर बनाने के लिए कृष्णभूमि ट्रस्ट का गठन किया। 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ का गठन हुआ और इसने मंदिर ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभाली। मंदिर वहां पर बना हुआ है। मंदिर ट्रस्ट 1968 के समझौते में यह जमीन मस्जिद के ट्रस्ट को सौंप चुका है। लेकिन सारा विवाद दूसरे याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर शुरू हुआ।
बहरहाल, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 12 मई 2022 को मथुरा कोर्ट को श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े सभी मामलों को चार महीने के भीतर निपटाने का आदेश दिया था। वो चार महीने कब को बीत चुके हैं लेकिन अभी कोई फैसला नहीं आया है।