जिस दिन से महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी की सरकार बनी है, उसके और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बीच घमासान की ख़बरें आए दिन आती रहती हैं। ताज़ा घमासान ठाकरे सरकार द्वारा कोश्यारी को राज्य सरकार के हेलिकॉप्टर को इस्तेमाल करने की इजाजत न मिलने को लेकर हुआ है।
राजभवन के मुताबिक़, कोश्यारी गुरूवार को मुंबई के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंच गए थे लेकिन उन्हें बताया गया कि हेलिकॉप्टर नहीं उड़ पाएगा क्योंकि मुख्यमंत्री कार्यालय ने उनकी इस यात्रा को अनुमति नहीं दी है और इसके बाद उन्हें कॉमर्शियल फ्लाइट से जाना पड़ा।
इस मामले में राजभवन और ठाकरे सरकार के बीच तलवारें खिंच गई हैं। महाराष्ट्र बीजेपी कोश्यारी के साथ खड़ी है और उसने कहा है कि इस घटनाक्रम से महाराष्ट्र की छवि ख़राब हुई है जबकि शिव सेना ने कहा है कि राज्य सरकार ने इस मामले में नियमों का पालन किया है।
शिव सेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में लिखे ताज़ा संपादकीय में इसे लेकर कोश्यारी पर जोरदार हमला बोला है। शिव सेना ने कहा है कि कोश्यारी अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कभी इतनी चर्चा में नहीं आए लेकिन महाराष्ट्र का राज्यपाल बनने के बाद से ही वह चर्चा अथवा विवाद में बने रहे हैं।
संपादकीय में कहा गया है कि राज्यपाल का यह दौरा निजी था इसलिए नियमत: सरकारी विमान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और राज्यपाल ही क्या मुख्यमंत्री को भी निजी इस्तेमाल के लिए सरकारी विमान की अनुमति की इजाजत नहीं है।
‘सामना’ में कहा गया है कि राज्यपाल को बीजेपी के एजेंडे पर नाचने के लिए मजबूर किया जाता है और इससे राज्यपाल का ही अधोपतन हो रहा है। आगे कहा गया है कि राज्यपाल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे हैं, इसलिए ही उन्हें महाराष्ट्र के राजभवन में भेजा गया है।
‘सामना’ में कहा गया है कि राज्यपाल को सरकार के एजेंडे के अनुसार चलना होता है, विपक्ष के नहीं।
कोश्यारी को विमान न मिलने वाले दिन को पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा काला दिन बताए जाने पर भी शिव सेना ने पलटवार किया है। शिव सेना ने कहा है कि बेलगाव के मराठी भाषियों पर अत्याचार होने पर काला दिन मनाया जाना चाहिए, ऐसा इन लोगों को नहीं लगा।
कंगना, अर्णब का जिक्र
कंगना रनौत के द्वारा मुंबई को पीओके कहे जाने की ओर इशारा करते हुए ‘सामना’ में आगे कहा गया है, “बीजेपी की अजीज अभिनेत्री ने मुंबई का अपमान किया फिर भी ये चुप रहे। अर्णब गोस्वामी ने राष्ट्रीय सुरक्षा की धज्जियां उड़ाईं, फिर भी ये उस देशद्रोही के पक्ष में खड़े रहे। बीजेपी के अधोपतन का अंतिम अंक इस तरह से शुरू हुआ है और इस ड्रामे में उसने राज्यपाल को खलनायक की भूमिका दी है।”
कोश्यारी को लेकर देखिए चर्चा-
ठाकरे सरकार द्वारा राज्यपाल को भेजे गए 12 नामों को मंजूरी न दिए जाने के मामले को भी ‘सामना’ में उठाया गया है। कहा गया है कि 9 महीने बाद भी राज्यपाल इन नामों की सूची को अपनी कमर में खोंसकर घूम रहे हैं।
क़ानूनी क़दम उठाने पर विचार
कुछ दिन पहले ही संजय राउत ने कहा था कि ठाकरे सरकार इस मामले में राज्यपाल के ख़िलाफ़ क़ानूनी क़दम उठाने पर विचार कर रही है। ये उन 12 लोगों के नाम हैं, जिन्हें विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफ़ारिश ठाकरे कैबिनेट ने बीते साल नवंबर के पहले सप्ताह में की थी। लेकिन कई महीने बाद भी राज्यपाल कोश्यारी ने इन नामों पर अपनी सहमति नहीं दी है।
शिव सेना ने एक बार फिर कहा है कि गृह मंत्रालय को भारतीय संविधान, नियम, क़ानून आदि की परवाह है तो ऐसे राज्यपाल का पूरा वस्त्रहरण होने से पहले मंत्रालय को उन्हें वापस बुला लेना चाहिए।
‘मजबूत है ठाकरे सरकार’
सरकार की स्थिरता को लेकर संपादकीय में कहा गया है कि राज्यपाल के कंधे पर बंदूक रखकर महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार पर निशाना नहीं साधा जा सकता है। सरकार स्थित व मजबूत है और रहेगी।
शिव सेना ने किसान आंदोलन की चर्चा करते हुए कहा है कि गाजीपुर बार्डर पर 200 किसानों के प्राण त्यागने के बाद भी केंद्र सरकार कृषि कानून पर पीछे हटने को तैयार नहीं है। इसे अहंकार नहीं कहें तो और क्या कहें?
पहले भी हुआ था विवाद
पिछले साल उद्धव ठाकरे के विधान परिषद का सदस्य बनने को लेकर भी विवाद हुआ था। राज्य कैबिनेट की ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफ़ारिश पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने लंबे समय तक जवाब नहीं दिया था।ठाकरे को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानसभा या विधान परिषद में से किसी एक सदन का सदस्य निर्वाचित होना ज़रूरी था और तब विधान परिषद में मनोनयन कोटे की दो सीटें रिक्त थीं। राज्य मंत्रिमंडल ने राज्यपाल से इन दो में से एक सीट पर ठाकरे को मनोनीत किए जाने की सिफ़ारिश की थी। लेकिन राज्यपाल अड़ गए थे तब शिवसेना ने उन पर राजभवन को राजनीतिक साज़िशों का केंद्र बना देने का आरोप लगाया था।