क्या महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है? यह सवाल हाल में हुए कई घटनाक्रमों के बाद उठ रहे हैं। ऐसा ही एक घटनाक्रम यह हुआ है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा बुलाई गई बैठक में उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शामिल नहीं हुए। हाल में यह दूसरी बार ऐसा हुआ कि वह बैठक में शामिल नहीं हो पाए। शिवसेना यूबीटी नेता संजय राउत ने दावा किया है कि शिंदे सीएम पद को लेकर अपमानित होने के कारण ऐसा कर रहे हैं। एक दिन पहले ही सामना ने लिखा था कि फडणवीस और शिंदे में तनाव चल रहा है। राउत ने तो यह भी दावा किया कि शिंदे का फ़ोन टैप किया जा रहा है। इधर, शिंदे के क़रीबी संजय शिरसाट का बयान आया है कि दोनों सेना का मर्जर अभी भी संभव है और इसमें देरी नहीं होनी चाहिए।
तो सवाल उठता है कि क्या सच में महायुति में कुछ बड़ा होने वाला है? इस सवाल का जवाब इन घटनाओं को समझकर मिल सकता है। शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने दावा किया है कि शिंदे सेना के एक विधायक ने उन्हें बताया है कि उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपमानित होने के दर्द से बाहर निकल नहीं पा रहे हैं। विधायक ने कथित तौर पर राउत को बताया कि पिछले ढाई साल के दौरान, तत्कालीन सीएम शिंदे और फडणवीस के बीच मतभेद थे और वे दो दिशाओं में चल रहे थे, इस वजह से अब फडणवीस अपना बदला ले रहे हैं।
तो सवाल है कि यह दर्द क्या है? सीएम नहीं बनाए जाने का दर्द? कम से कम शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत तो यही कहते हैं। राउत ने शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र सामना में बड़ा दावा किया है कि सीएम देवेंद्र फडणवीस और उप मुख्यमंत्री शिंदे के बीच अनबन है और बीजेपी शिंदे और उनके लोगों के फ़ोन टैप करवा रही है।
राज्यसभा सांसद संजय राउत ने संपादकीय में दावा किया है कि शिंदे को विश्वास है कि उनके और उनकी पार्टी के लोगों के फ़ोन टैप किए जा रहे हैं। उन्हें संदेह है कि दिल्ली में एजेंसियां उनकी गतिविधियों पर नजर रख रही हैं और शिंदे को बहुत परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि शिंदे की पार्टी के एक विधायक ने उन्हें विमान यात्रा के दौरान बातचीत में यह जानकारी दी।
संपादकीय में राउत ने लिखा है, "विधायक ने कहा, ‘शिंदे खुद को अपमानित करने के दर्द से बाहर आने को तैयार नहीं हैं। मुख्यमंत्री के ढाई साल के कार्यकाल के दौरान शिंदे और फडणवीस के मुंह विपरीत दिशा में थे। अब फडणवीस सारी कसर निकाल रहे हैं, क्योंकि शिंदे के हाथ में कुछ भी नहीं बचा है'।"
राउत ने विधायक से बातचीत को संपादकीय में शामिल किया है,
"मैं- ‘क्या शिंदे अब भी इसी दुख में हैं कि उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री पद नहीं मिला?’
विधायक- ‘वे इससे भी आगे समाधि की अवस्था में पहुंच गए हैं। शून्य में चले गए।’
मैं- ‘क्या शिंदे को सदमा पहुंचा है?’
विधायक- ‘वे मन से टूट गए हैं।’
मैं- ‘क्यों? क्या हुआ?’
विधायक- ‘हम आपके नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे और 2024 के बाद भी आप फिर से मुख्यमंत्री होंगे, चिंता मत करो। चुनाव में दिल खोलकर खर्च करें, ऐसा आश्वासन अमित शाह ने शिंदे को दिया था। शिंदे ने चुनाव में बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन शाह ने अपना वादा नहीं निभाया और उन्हें लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है'।"
राउत ने कहा कि विधायक ने उन्हें बताया कि शिंदे को यक़ीन है कि उनके और उनके लोगों के फोन टैप किए जा रहे हैं। राउत ने कहा है कि महाराष्ट्र में बीजेपी और उसके सहयोगियों को भारी बहुमत मिलने के बावजूद राज्य आगे बढ़ता नहीं दिख रहा है, जिसका कारण सीएम फडणवीस और शिंदे के बीच दरार है।
दोनों सेनाओं का विलय अभी भी संभव: शिरसाट
शिवसेना के वरिष्ठ नेता और शिंदे के क़रीबी संजय शिरसाट ने कहा है, 'यदि हम माफ कर दें और भूल जाएं, तो हम फिर से साथ आ सकते हैं। अभी भी बहुत देर नहीं हुई है।' छत्रपति संभाजी नगर में एक समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में शिरसाट की यह टिप्पणी भाजपा और शिवसेना के बीच तनाव की ख़बरों के बीच आई है।
बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में सहयोगी दोनों दल पिछले साल नवंबर में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से कई मुद्दों पर आमने-सामने हैं।
दरअसल, चुनाव में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन के बाद यह सवाल उठने लगा था कि महाराष्ट्र का अगला सीएम कौन होगा? बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस या फिर शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे? यह सवाल इसलिए कि 288 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी को 132 सीटें मिलीं और यह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए। यानी बीजेपी के पास बहुमत से 13 सीटें कम हैं। शिंदे की शिवसेना के पास सिर्फ़ 57 सीटें हैं।
पहले मुख्यमंत्री पद को लेकर घमासान मचा। फिर पोर्टफोलियो वितरण को लेकर लंबा गतिरोध चला। रायगढ़ और नासिक जिलों के संरक्षक मंत्रियों की नियुक्ति को लेकर भी गतिरोध रहा।
सामाजिक न्याय मंत्री शिरसाट का मानना है कि महायुति गठबंधन में सत्ता-साझाकरण व्यवस्था में भाजपा ने उन्हें धोखा दिया है। अब शिंदे के खास विश्वासपात्र शिरसाट का कहना है कि अगर शिवसेना उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के साथ फिर से जुड़ती है तो उन्हें खुशी होगी। शिरसाट ने कहा है कि वह शिवसेना में विभाजन से आहत हैं और दोनों सेनाओं का विलय अभी भी संभव है। उन्होंने कहा कि अगर अब और इंतजार किया गया तो बहुत देर हो जाएगी।
उन्होंने कहा, 'मेरे लिए, शिवसेना में विभाजन दर्दनाक था। हमारे पास पार्टी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि तत्कालीन पार्टी नेता उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन किया था और उन्हें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि दोनों सेनाएं अलग हैं, लेकिन हम अभी भी अच्छे संबंध साझा करते हैं क्योंकि हम पुराने सहयोगी हैं। अगर हम दोनों अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं और आगे आते हैं तो दोनों सेनाओं का विलय संभव है।' शिरसाट ने कहा कि केवल वरिष्ठ पार्टी नेता ही सुलह का रास्ता तैयार कर सकते हैं, और आदित्य ठाकरे जैसे नए नेता नहीं।