क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने 48 साल के इकलौते बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाएंगे या निशांत कुमार खुद राजनीति में आएंगे? यह सवाल बिहार ही नहीं, बल्कि बिहार के बाहर भी राजनीतिक गलियारों में पिछले कुछ समय से लगातार पूछा जा रहा है। बिहार में अक्सर ऐसे कामों के लिए मकर संक्रांति का इंतज़ार किया जाता है लेकिन कुछ ख़बरें बताती हैं कि निशांत कुमार को होली के बाद राजनीति में लाया जा सकता है।
नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का जो बयान ज़्यादा चर्चित था वह यह था कि उनकी दिलचस्पी अध्यात्म में है लेकिन पिछले दिनों उन्होंने अपने पिता के समर्थन में राजनीतिक बयान देकर इस चर्चा को गर्म कर दिया कि वह खुद भी राजनीति में आ सकते हैं। निशांत ने जनता से जेडीयू को विधानसभा चुनाव में जिताने की अपील की और अपने पिता नीतीश कुमार को एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाने की अपील भी की।
निशांत कुमार के बारे में बहुत जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कहा जाता है कि वह अपने पिता की तरह इंजीनियर हैं और उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, मेसरा से सॉफ्टवेयर का कोर्स किया है। खुद नीतीश कुमार ने कभी इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि उनके बेटे को राजनीति में आना है या नहीं। हालांकि वह राजद प्रमुख लालू प्रसाद को ‘वंशवाद की राजनीति’ के लिए लगातार निशाना बनाते रहे हैं।
इसे केवल इत्तेफाक नहीं माना जा सकता कि एक तरफ नीतीश कुमार के राजनीति से किनारे लगने की संभावनाएं जताई जा रही हैं तो दूसरी ओर उनके बेटे निशांत कुमार के राजनीति में आने की तैयारी की बात चल रही है। यह भी कहा जा सकता है कि नीतीश के कई सिपहसालार हैं जो निशांत कुमार को राजनीति में लाने की तैयारी में जुटे हुए हैं।
नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा से आने वाले जेडीयू नेता और राज्य मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री श्रवण कुमार के बारे में समझा जाता है कि वह निशांत को राजनीति में लाने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। निशांत के बारे में जब श्रवण कुमार से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगर वह राजनीति में आना चाहें तो उनका स्वागत करेंगे। उन्होंने निशांत को अच्छी सोच वाला युवक बताया और कहा कि ऐसे लोगों को राजनीति में बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने विश्वास जताया कि अगर निशांत राजनीति में आते हैं तो बिहार की जनता उन्हें स्वीकार करेगी।
बहुत से लोग अब भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि निशांत राजनीति में आ सकते हैं लेकिन राजनीति के बारे में अंतिम बात बताना किसी के लिए भी मुश्किल है। अब सवाल है कि निशांत कुमार राजनीति में आते हैं तो जेडीयू, बीजेपी और राजद पर इसका क्या असर पड़ेगा?
निशांत कुमार के राजनीति में आने की चर्चा पर जनता दल यूनाइटेड आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कह रहा है लेकिन उसके कई नेता उत्साह दिखा रहे हैं। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी इस मामले में पूरी तरह चुप्पी साधे है। उधर विपक्षी दल विशेष कर आरजेडी इस इंतजार में है कि निशांत कुमार अगर राजनीति में आते हैं तो नीतीश कुमार पर परिवारवाद के बहाने हमले शुरू किए जाएं।
दरअसल, 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार और बिहार के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित होने वाला है। नीतीश कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनाव में यह ऐलान कर दिया था कि वह अब चुनाव नहीं लड़ेंगे। हालांकि ऐसे बयानों को राजनीति में बहुत महत्व नहीं दिया जा सकता क्योंकि बयानों से पलटा भी जा सकता है। इस बयान के बावजूद नीतीश कुमार 2025 में भी मुख्यमंत्री के पद के लिए दावेदार हो सकते थे लेकिन उनके स्वास्थ्य के बारे में लगातार जो अटकलें लगाई जा रही हैं उससे उनका पक्ष कमजोर होता है।
आधिकारिक रूप से जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी दोनों का बयान यह है कि 2025 में भी विधानसभा का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा लेकिन बीच-बीच में भारतीय जनता पार्टी की ओर से यह संकेत भी मिलता है कि वह 2025 में मुख्यमंत्री के फैसले के बारे में बाद में सोचेगी। भाजपा के कुछ नेता तो यह भी कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाना ही उनकी प्राथमिकता है।
राजनीतिक टीकाकारों का कहना है कि नीतीश कुमार के चुनावी राजनीति से अलग होने पर जदयू में नेतृत्व का झगड़ा हो सकता है और जहां एक गुट यह चाहेगा कि नीतीश कुमार के बेटे निशांत को जदयू में शामिल कर उसकी भरपाई कराई जाए, वहीं दूसरा गुट यह चाहेगा कि जेडीयू के नेतृत्व पर उसका कब्जा हो।
ऐसे में यह सवाल भी है कि यदि वह राजनीति में आते हैं तो क्या इतनी जल्दी निशांत कुमार अपने पिता की जगह ले सकेंगे?
नीतीश कुमार इस समय जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष हैं लेकिन बहुत से लोगों का मानना है कि उन पर वैसे लोग हावी हो गए हैं जिनके संबंध भारतीय जनता पार्टी से बहुत नज़दीकी हैं। पार्टी में नीतीश के वैसे समर्थक भी बहुत हैं जो भारतीय जनता पार्टी से नजदीकी रखने वाले गुट के खिलाफ हैं। ऐसे में जदयू में निशांत कुमार के मुद्दे पर आंतरिक रस्साकशी हो सकती है।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है वह यह बिल्कुल नहीं चाहेगी कि नीतीश कुमार के बाद फिर कोई ऐसा शख्स जदयू में आए जो उसे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने से रोके। यानी वह कोई ऐसा चेहरा नहीं देखना चाहेगी जो नीतीश कुमार की जगह जदयू में ले सके और उसे करीबी न हो। जेडीयू में नीतीश कुमार की जगह लेने वाले संभावित लोगों की जो सूची है उनमें ज़्यादातर भारतीय जनता पार्टी के करीबी माने जाते हैं।
कई राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी यह चाह रही है कि नीतीश कुमार के राजनीति से किनारे लगने पर जो जगह खाली हो वह उस पर तुरंत कब्जा कर ले। मगर ऊपरी तौर पर वह नीतीश कुमार से खुद को अलग करना नहीं चाहती। भाजपा के शीर्ष नेताओं को अभी यह एहसास है कि उसके लिए बिहार में नीतीश कुमार का चेहरा जरूरी है। वह नीतीश कुमार के चेहरे का इस्तेमाल तो करना चाहती है लेकिन इस बार मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पार्टी को दावेदार बनाना भी उसकी मजबूरी है। भाजपा 2015 में अकेले चुनाव लड़कर उसका बुरा परिणाम देख चुकी है जब वह केवल 53 सीटों पर सिमट गई थी।
भारतीय जनता पार्टी निशांत कुमार की राजनीति में प्रवेश पर क्या रुख अपनाएगी यह एक अहम सवाल है। हो सकता है वह यह कहकर उनका स्वागत करे कि राजनीति में ऐसे युवाओं की जरूरत है ताकि चुनाव तक लोगों में यह संदेश न जाए कि वह नीतीश कुमार से अलग हो रही या उन्हें किनारे लगा रही है। ऐसे में उसे राजद की ओर से आलोचना का सामना करना पड़ सकता है और उसके पास तेजस्वी यादव पर हमला करने का एक और आधार कम हो जाएगा।
यह सवाल दूर का है लेकिन यह देखना अहम है कि निशांत कुमार को राजनीतिक तौर पर क्या वह आकर्षण मिल पाएगा जो नीतीश कुमार को मिला हुआ है? राष्ट्रीय जनता दल और तेजस्वी यादव जाहिर तौर पर निशांत कुमार को नीतीश कुमार के मुकाबले में कम ही आँकेंगे और इस परिस्थिति में अपने लिए बेहतर अवसर तलाशेंगे।