बीजेपी में सबसे ताकतवर माने जाने वाले संसदीय बोर्ड से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छुट्टी के बाद उनके ‘भविष्य’ को लेकर कयासबाजी का दौर फिर चल पड़ा है। तमाम चर्चाओं के बीच प्रश्न यह उठाया जा रहा है, ‘क्या इस बार सही में शेर आयेगा?’
बीजेपी संसदीय बोर्ड का बुधवार को पुनर्गठन हुआ है। पार्टी ने बोर्ड में कई चेहरे बदले हैं। ऊर्जा से भरे रहने वाले केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और बीते नौ सालों से बोर्ड में लगातार जगह पाते रहे शिवराज सिंह को हटाया जाना सबसे चौंकाने वाला कदम माना गया है।
गडकरी मुखर रहे हैं। संकेतों में उन्होंने मोदी-शाह की जोड़ी पर कटाक्ष किये। फैसलों पर सवाल उठाये। इसलिये उन्हें हटाये जाने पर उतना आश्चर्य, समर्थकों और मोदी-शाह की जोड़ी से नाइत्तेफाकी रखने वाले पार्टी के रणनीतिकारों-विरोधियों को नहीं हुआ है। मगर शिवराज सिंह की छुट्टी को तुरत-फुरत में उनके भविष्य से जोड़कर देखे जाने के साथ ही यह सुगबुगाहट तेज हो गई कि शिवराज की कुर्सी बच पायेगी या इस बार चली जायेगी?
प्रधानमंत्री पद के दावेदार
शिवराज सिंह केलकुलेटिव पॉलिटिक्स करते हैं। जहां ‘शक्ति’ होती है, सिंह का झुकाव वहीं होता है। केन्द्र में 2014 में एनडीए गठबंधन सत्ता में आया था, तब प्रधानमंत्री पद के दावेदारों को लेकर शिवराज सिंह का नाम भी उछला था। कहते हैं, लालकृष्ण आडवाणी ने तो बकायदा, ‘शिवराज सिंह के नाम को आगे भी बढ़ा दिया था।’
लेकिन नरेंद्र मोदी धमाकेदार ढंग से पीएम बनाये गये थे। इसके बाद मोदी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। मगर जब-तब केन्द्र की सबसे बड़ी कुर्सी को लेकर कयासबाजी चलती है और कई नाम चर्चाओं में आते हैं। इनमें एक नाम शिवराज सिंह का भी लिया जाता है।
इधर, शिवराज केन्द्र की बजाय, मध्य प्रदेश की राजनीति में ही रमे रहने की बात कहते हैं। वे खुलकर मोदी की शान में कसीदे काढ़ते हैं। विश्व का सबसे सफल नेता निरूपित करते हैं। मोदी के साथ अमित शाह के भी सार्वजनिक मंच से ‘गुणगान’ में शिवराज कोई परहेज नहीं करते।
बहरहाल, शिवराज सिंह को संसदीय बोर्ड से बाहर किये जाने को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं, ‘बीजेपी संसदीय बोर्ड हमेशा से तपे और मंजे हुए नेताओं को तरजीह देता रहा है। इस बार उलटा हुआ है। सीनियर लीडरों को बाहर की राह दिखाई गई है।’
सवालों के जवाब में वे कहते हैं, ‘बीजेपी में राजनीति करने का अंदाज बदला है। ऐसे में केन्द्र के अगले कदमों को भांप लेना अथवा संभावित राजनीति का सटीक विश्लेषण कर लेना अब आसान नहीं रहा है।’
शिवराज सिंह परिश्रम की पराकाष्ठा करते हैं। जनता से सीधा संवाद बनाये रखना और आसानी से जनता से घुल-मिल जाना शिवराज की विशेषता है।
तमाम ताजा राजनैतिक हालातों के बीच मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इस सवाल की गूंज तेज है, कि क्या इस बार सचमुच ‘शेर आयेगा?’ यानी शिवराज सीएम पद से हटाये जायेंगे?
2023 विधानसभा चुनाव
मध्य प्रदेश विधानसभा का 2023 का चुनाव बीजेपी किसी और चेहरे पर लड़ेगी? इन सवालों के जवाब में पत्रकार और विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता, शिवराज को हटाने का रिस्क आलाकमान लेगा।’
वे आगे जोड़ते हैं, ‘मध्य प्रदेश में शिवराज के जोड़ का कोई भी अन्य लीडर नहीं है। राज्य में आधी आबादी ओबीसी की है। ओबीसी वर्ग से आने वाले शिवराज इस वर्ग के साथ करीब-करीब हर वोट बैंक में ज्यादा चाहे जाने वाले नेता हैं। बीजेपी कैडरबेस पार्टी है। संगठन यहां सर्वोपरि है, लेकिन चेहरों की परख पार्टी को भी है। शिवराज भीड़ के साथ वोट खींचने वाले नेता भी हैं। ऐसे में उन्हें हटाया जायेगा, मुझे नहीं लगता है।’
शिवराज सिंह चौहान किस्मत के बेहद धनी हैं। वर्ष 2005 में मध्य प्रदेश की राजनीति में भारी उठापटक के बीच अनेक दावेदारों को दरकिनार कर वे मुख्यमंत्री बनाये गये थे। मुख्यमंत्री बनाये जाते वक्त यह माना गया था कि उन्हें बहुत दिनों तक इस पद पर नहीं रखा जायेगा।
शिवराज कुर्सी पर ऐसे जमे कि 2008, 2013 और फिर 2018 का चुनाव भी पार्टी ने उन्हीं के चेहरे पर लड़ा। बीजेपी 2008 और 2013 में सरकार बनाने में सफल रही। शिवराज सीएम बनाये गये। वे 2005 से 2018 तक लगातार तीन कार्यकाल में मुख्यमंत्री रहे। साल 2018 में चंद नंबरों से बीजेपी लगातार चौथी बार सरकार बनाने से चूक गई।
सत्ता के 15 सालों के वनवास के बाद कमल नाथ की अगुवाई में कांग्रेस की साल 2018 में राज्य की सत्ता में वापसी हुई।
कमल नाथ सरकार का गिरना
कांग्रेस की सरकार कुल 15 महीने चल पायी। भारी खींचतान में कांग्रेस फंसी रही। ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में हुई बगावत के कारण कमल नाथ की सरकार गिर गई। कांग्रेस विधायकों की मदद लेकर बीजेपी ने फिर सत्ता में वापसी की। सरकार बनाने में सफल रहने के दौरान बीजेपी में अनेक नेताओं के नाम मुख्यमंत्री पद के लिये चले। मगर पार्टी ने शिवराज सिंह को चौथी बार सीएम बनाया।
स्थानीय निकायों में हार
मध्य प्रदेश में बीते महीनों में हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में बीजेपी को खासा नुकसान उठाना पड़ा है। विशेषकर महापौर पद के सीधे चुनावों में 16 में से 7 सीटें बीजेपी हार गई है। पिछली बार सभी 16 महापौर सीटें बीजेपी के पास थीं।
बीजेपी की स्थानीय निकायों में हार को शिवराज सिंह की कुर्सी पर कथित खतरे से जोड़ा जा रहा है। इसके अलावा भ्रष्टाचार और काबीना में खींचतान, संगठन से पटरी ना बैठ पाना तथा सबसे बड़ी वजह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का शिवराज को कथित तौर पर नापसंद किया जाना भी बताया जा रहा है।
हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब शिवराज सिंह की कुर्सी ‘खतरे’ में होने की सुगबुगाहट चल रही है। पूर्व में कई बार ऐसा हुआ है। लेकिन हर बार संभावनाएं टांय-टांय फिस्स होती रही हैं। आगे क्या होगा? यह आने वाला समय बताएगा।
जटिया की ताजपोशी ने भी हैरान किया!
केन्द्र में मंत्री रहे अनुसूचित जाति के चेहरे 76 वर्षीय सत्यनारायण जटिया को मध्य प्रदेश से संसदीय बोर्ड में जगह मिली है। जटिया काफी वक्त से ‘घर’ बैठे हुए थे। राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें पुनः चांस नहीं दिया गया था। ऐसा माना गया था, जटिया का करियर 75 पार होने के चलते ढलान के करीब पहुंच गया है। अचानक उन्हें संसदीय बोर्ड में लेकर पार्टी ने संकेत दिये हैं कि मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति के बड़े वोट बैंक की ‘पूरी चिंता’ बीजेपी कर रही है। यहां बता दें सूबे में अनुसूचित जाति वर्ग की 35 सीटें विधानसभा में और 4 लोकसभा में आरक्षित हैं।
मध्य प्रदेश को दूसरा बड़ा झटका!
शिवराज सिंह की संसदीय बोर्ड से छुट्टी को मध्य प्रदेश के बड़े लीडरों के लिये दूसरा झटका माना जा रहा है। कुछ महीने पहले कैलाश विजयवर्गीय को बंगाल बीजेपी के प्रभारी पद से हटाया गया था।