कमलनाथ सरकार के गले की हड्डी बनेगा ओबीसी आरक्षण!

08:01 pm Jun 04, 2019 | संजीव श्रीवास्तव - सत्य हिन्दी

मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव राज्य मंत्रिमंडल में पारित होने के बाद इस मसले पर ‘रार’ तेज़ होने के आसार हैं। बता दें कि कमलनाथ कैबिनेट ने सोमवार शाम को मध्य प्रदेश में ओबीसी का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने के प्रस्ताव पर औपचारिक तौर पर मोहर लगा दी है। नाथ सरकार 5 मार्च 2019 को इस बारे में अध्यादेश लेकर आयी थी। इसके ख़िलाफ़ राज्य के कुछ विद्यार्थी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट गये थे और हाईकोर्ट ने आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए अध्यादेश पर रोक लगा दी थी। मामला अभी हाईकोर्ट में विचाराधीन है और 17 जून को मध्य प्रदेश सरकार का पक्ष सुना जाएगा।

ओबीसी आरक्षण में वृद्धि का यह मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन होने के बीच कमलनाथ कैबिनेट द्वारा आरक्षण बिल प्रारूप (ओबीसी को 14 के बजाय 27 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी) के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद से उन विद्यार्थियों में आक्रोश है जो मामले को हाईकोर्ट ले गये हैं।

अध्यादेश के ख़िलाफ़ विद्यार्थियों की ओर से हाईकोर्ट में मामले की पैरवी कर रहे एडवोकेट आदित्य संघी ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘कमलनाथ कैबिनेट के निर्णय से हम विस्मित हैं। मामला कोर्ट में विचाराधीन होते हुए कैबिनेट से बिल को मंजूरी सीधे-सीधे माननीय उच्च न्यायालय की अवमानना है।’

एडवोकेट संघी ने कहा, ‘19 मार्च 2019 को कोर्ट के स्टे के बाद राज्य सरकार ने सप्ताह में भर में स्टे खारिज करा लेने का दावा किया था। चार पेशियाँ लगीं, लेकिन सरकार पक्ष रखने के बजाय तारीख़ें लेती रही। सरकार का पक्ष सुनने के लिए कोर्ट ने 17 जून की तारीख़ तय कर रखी है।’

संघी ने आरोप लगाया, ‘सरकार के टालमटोल वाले रवैये का मक़सद महज और महज लोकसभा चुनाव में लाभ लेना नजर आया।’ उन्होंने कहा, ‘कैबिनेट के निर्णय के ख़िलाफ़ हम अतिशीघ्र कोर्ट में अवमानना संबंधी याचिका लगायेंगे।’ संघी का कहना है, ‘सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी बनती थी कि वह सबसे पहले स्टे वेकेट कराये, लेकिन उसने ना केवल अपनी इस ड्यूटी और संवैधानिक व्यवस्था की अनदेखी की, बल्कि कैबिनेट से मामले को पास करा डाला।’

आरक्षण की अधिकतम सीमा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में इंदिरा साहनी मामले में एक अहम फ़ैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि केन्द्र हो अथवा राज्य या केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारें, आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फ़ीसदी को कोई भी नहीं लांघ सकेगा।

संविधान के अनुच्छेद 16 में सुस्पष्ट प्रावधान है कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फ़ीसदी ही रहेगी। इसी अनुच्छेद को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया हुआ है। हालाँकि तमिलनाडु की राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का पालन नहीं किया है और यहाँ आरक्षण इस अधिकतम (50 फ़ीसदी की) सीमा से ऊपर है।

अब 63 फ़ीसदी हुआ आरक्षण

मध्य प्रदेश में अनुसचित जाति वर्ग को 16 फ़ीसदी, अनुसूचित जनजाति वर्ग को 20 फ़ीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 फ़ीसदी आरक्षण मिल रहा था। इस हिसाब से आरक्षण का कुल 50 फ़ीसदी होता था। कमलनाथ सरकार के ताज़ा फ़ैसले के बाद मध्य प्रदेश में कुल आरक्षण 50 फ़ीसदी से बढ़कर 63 फ़ीसदी पहुँच गया है।

मानसून सत्र में बिल लाएगी सरकार

कमलनाथ सरकार इसी महीने के आख़िर में आरंभ होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र में बिल लाने की तैयारी में है। सोमवार को कैबिनेट ने बिल के प्रारूप को ही अपनी मंजूरी दी है। संख्या बल होने के मद्देनजर सरकार को इस बिल को पारित कराने में कोई कठिनाई नहीं आयेगी।

मध्य प्रदेश में 52 प्रतिशत हैं ओबीसी

मध्य प्रदेश में कुल आबादी का 52 फ़ीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से है। लगभग साढ़े सात करोड़ की जनसंख्या वाले मध्य प्रदेश में आधी से कुछ ज़्यादा आबादी ओबीसी वर्ग की है। यही वजह है कि प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए वोटों की ‘लहलहाती फसल’ ओबीसी वर्ग है। यह बड़ा वोट बैंक छिटके नही - इसी वजह से राजनैतिक दलों तमाम कोशिशें करते हैं।

ओबीसी ने कांग्रेस को दिया गच्चा

मध्य प्रदेश में दस लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहाँ अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों की तादाद सबसे ज़्यादा है। ऐसी सीटों में होशंगाबाद, भोपाल, सागर, दमोह, जबलपुर, खजुराहो, खंडवा, सतना, रीवा और मंदसौर शामिल हैं। यहाँ बता दें कि विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि अगर राज्य में उसकी सरकार बनी तो प्रदेश में ओबीसी के आरक्षण के मौजूदा प्रतिशत को 14 से बढ़ाकर 27 फ़ीसदी कर दिया जायेगा। सरकार बनी। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कमलनाथ सरकार ने अध्यादेश लाकर इस वर्ग पर डोरे डाले, लेकिन दुर्भाग्यवश मध्य प्रदेश की कुल 29 में से 28 सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा। ओबीसी बाहुल्यता वाली सभी 10 सीटें कांग्रेस बड़े अंतर से हारी।

ये विद्यार्थी गए हैं हाई कोर्ट

ओबीसी को आरक्षण संबंधी कमलनाथ सरकार के अध्यादेश को जबलपुर की असिता दुबे और भोपाल की ऋचा पांडे एवं सुमन सिंह ने हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। इन्हीं विद्यार्थियों की याचिका पर कोर्ट ने अध्यादेश पर रोक लगाई हुई है।

मध्य प्रदेश के विधि मंत्री पी.सी.शर्मा ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘कैबिनेट का निर्णय किसी भी सूरत में हाईकोर्ट की अवमानना नहीं करता।’ हाईकोर्ट के स्टे की ओर ध्यान दिलाये जाने पर शर्मा ने कहा, ‘स्टे शैक्षणिक संस्थान में दाख़िले के मद्देनजर दिया गया था।’ सुप्रीम कोर्ट की अधिकतम 50 फ़ीसदी आरक्षण व्यवस्था के निर्णय और संविधान के अनुच्छेद 16 को लेकर उन्होंने कहा, ‘मध्य प्रदेश अकेला ऐसा सूबा नहीं है जो अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को पार कर रहा है, कर्नाटक समेत दक्षिण के एक अन्य राज्य में इस तरह की व्यवस्था पूर्व से लागू है।’ 

विधि मंत्री शर्मा ने इस अंदेशे को भी सिरे से खारिज किया कि भविष्य में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मध्य प्रदेश सरकार की मंशा के आड़े आयेगा।

शिवराज के बयान पर हुआ था बवाल

मध्य प्रदेश में लगातार 15 साल राज करने वाली बीजेपी और 13 बरस मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान का आरक्षण को लेकर दिया गया बयान - ‘कोई माई का लाल आरक्षण देने से रोक नहीं पायेगा’ जमकर गले की हड्डी बना। पूर्व मुख्यमंत्री के बयान पर जमकर बवाल हुआ था। शिवराज के इसी बयान के बाद सपाक्स संगठन ने राजनैतिक दल की शक्ल अख़्तियार की। हालाँकि आरक्षण व्यवस्था का विरोध करने वाला यह दल मध्य प्रदेश विधानसभा के 2018 और लोकसभा चुनाव 2019 में कोई असर नहीं छोड़ पाया। लेकिन कई सीटों पर हुई मार्जिनल वोटों वाली और नोटा को चले गये वोटों से बीजेपी उम्मीदवारों की हार का ठीकरा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज के ‘माई के लाल...’ वाले बयान पर फोड़ा गया।