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छठे चरण में एनडीए के क़िले में सेंधमारी कर पाएगा इंडिया गठबंधन?

छठे चरण में एनडीए के क़िले में सेंधमारी कर पाएगा इंडिया गठबंधन?

लोकसभा चुनाव के छठे चरण में बिहार में आठ सीटों पर 25 मई को होने वाले मतदान में किसका पलड़ा भारी है? क्या एनडीए पिछले चुनाव का प्रदर्शन दोहरा पाएगा या फिर इंडिया गठबंधन बाजी मार लेगा?

लोकसभा चुनाव के छठे चरण में बिहार की जिन आठ सीटों पर चुनाव होना है, उन सभी सीटों पर एनडीए का कब्जा है और इंडिया गठबंधन पूरी कोशिश कर रहा है कि इस क़िले में सेंधमारी की जाए। इन आठ सीटों में वाल्मीकि नगर, शिवहर, गोपालगंज, और सीवान की सीट जदयू के पास है तो पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण और महाराजगंज की सीट भारतीय जनता पार्टी के पास है। आठवीं सीट वैशाली है जहां से रामविलास पासवान की लोक जनता की पार्टी ने जीत हासिल की थी।

उम्मीदवारों के लिहाज से देखा जाए तो इन आठ सीटों में सीवान और शिवहर की सीट सबसे ज्यादा चर्चित है। सीवान में जदयू ने उम्मीदवार बदल कर विजय लक्ष्मी देवी को टिकट दिया है तो आरजेडी की तरफ़ से भी अवध बिहारी चौधरी बदले हुए उम्मीदवार हैं। यहां से निर्दलीय उम्मीदवार हेना शहाब के कारण यह सीट काफी चर्चित हो रही है जो पहले राजद के टिकट पर चुनाव हार चुकी हैं और बाहुबली सांसद मरहूम मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हैं। 

शिवहर की चर्चा वहां से जदयू की उम्मीदवार लवली आनंद की वजह से है जो डीएम हत्याकांड में उम्र कैद की सज़ा पाए पूर्व बाहुबली सांसद आनंद मोहन की पत्नी हैं। हेना शहाब के निर्दलीय चुनाव लड़ने से सीवान की सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है। यहां लगभग तीन लाख मुस्लिम और ढाई लाख यादव मतदाता हैं लेकिन हेना शहाब के निर्दलीय चुनाव लड़ने से आरजेडी का ‘एमवाई’ समीकरण डोल रहा है। बताया जाता है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने इस बार भी हेना शहाब को राजद का टिकट देना चाहा था लेकिन हेना के समर्थकों को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत की अधिक संभावना दिखी इसलिए उन्होंने टिकट नहीं लिया। 

इस सीट से जदयू की उम्मीदवार विजयलक्ष्मी देवी पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। उनके पति रमेश कुमार सिंह पूर्व विधायक हैं और उन्होंने चुनाव से ठीक पहले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से इस्तीफा देकर जेडीयू ज्वाइन किया था। विजयलक्ष्मी देवी को यहां के चार लाख सवर्ण मतदाता और लगभग सवा लाख कुशवाहा मतदाताओं पर भरोसा है। इसके अलावा ढाई लाख अत्यंत पिछड़ा वर्ग के मतदाता भी हैं।

अवध बिहारी चौधरी सीवान सदर सीट से विधायक हैं और काफी अनुभवी राजनेता माने जाते हैं लेकिन वह त्रिकोणीय संघर्ष में फंसे हुए लगते हैं। उनके पक्ष में यह बात जाती है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में 6 सीटों में से पांच पर राजद और भाकपा माले के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। 

सीवान की पूर्व सांसद कविता सिंह के बारे में यह चर्चा है कि उनके खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा था जिसके कारण जेडीयू ने उनका टिकट काट दिया और इस बार भी जदयू को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

जेडीयू यह उम्मीद कर रहा है कि राजद और हेना शहाब के बीच वोटों के विभाजन से उसकी उम्मीदवार विजय लक्ष्मी देवी को फायदा हो। लेकिन हेना शहाब के मैदान में रहने से जदयू की उम्मीदवार को सवर्ण वोटों के विभाजन का सामना करना पड़ सकता है।

शिवहर लोकसभा सीट पर 2009 से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर रमा देवी सांसद चुनी जा रही थीं लेकिन इस बार समझौते के तहत यह सीट जदयू को मिली है। जेडीयू ने यहां से पूर्व सांसद लवली आनंद को टिकट दिया है जिनके बेटे चेतन आनंद वैसे तो आरजेडी के विधायक हैं लेकिन विश्वास मत के दौरान उन्होंने पाला बदलकर एनडीए का दामन थाम लिया था। लवली आनंद के पति आनंद मोहन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम के हत्याकांड में सजायाफ्ता हैं और पिछले साल जेल से छूटे हैं। आनंद मोहन को उम्र कैद की सजा मिली थी लेकिन नीतीश कुमार सरकार की ओर से जेल मैनुअल में बदलाव के बाद उन्हें रिहा किया गया। 

इस सीट पर लवली आनंद का सीधा मुकाबला राजद की ऋतु जायसवाल से है जो मुखिया रह चुकी हैं। समझा जाता है कि बीजेपी ने रमा देवी का टिकट इसलिए काटा कि उनके खिलाफ काफी माहौल बन गया था लेकिन यह सीट बनिया समुदायों की बहुलता वाली है। ऐसे में राजद को उम्मीद है कि बनिया समुदाय से आने वाली ऋतु जायसवाल को अपने समुदाय का भरपूर समर्थन मिलेगा। 

शिवहर सीट से एआईएमआईएम के उम्मीदवार राणा रणजीत सिंह राजपूत जाति के हैं। वह इस चुनाव को शायद बहुत ज्यादा प्रभावित न करें लेकिन माथे पर तिलक के साथ गोल टोपी में वह एक अलग दृश्य पेश कर रहे हैं। 

जोरदार टक्कर के हिसाब से वैशाली लोकसभा सीट बेहद अहम मानी जा रही है जहां 2019 में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी की उम्मीदवार वीणा देवी ने राजद के धुरंधर स्वर्गीय रघुवंश प्रसाद सिंह को हरा दिया था। लेकिन इस बार बताया जा रहा है कि भूमिहार बहुल वैशाली लोकसभा सीट से राजद ने पूर्व विधायक विजय कुमार उर्फ मुन्ना शुक्ला को उम्मीदवार बनाकर एनडीए के लिए तगड़ी चुनौती पेश की है। रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद वीणा देवी चिराग पासवान का साथ छोड़कर पशुपति कुमार पारस के खेमे में चली गई थीं। लेकिन चुनाव आने से ठीक पहले उन्होंने पाला बदल लिया और वह चिराग पासवान की पार्टी में चली आईं। 

 - Satya Hindi

वैशाली से जातीय समीकरण देखा जाए तो 13 बार में से 11 बार राजपूत समुदाय के उम्मीदवार जीते हैं लेकिन दो बार भूमिहार उम्मीदवारों को भी जीत मिली है। इनमें अकेले रघुवंश प्रसाद सिंह पांच बार यहां से सांसद रहे। राजपूत समुदाय से होने के कारण वीणा देवी भारतीय जनता पार्टी के आधार वोट के सहारे अपनी कामयाबी को दोहराने में लगी हैं तो मुन्ना शुक्ला राजद के आधार वोट और अपने जातीय वोट के समर्थन से पहली बार सांसद बनने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं। 

इस चरण में पूर्वी चंपारण की सीट ऐसी है जिसे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राधा मोहन सिंह का गढ़ माना जाता रहा है। यह सीट पहले मोतिहारी के नाम से जानी जाती थी और यहां से 1989 में पहली बार राधा मोहन सिंह भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए थे। इसके बाद 1996 और 1999 में भी वह इस सीट से विजयी रहे थे।

पूर्वी चंपारण सीट बनने के बाद 2009, 2014 और 2019 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर राधा मोहन सिंह हैट्रिक लगा चुके हैं।

राधा मोहन सिंह का सीधा मुकाबला इस बार मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के डॉक्टर राजेश कुशवाहा से है। राजेश कुशवाहा केसरिया से राजद के विधायक रह चुके हैं। इस बार अगर वहां का चुनाव अगड़ा बनाम पिछड़ा हुआ तो राजेश कुशवाहा राधा मोहन सिंह को अच्छी चुनौती पेश कर सकते हैं।

पूर्वी चंपारण की तरह ही पश्चिमी चंपारण सीट पर भी 2009 से लगातार भारतीय जनता पार्टी जीत हासिल कर रही है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने 2009 से जीत की हैट्रिक लगा रखी है। 2008 से पहले यह सीट बेतिया के नाम से जानी जाती थी और यहां से संजय जायसवाल के पिता मदन प्रसाद जायसवाल 1996, 1998 और 1999 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत चुके हैं। कांग्रेस ने यहां से बेतिया के पूर्व विधायक मदन मोहन तिवारी को टिकट दिया है। यहां मुस्लिम और यादव समुदाय के 5 लाख से अधिक वोटों के बावजूद संजय जायसवाल की जीत की वजह शेष मतदाता की गोलबंदी बताई जाती है। यहां वैश्य और कुशवाहा मतदाता ढाई-ढाई लाख बताए जाते हैं।

महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र को चित्तौड़गढ़ कहा जाता है। यहां से भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को टिकट दिया है जो 2014 और 2019 में जीत हासिल कर चुके हैं। उनका सीधा मुकाबला कांग्रेस पार्टी के आकाश प्रसाद सिंह से है जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के पुत्र हैं। आकाश 2019 में उपेंद्र कुशवाहा की तत्कालीन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी से पूर्वी चंपारण सीट पर उम्मीदवार थे लेकिन वह दूसरे स्थान पर रहे थे। सिग्रीवाल राजपूत समुदाय से आते हैं जबकि आकाश का संबंध भूमिहार समुदाय से है।

इस चरण में गोपालगंज (सुरक्षित) सीट पर भी चुनाव होना है। यहां से 2019 में जेडीयू के आलोक कुमार सुमन सांसद बने थे और इस बार भी उन्हें ही जेडीयू से टिकट मिला है। उनके सामने होंगे विकासशील इंसान पार्टी के प्रेमनाथ चंचल। चंचल बीजेपी के नेता सुदामा मांझी के बेटे हैं और पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। 

इसी चरण में वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट का भी चुनाव होना है। यहां से जदयू के सुनील कुमार अपने पिता सांसद बैद्यनाथ प्रसाद महतो के निधन के बाद हुए उपचुनाव में जीते थे। इस बार भी जदयू ने सुनील कुमार को ही यहां से उम्मीदवार बनाया है। उन्हें भाजपा से बगावत कर आरजेडी में शामिल हुए दीपक यादव से सीधे मुकाबले का सामना है।

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