ऐसे समय जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में कुछ ही महीने बचे हैं, राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने मथुरा की शाही ईदगाह मसजिद पर विवादास्पद टिप्पणी की है।
उन्होंने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर बन रहा है और अब मथुरा में इसकी तैयारी है।
तनाव
मौर्य ने यह टिप्पणी ऐसे समय की है जब अखिल भारत हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष राज्यश्री चौधरी ने 6 दिसंबर को शाही ईदगाह मसजिद में भगवान कृष्ण के जलाभिषेक का एलान कर रखा है।
महासभा की इस घोषणा के बाद से ही इलाक़े में तनाव है और ज़िला प्रशासन सुरक्षा का ख़ास इंतजाम किया है।
हिन्दू महासभा के साथ ही नारायणी सेना, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति दल जैसे संगठनों ने भी कई तरह के कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की थी।
सपा का पलटवार
समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने मौर्य के इस बयान पर पलटवार किया है।
उन्होंने कहा, "बाबरी मसजिद को तोड़कर जो मंदिर बनाया गया है, वह भी क़ानून और इंसाफ के ख़िलाफ़ किया गया है। हिंदुस्तान में मुसलमानों को ज़बरदस्ती दबाया और कुचला जा रहै है। अब वे मथुरा की बात कर रहे हैं।"
बर्क ने इसके आगे कहा,
“
यदि ऐसा हुआ तो हिंदुस्तान के मुसलमान मैदान में आ जाएंगे। मुसलमान भी किसानों की तरह धरने पर बैठने के लिए मजबूर हो जाएगा।
शफीकुर्रहमान बर्क, सांसद, समाजवादी पार्टी
'मथुरा-काशी बाकी है'
केशव प्रसाद मौर्य की इस टिप्पणी से लोगों को विश्व हिन्दू परिषद के उस नारे की याद आ रही है जो उन्होंने अयोध्या में बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि मंदिर के विध्वंस के बाद दिया था। उस समय उसका नारा था, "अयोध्या तो बस झाँकी है, मथुरा-काशी बाकी है।"
मौर्य के इस ट्वीट के बाद यह सवाल उठने लगा है कि यूपी चुनाव के पहले क्या बीजेपी मथुरा की शाही ईदगाह और काशी की ज्ञानवापी मसिजदों के बहाने हिन्दुओं को एकजुट करने के एजंडे पर काम कर रही है?
सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी नेता
यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को चुनौती देने वाले अश्विनी उपाध्याय भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं।
उन्होंने अदालत में याचिका दायर कर कहा है कि इस अधिनियम से न्यायिक पुनर्विचार के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है, जिसकी गारंटी संविधान में दी गई है।
उन्होंने यह भी कहा है कि इस अधिनियम की वजह से जैन, बौद्ध, सिख और हिन्दू समुदाय से जुड़ा कोई व्यक्ति अपने धार्मिक स्थल को फिर से बहाल करने की माँग नहीं कर सकता, जिसे 15 अगस्त 1947 के पहले विदेशी हमलावरों ने नष्ट कर दिया था।
बता दें कि इस क़ानून में यह प्रावधान है कि 15 अगस्त 1947 को जिस पूजा स्थल की जो स्थिति थी, उसे ही बरक़रार रखा जाएगा और उसमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा, सिर्फ अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि मंदिर-बाबरी मसजिद को अपवाद माना गया था।
क्या कहा था संघ प्रमुख ने?
मौर्य का यह ट्विट इसलिए भी अहम है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक यानी प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ समय पहले कहा था कि मथुरा और काशी के मंदिरों की माँग करने वाले 'थोड़ा धैर्य' रखें।
उन्होंने कहा था कि "काशी और मथुरा के मसजिदों पर हिंदुओं के दावे पर पहले आम सहमति बननी चाहिए।"
उन्होंने कहा था, "इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए और इसमें मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।"
मोहन भागवत ने कहा था, "हमारा मानना है कि इन धार्मिक स्थलों की संरचना को बदलने के लिए एक और आन्दोलन खड़ा करने से बेहतर है कि इस पर स्वत: स्फूर्त काम होना चाहिए।"
और अब उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ने ऐसा ट्वीट किया है।