दिल्ली में स्थित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में बीते साल 5 जनवरी को सैकड़ों की संख्या में नक़ाबपोश घुसे, उन्होंने तीन घंटे तक कोहराम मचाया, छात्र-छात्राओं और टीचर्स को पीटा लेकिन साल भर बाद भी इस मामले में कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है। कोई चार्जशीट तक दाख़िल नहीं हुई है और विश्वविद्यालय की ओर से इस मामले में चल रही आंतरिक जांच को भी बंद कर दिया गया है। हिंसा में 36 लोग घायल हुए थे। इनमें टीचर्स और छात्र-छात्राएं शामिल थे।
हिंसा और गुंडई की ये जघन्य वारदात उस दिल्ली में हुई थी, जहां की सुरक्षा केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है, जिसके पास बेहतर संसाधनों वाली पुलिस फ़ोर्स है और जो देश की राजधानी है।
5 जनवरी को हुई हिंसा की इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस ने 9 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेन्स की थी और 9 संदिग्ध छात्रों के नाम बताए थे। इनमें से 7 वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े थे और 2 एबीवीपी से थे।
इस मामले में वसंत कुंज थाने में तीन एफ़आईआर दर्ज की गई थीं। दिल्ली पुलिस के आयुक्त अमूल्य पटनायक ने इसकी जांच दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को सौंपी थी और 20 लोगों की एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की थी। मामले की जांच बेहतर ढंग से हो सके, इसके लिए जेएनयू के एडमिन ब्लॉक के अंदर पुलिस का दफ़्तर भी बनाया गया था।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, एसआईटी ने मामले में 88 लोगों से पूछताछ की थी। घायल छात्रों, टीचर्स, वार्डन्स, सिक्योरिटी गार्ड और ऐसे छात्र जिन पर हिंसा के आरोप लगे, उनसे भी पूछताछ की गई।
पुलिस का कहना है कि लॉकडाउन लगने के कारण जांच आगे नहीं बढ़ सकी और छात्र घरों को चले गए। इस वजह से वह हिंसा में शामिल छात्रों के ख़िलाफ़ पुख़्ता सबूत नहीं जुटा सकी।
हिंसा के दौरान एबीवीपी की छात्रा कोमल शर्मा की फ़ोटो काफ़ी वायरल हुई थी। एसआईटी ने उससे भी पूछताछ की लेकिन कोमल का कहना है कि वह उस दिन कैंपस में मौजूद ही नहीं थी।
जेएनयू प्रशासन ने भी इस मामले में आतंरिक जांच के लिए 5 लोगों की एक कमेटी बनाई थी। लेकिन रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार का कहना है कि पुलिस की जांच चल रही थी इसलिए आंतरिक जांच को बंद कर दिया गया। हिंसा में घायल हुए टीचर्स और छात्रों का कहना है कि कमेटी ने एक बार भी उनसे इस मामले में बात नहीं की।
आइशी घोष का बयान
जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष भी इस हिंसा में घायल हुई थीं। उनके सिर पर 16 टांके आए थे। घोष ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा, ‘एक साल बाद हिंसा की जांच के मामले में कुछ तो प्रगति होनी चाहिए थी। पुलिस ने हमसे कहा कि वह हमारे साथ है लेकिन एक बार हमारा बयान लेने के बाद वह दोबारा नहीं आई।’
घोष ने कहा कि उन्हें आतंरिक जांच से किसी तरह की उम्मीद थी भी नहीं लेकिन कमेटी ने एक बार भी उन लोगों से बात नहीं की।
साल भर बाद भी नहीं मिला जवाब
हिंसा में घायल हुईं प्रोफ़ेसर सुचित्रा सेन ने कहा कि उन्होंने पिछले साल 20 जनवरी को कुलपति को मामले की निष्पक्ष जांच और जेएनयू की ओर से हायर की गई सुरक्षा एजेंसी के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए पत्र भेजा था, लेकिन आज तक उन्हें इस बारे में कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने कहा कि यहां तक कि पुलिस ने एक साल में बस एक बार उनसे बात की।
हैरानी इस बात की है कि हिंसा की जांच के लिए बनी दिल्ली पुलिस की एसआईटी को बीते दिसंबर में क्लीन चिट मिल चुकी है।
एबीवीपी के कार्यकर्ता थे शामिल
जेएनयू हिंसा मामले में ‘इंडिया टुडे’ के स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया था कि हिंसा को अंजाम देने वालों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ता शामिल थे। स्टिंग ऑपरेशन में जेएनयू में बीए फ़्रेंच के फ़र्स्ट इयर के छात्र अक्षत अवस्थी ने चैनल के अंडर कवर रिपोर्टर से कहा था कि उन्होंने इस हमले का और हमला करने वाली भीड़ का नेतृत्व किया है। अक्षत अवस्थी ने दावा किया था कि वह एबीवीपी से जुड़ा है।
जेएनयू में घुसे नक़ाबपोशों ने ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’, ‘नक्सलवाद मुर्दाबाद’ और ‘न माओवाद, ना नक्सलवाद, सबसे ऊपर राष्ट्रवाद’ के नारे लगाए थे।
जेएनयू के छात्र-छात्राओं और टीचर्स ने आरोप लगाया था कि जिस दौरान ये नक़ाबपोश गुंडे उन्हें पीट रहे थे, उस दौरान पुलिस कैंपस के गेट पर मौजूद थी लेकिन उसने इन लोगों को रोकने की कोशिश नहीं की।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने ख़बर दी थी कि हिंसा वाले दिन पुलिस को दोपहर 2.30 बजे के बाद 4 घंटे तक 23 बार कॉल की गई लेकिन पुलिस तब कैंपस के अंदर आई जब उसे रजिस्ट्रार की ओर से आधिकारिक रूप से आने के लिए कहा गया। तब सवाल यही उठा था कि पुलिस कैंपस के बाहर क्यों खड़ी रही जबकि उसे कॉल कर हिंसा के बारे में लगातार बताया जाता रहा। पिछले साल दिसंबर में दिल्ली पुलिस ने जामिया के कैंपस में घुसकर छात्रों को पीटा था।