झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर 43 सीटों के लिए पहले चरण में 13 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। इनमें कोल्हान की 14 सीटें भी शामिल हैं, जहां 2019 के चुनाव में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था। पहले चरण में ही राज्य में आदिवासियों के रिजर्व 28 में से 20 सीटों पर भी चुनाव है। सबकी निगाहें आदिवासियों के लिए रिजर्व सीटों पर है। पूछा जा सकता है कि पठारी क्षेत्र में वोट को लेकर आदिवासियों का मन-मिजाज कैसा है।
दरअसल, झारखंड में सत्ता हासिल करने के लिए आदिवासियों के लिए रिजर्व सीटों पर जीत- हार के मायने बेहद महत्वपूर्ण रहे हैं। 2019 के चुनाव में आदिवासियों के लिए रिजर्व 28 में से सिर्फ दो सीट पर बीजेपी को जीत मिली थी। इसके साथ ही बीजेपी ने सत्ता गंवा दी थी। जाहिर तौर पर बीजेपी ने इस बार खोई जमीन के साथ सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताक़त झोंक रखी है। दूसरी तरफ़ इंडिया ब्लॉक के सबसे बड़े दारोमदार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तथा उनकी पत्नी जेएमएम विधायक कल्पना सोरेन इस टसल में सबसे बड़े लड़इया के तौर पर उभरे हैं।
पहले चरण में ही हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने 11 दिनों में कम से कम 80 चुनावी चुनावी सभाएँ की हैं। इनमें 36 सभा कोल्हान में की गई है। कोल्हान के क़िले पर हेमंत सोरेन किसी हाल में दरक नहीं लगने देना चाहते हैं। आदिवासी इलाकों में हुईं सोरेन की सभाओं में उमड़ती भीड़ से भी जेएमएम उत्साहित है। दूसरी तरफ जेएमएम के कैडर और समर्थक भी गोलबंद हुए हैं। राहुल गांधी ने भी कोल्हान में चुनावी सभा की है।
जबकि बीजेपी उम्मीदवारों के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई केंद्रीय नेता और दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार कर चुके हैं। लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद से झारखंड में केंद्रित बीजेपी के लिए कोल्हान प्राथमिकता में रहा है। हेमंत सोरेन ने 10 नवंबर को चक्रधरपुर की चुनावी सभा में बीजेपी पर हमले करते हुए लोगों से कहा, “बाहर वाले आसमान में 50-60 हेलीकॉप्टर लेकर मंडरा रहे हैं। आपलोग तीर धनुष लेकर तैयार रहिए।“
हालांकि हेमंत सोरेन मानते हैं कि लड़ाई बिल्कुल आमने- सामने की है, पर वे अपनी जीत के साथ आदिवासी इलाक़ों में पहले की तरह समर्थन को लेकर भरोसेमंद हैं। 9 नवंबर को रांची स्थित मुख्यमंत्री आवास में पत्रकारों से रूबरू हुए सोरेन ने एक सवाल के जवाब में कहा, “अगर विपक्ष (एनडीए) मजबूत है, तो सत्ता पक्ष (इंडिया ब्लॉक) कमजोर है क्या। हम बेहतरीन प्रदर्शन करने जा रहे हैं।“ इस बीच कप्लना सोरेन ने एक टीवी चैनल पर आए सर्वेक्षण को X (सोशल मीडिया) पर एक पोस्ट में सख्ती से खारिज करते हुए दावा किया है कि लिख कर रख लीजिये, एनडीए 36 प्रतिशत वोट शेयर पार नहीं कर रहा है।
81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा के लिए 2019 के चुनाव में जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने 36.35 प्रतिशत वोट हासिल कर 47 सीटों पर जीत दर्ज की थी। दूसरी तरफ अकेले चुनाव लड़ी बीजेपी ने 33.37 वोट प्रतिशत के साथ 25 सीटों पर जीत हासिल की थी।
इस बार बीजेपी ने आजसू पार्टी, जेडीयू और एलजेपी को गठबंधन में शामिल करते हुए उनके लिए 11 सीटें छोड़ी है। बीजेपी 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
पहले चरण में कोल्हान के अलावा पलामू रिजन की नौ और छोटानागपुर रिजन की 18 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। पहले चरण में जिन 43 सीटों पर वोट डाले जाएंगे, उन्हें 2019 के नतीजे के आईने में देखें, तो 17 पर जेएमएम और बीजेपी ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के खाते में 8 सीटें आई थीं, जबकि दो पर निर्दलीय और दो सीट पर जेवीएम-एनसीपी और एक सीट पर आरजेडी उम्मीदवार की जीत हुई थी।
चंपाई सोरेन और चार मंत्रियों के भाग्य का फ़ैसला
पहले चरण में ही कोल्हान में बीजेपी की बड़ी उम्मीद बने पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के भाग्य का फ़ैसला होना है। पिछले 30 अगस्त को जेएमएम छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए चंपाई सोरेन सरायकेला सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार जेएमएम के गणेश महाली से उनका मुक़ाबला है। चंपाई सोरेन अपनी घेराबंदी तोड़ने की हर कोशिशों में जुटे हैं।
कोल्हान में ही जेएमएम के कद्दावर नेता और हेमंत सरकार में मंत्री- चाईबासा से चुनाव लड़ रहे दीपक बिरूआ, घाटशिला से रामदास सोरेन और जमशेदपुर पश्चिम से कांग्रेस उम्मीदवार तथा मंत्री बन्ना गुप्ता के भाग्य का फ़ैसला भी पहले चरण में होना है। 2019 के चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर रघुवर दास को हराने वाले सरयू राय इस बार जेडीयू के टिकट से जमशेदपुर पश्चिम सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
कोल्हान की तीन सीटें इचागढ़, मनोहरपुर और जुगसलाई (अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व) से बीजेपी की सहयोगी आजसू के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका मुकाबला जेएमएम के उम्मीदवारों से है। मनोहरपुर में सिंहभूम की जेएमएम सांसद जोबा माझी के पुत्र जगत माझी को मैदान में उतारा गया है। जोबा माझी खुद इस सीट से पांच बार विधानसभा चुनाव जीती हैं।
हो महासभा के केंद्रीय अध्यक्ष मुकेश बिरूआ कहते हैं, “कोल्हान में आदिवासियों का मन और मिजाज यूं कहें भावना सीधे तौर पर जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा से जुड़ी है। आदिवासी इसे गंभीरता से भांप रहे हैं और वोट के लिए तैयार भी हैं। यह समाज चुप रहता है, पर गुनता सब कुछ है। इसके साथ ही गैर जरूरी सवाल और प्रचार भी उसे पसंद नहीं है।“
खरसावां से जेएमएम के विधायक और उम्मीदवार दशरथ गागराई कहते हैं कि बीजेपी के लिए कोल्हान की जमीन में अब कोई जगह नहीं रही है और इस बार भी बीजेपी का हर दांव यहां खाली जाएगा।
अर्जुन मुंडा की पत्नी, रघुवर दास की बहू, चंपाई के बेटे
पहले चरण के चुनाव में ही कोल्हान में पोटका सीट से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा, जमशेदपुर पूर्वी सीट से ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू, घाटशिला से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर सीट से बीजेपी की उम्मीदवार हैं। पोटका में ही अर्जुन मुंडा अपनी पत्नी की चुनावी खेवनहार बने हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में खूंटी से अर्जुन मुंडा चुनाव हार गए हैं।
उधर पूर्णिमा दास साहू का मुकाबला पूर्व सांसद और कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ. अजय कुमार और गीता कोड़ा का मुकाबला कांग्रेस के सोनाराम सिंकू से है। पूर्व मुख्यमंत्रियों की पत्नी, बहू, बेटे को टिकट दिए जाने पर बीजेपी को सत्तारूढ़ दलों की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। दस नवंबर को पोटका की एक चुनावी सभा में बीजेपी के वंशवाद पर तंज कसा गया था।
मधु कोड़ा और गीता कोड़ा पूर्व में जगन्नाथपुर सीट से दो- दो बार विधायक रहे हैं। लेकिन इस बार सिंहभूम संसदीय सीट पर गीता कोड़ा की करारी हार के बाद जेएमएम- कांग्रेस की सीधी नजर इस बार जगन्नाथपुर विधानसभा में कोड़ा दंपती की घेराबंदी पर है। इसी सीट पर पूर्व विधायक मंगल सिंह बोंबोगा के चुनाव मैदान में उतरने से समीकरणों के प्रभावित होने के खतरे से बीजेपी और इंडिया ब्लॉक दोनों को संभलने की चुनौती है।
घाटशिला से चुनाव लड़ रहे जेएमएम के उम्मीदवार रामदास सोरेन कहते हैं, “बाहर से चुनाव प्रचार करने आते बीजेपी के नेता जिस तरह से प्रचार में झूठ और प्रोपेगैंडा फैला रहे हैं, उससे आदिवासी समाज सचेत है। छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में राज्य में आदिवासियों के लिए रिजर्व सभा पांच सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। इस बार भी बीजेपी की आदिवासी इलाकों में हार होगी। हेमंत सोरेन ही झारखंड के सर्वमान्य नेता हैं और वही मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।“
छोटानगपुर आर पलामू में जोरदार मोर्चाबंदी
पहले चरण में ही पलामू और छोटानागपुर रिजन में जेएमएम- कांग्रेस के सामने कई आदिवासी सीटों और बीजेपी को सामान्य सीटों पर अपने दबदबा को बचाने की चुनौती है। खूंटी में बीजेपी के नीलकंठ सिंह मुंडा और तोरपा में कोचे मुंडा को भी सीट बचाने की चुनौती है। 2019 में यही दो आदिवासी सीटें बीजेपी जीत सकी थी। जबकि खूंटी में नीलकंठ सिंह मुंडा लगातार चार बार से जीतते रहे हैं।
उधर लोहरदगा में सरकार के मंत्री और कांग्रेस उम्मीदवार रामेश्वर उरांव का आजसू पार्टी की नीरू शांति से मुकाबला है। दस नवंबर को रांची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो के बाद बीजेपी की उम्मीदें बढ़ी हैं। रांची में बीजेपी के छह बार के विधायक सीपी सिंह का मुक़ाबला जेएमएम की उम्मीदवार और राज्यसभा की सांसद डॉ. महुआ माजी से है। जेएमएम की नजर सामान्य सीटों पर भी अपना दायरा बढ़ाने पर है।
बीजेपी के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रवींद्र कुमार राय कहते हैं, “एनडीए सत्ता में आ रहा है। पहले चरण में ही इंडिया ब्लॉक लड़ाई से बाहर हो जाएगा। इस सरकार ने हर वर्ग के लोगों को निराश किया है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में चुनाव लड़ रहे एनडीए को हर जगह समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस का बुरा हाल होगा।“
बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में कई बड़े एलान के साथ युवाओं के लिए नौकरी, रोजगार, महिलाओं को हर महीने खाते में 2100 रुपए देने, पेपर लीक की सीबीआई जांच, करप्शन के खिलाफ जीरो टोलरेंस जैसे वादे किए हैं।
साथ ही पार्टी ने झारखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) लाने का एजेंडा सामने रखा है। हालांकि पार्टी ने कहा है कि इससे आदिवासियों को बाहर रखा जाएगा।
इधर इंडिया ब्ल़ॉक ने ‘एक वोट सात गांरटी’ के नाम से जारी अपने घोषणा पत्र में कई वैसे मुद्दे और सवालों को नए सिरे से उछाल दिया है, जिसे लेकर सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा बीजेपी तथा केंद्र सरकार को लगातार निशाने पर लेती रही है। इंडिया ब्लॉक ने आदिवासियों के लिए सरना कोड लागू कराने और अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाने तथा 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू कराने की गांरटी दी है। गौरतलब है कि ये तीनों मुद्दे संवेदनशील रहने के साथ सियासत के केंद्र में रहे हैं। इसके साथ ही महिलाओं को मुख्यमंत्री मईंया सम्मान योजना के तहत दी जा रही एक हजार रुपए की राशि को बढ़ाकर ढाई हजार करने की घोषणा कर बॉल एनडीए के कोर्ट में डाल दिया है।