ऐसा लगता है कि कश्मीर पर बर्फ पिघलने लगी है। जो बर्फ 5 अगस्त 2019 को जम गई थी, उसके पिघलने की शुरुआत शायद अगले हफ़्ते से ही होने लगेगी।
ख़बर गर्म है कि 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कश्मीरी नेताओं के बीच भेंट होगी। इस भेंट का मुख्य लक्ष्य क्या है, यह प्रचारित नहीं किया जा रहा है। लेकिन सुविज्ञ क्षेत्रों में माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के लिए निर्वाचन-क्षेत्रों का पुनर्निधारण करने के लिए कश्मीरी नेताओं से विचार-विमर्श किया जाएगा।
इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि जिला विकास परिषदों के चुनाव के बाद अब विधानसभा के चुनाव होंगे?
क्या कहा है फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने?
निर्वाचन-क्षेत्रों के पुनर्निधारण के लिए जो आयोग बना है, उसकी पिछली बैठकों में कश्मीरी नेताओं ने भाग नहीं लिया था, लेकिन अब गुपकार गठबंधन के नेता डॉक्टर फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा है कि उन्हें किसी भी संवाद से कोई परहेज नहीं है। हालांकि उन्हें, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और पीडीएफ की नेता महबूबा मुफ़्ती वगैरह को सरकार ने नजरबंद कर दिया था।
ये सभी दल मिलकर धारा 370 और 35 'ए' को खत्म करने का विरोध कर रहे थे और कश्मीर को मिले विशिष्ट राज्य के दर्जे को बहाल करने का आग्रह कर रहे थे। इस तनातनी के बीच दिसंबर 2020 में हुए ज़िला विकास परिषदों के चुनाव में कुल 280 सीटों में से गुपकार गठबंधन को 110 सीटें मिलीं और ज्यादातर परिषदों पर उसका कब्जा हो गया।
पिछले दो चुनावों का इन पार्टियों ने बहिष्कार किया था, लेकिन जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बावजूद उन्होंने इन चुनावों में भाग लिया। इस तथ्य से आशा बंधती है कि वे विधानसभा के चुनाव भी ज़रूर लड़ेंगी, लेकिन असली सवाल यही है कि क्या वे जम्मू-कश्मीर के पुराने दर्जे को बहाल करने पर अड़ी रहेंगी? वे बिल्कुल अड़ी रहेंगी।
लेकिन जहाँ तक केंद्र सरकार का सवाल है, उसने संसद में वचन दिया था कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा दुबारा बहाल किया जा सकता है।
पाकिस्तान का रवैया
फिलहाल, मनोज सिंहा उप-राज्यपाल के तौर पर वहाँ कुशलतापूर्वक शासन चला रहे हैं। आतंकवादी घटनाओं पर नियंत्रण है, कोई जन-आंदोलन भी नहीं हो रहे हैं और कश्मीरी नेता भी संयम का परिचय दे रहे हैं। पाकिस्तान के सेनापति क़मर जावेद बाजवा ने कश्मीर पर बातचीत का प्रस्ताव किया है और प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी कश्मीर-विलय पर एक रस्मी बयान दे दिया था।
उन्होंने कोई उग्रवादी रवैया नहीं अपनाया है। ऐसी हालत में कश्मीरी नेताओं से होनेवाला सीधा संवाद काफी सार्थक सिद्ध हो सकता है। इस कोरोना-काल में कश्मीरी जनता के सेवा में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। यदि धारा 370 और 35 'ए' बहाल न भी हों तो भी यह ज़रूरी है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा शीघ्र दिया जाए और वहां लोकप्रिय सरकार शीघ्र ही कार्य करने लगे।