भारतीय रिज़र्व बैंक का अनुमान है कि भारत में इतिहास में पहली बार तकनीकी रूप से आर्थिक मंदी आ गई है। अब तक रिपोर्टों में आर्थिक मंदी की बात तो की जाती रही है, लेकिन अब इसे तकनीकी तौर पर भी माना गया है। यह इसलिए कि आर्थिक मंदी से उबरने की आस लगाए बैठी भारत की अर्थव्यवस्था के जुलाई-सितंबर महीने में भी सिकुड़ने के आसार हैं। इससे पहले की तिमाही में भी यह सिकुड़ी थी। जब लगातार दो तिमाही में अर्थव्यवस्था सिकुड़ती है यानी विकास दर नेगेटिव रहती है तो तकनीकी तौर पर आर्थिक मंदी कहा जाने लगता है।
अर्थव्यवस्था या जीडीपी में सिकुड़न का अर्थ है कि विकास दर नेगेटिव में रहेगी। यानी जो पहले से स्थिति है उसमें बढ़ोतरी तो नहीं ही होगी, बल्कि वर्तमान स्थिति में गिरावट आएगी। यानी आसान भाषा में इसे विकास का पहिया उल्टा घूमना भी कहा जा सकता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक यानी आरबीआई का ताज़ा अनुमान है कि इस तिमाही में जीडीपी में 8.6 फ़ीसदी की सिकुड़न आएगी। इससे पहले अगस्त महीने में आई एनएसओ यानी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, पहली तिमाही अप्रैल-जून में अर्थव्यवस्था 23.9 फ़ीसदी सिकुड़ी थी। इस तरह से लगातार दो तिमाही में यानी छह महीनों में अर्थव्यवस्था सिकुड़ी। हालाँकि आरबीआई का अनुमान है कि अगली तिमाही अक्टूबर-दिसंबर में जीडीपी विकास दर सकारात्मक हो जाएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर की गति बनी रहने से आर्थिक गतिविधियों के बहाल होने की पूरी उम्मीद है। इसमें यह भी कहा गया है कि यदि यह तेज़ी आगामी दो महीनों में बरकरार रहती है, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था छह महीने के सिकुड़न से बाहर निकल जाएगी।
हालाँकि ये रिपोर्टें उम्मीद जगाती हैं लेकिन पूरे वित्तीय वर्ष की बात करें तो अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब रहने वाली है। कई एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में इसका अनुमान लगाया है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ ने अपने अनुमान में कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था और ज़्यादा सिकुड़ेगी। इसका अनुमान है कि मार्च 2021 में ख़त्म होने वाले इस वित्त वर्ष में जीडीपी 10.3 फ़ीसदी सिकुड़ जाएगी। इसने पहले जून में 4.5 फ़ीसदी तक सिकुड़ने का अनुमान लगाया था। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के अनुमानों में इस तरह की गिरावट कभी नहीं रही जहाँ 5.8 पर्सेंटेज प्वाइंट कम करना पड़ा हो। जबकि चीन के बारे में स्थिति अलग है। आईएमएफ़ का अनुमान है कि उसकी जीडीपी विकास दर सकारात्मक रहेगी। इसने चीन के लिए जून में जहाँ जीडीपी विकास दर 1 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया था वहीं अब इसने बढ़ाकर इसे 1.9 फ़ीसदी कर दिया है।
पिछले महीने ही भारतीय रिज़र्व बैंक यानी आरबीआई ने भारत की जीडीपी की वृद्धि दर -9.5 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया है।
सितंबर के दूसरे हफ़्ते में केअर रेटिंग्स ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा था कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर शून्य से 8.2 प्रतिशत तक नीचे जा सकती है। इसने पहले जीडीपी के शून्य से 6.4 प्रतिशत तक नीचे जाने का अनुमान लगाया था।
केअर रेटिंग्स के पहले अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 14.8 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यानी जीडीपी वृद्धि दर शून्य से 14.8 प्रतिशत से नीचे चली जाएगी। यह इसी कंपनी के पहले के अनुमान से कम है। पहले इस निवेश बैंक ने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था 11.8 प्रतिश सिकुड़ेगी।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी फ़िच ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 10.5 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यह उसके पहले के अनुमान से बदतर स्थिति है। फ़िच रेटिंग्स ने पहले कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारत की जीडीपी शून्य से 5 प्रतिशत नीचे चली जाएगी।
बता दें कि भारत की अर्थव्यवस्था में इस अप्रत्याशित गिरावट का कारण कोरोना लॉकडाउन रहा है। भारत में लॉकडाउन दुनिया में सबसे ज़्यादा लंबे समय तक रहा और सख़्ती से इसे लागू किया गया। इस दौरान पूरी आर्थिक गतिविधियाँ ठप पड़ गईं। उद्योग-धंधे बंद पड़ गए। करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए। और इसका असर अर्थव्यवस्था पर दिखा। तभी तो जून की तिमाही में जीडीपी विकास दर नेगेटिव में 23.9 फ़ीसदी चली गई।
जून क्वार्टर के बाद भी कोरोना को नियंत्रित नहीं किया जा सका है और आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह प्रभावित हैं। हालाँकि अनलॉक होने के कारण अब आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आ रही है और अर्थव्यवस्था में थोड़ी सी जान आती दिख रही है।