कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए इसे देश की आर्थिक बदहाली के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था बदहाल है और अब तो सरकारी एजेन्सी ने भी यह मान लिया है जो हम पहले से कहते आ रहे हैं। उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि अब हमारे समाधान के तरीक़े को अपनाइए और ज़रूरतमंदों के हाथों में पैसा देकर अर्थव्यवस्था को रिमोनेटाइज़ कीजिए। राहुल की यह टिप्पणी नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की अर्थव्यवस्था को लेकर जताई गई चिंता के बाद आई है। राजीव कुमार ने गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा था कि देश में 70 साल में अब तक नकदी का ऐसा संकट नहीं देखा गया है। सरकार के लिए यह अप्रत्याशित समस्या है।
इस मामले में राजीव कुमार के बयान और राहुल गाँधी के सरकार पर निशाना साधने के बाद सरकार में हलचल बढ़ गई। अर्थव्यवस्था की हालत पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर लोगों को विश्वास दिलाया कि स्थिति बेहतर होगी और दुनिया के दूसरे देशों की अपेक्षा स्थिति बेहतर रहेगी। उधर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी अपने बयान पर सफ़ाई दी है। उन्होंने ट्वीट किया, 'मैं मीडिया से आग्रह करता हूँ कि मेरे बयान को ग़लत ढंग से दिखाना बंद करे। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार कड़े क़दम उठा रही है और ऐसा आगे भी करती रहेगी। किसी भी तरह से घबराने और घबराहट का माहौल पैदा करने की ज़रूरत नहीं है।'
कोई भरोसा नहीं कर रहा: राजीव कुमार
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा था कि कोई भी किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है इसलिए लोग कैश पर बैठ गए हैं और कोई भी मार्केट में पैसा नहीं निकाल रहा है। राजीव कुमार ने कहा था, 'यह सिर्फ़ सरकार और प्राइवेट सेक्टर की बात नहीं है। निजी क्षेत्र में आज कोई भी किसी और को क़र्ज़ नहीं देना चाहता।' हालाँकि राजीव कुमार ने मौजूदा समस्या के लिए यूपीए के कार्यकाल को ज़िम्मेदार ठहराया था। उन्होंने कहा था कि साल 2009 से 2014 के दौरान बिना सोच-विचार के क़र्ज़ बाँटा गया, जिससे साल 2014 के बाद एनपीए में बढ़ोतरी हुई।
राजीव कुमार ने यह भी कहा था कि निजी निवेश भारत को मध्य आय के जाल से बाहर निकाल देगा। उन्होंने यह भी कहा था कि केंद्रीय बजट में वित्तीय क्षेत्र में तनाव को दूर करने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए कुछ क़दमों की घोषणा की गई है।
अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब
सरकार कुछ भी दावे करे, लेकिन स्थिति यही है कि भारत की अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में अफरा तफरी है। बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर है। विनिर्माण क्षेत्र की हालत ख़स्ता है। यही कारण है कि माँग काफ़ी ज़्यादा कम हो गई है। इसका एक अर्थ यह भी है कि लोगों की सामान ख़रीदने की क्षमता कम हुई है।
बता दें कि 2018-19 में कृषि की विकास दर सिर्फ़ 2.9 फ़ीसदी रही और आख़िरी तिमाही में तो यह सिर्फ़ 0.1 फ़ीसदी थी। जीडीपी विकास दर भी मार्च तिमाही में गिरकर 5.8 फ़ीसदी पर आ गई है। इसका असर तो ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार पर भी पड़ेगा और बेरोज़गारी बढ़ने की आशंका रहेगी। हाल ही में सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 45 साल में रिकॉर्ड बेरोज़गारी है। यानी स्थिति और बदतर होने की आशंका है।
जीडीपी वृद्धि दर भी घटने की आशंका
इंटरनेशनल मोनेटरी फ़ंड ने हाल में ही वर्ष 2019-2020 के लिए भारत की वृद्धि दर को 7.3 से घटा कर 7 प्रतिशत तक पहुँचा दिया है। इसके पहले एशियाई डेवलपमेंट बैंक ने भी वृद्धि को 7.2 से 7 प्रतिशत तक कर दिया है। भारतीय रिज़र्व बैंक भी इसी नतीजे पर पहुँचा है। इसका सीधा सा मतलब है कि अर्थव्यवस्था की हालत वैसी नहीं है, जैसा सरकार बता रही है, वित्त मंत्री बता रहीं हैं या फिर प्रधानमंत्री जी अपने भाषणों में बता रहे हैं।