केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बुधवार को बजट पेश करेंगी। यह 2024 के आम चुनाव के पहले इस सरकार का आखिरी पूर्ण बजट है। 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले एक बजट और आना है, लेकिन परंपरा के अनुसार वो लेखानुदान या अंतरिम बजट होगा। तो सवाल है कि इस बजट में इस बार क्या होगा? क्या इसमें उन बातों का ध्यान रखा जाएगा जिसको लेकर आर्थिक मामलों के जानकार आगाह करते रहे हैं?
दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंकाओं के बीच भारत सरकार ने जो आज आर्थिक सर्वे पेश किया है उसमें भी भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती हुई दिखती है। भले ही जीडीपी वृद्धि के मामले में दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भारत की होगी, लेकिन यह वृद्धि पहले से कम हुई है। महंगाई बढ़ने और रुपये के कमजोर होने को लेकर भी आगाह किया गया है। तो क्या बजट में आम लोगों को राहत मिलेगी?
आर्थिक मामलों के जानकार मौजूदा परिस्थितियों में इनकम टैक्स कम होने या स्लैब में बदलाव, मध्यवर्ग को कर में राहत, वेतनभोगी लोगों के लिए कुछ उपाय किए जाने की उम्मीद जता रहे हैं। आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी कहते हैं कि अर्थशास्त्रियों, उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों को छोड़ दें तो कुछ साल पहले तक आम आदमी दो ही चीजें समझने के लिए बजट देखा या पढ़ा करता था। एक तो यह कि क्या महंगा और क्या सस्ता हुआ। और दूसरा इनकम टैक्स में क्या घटा और क्या बढ़ा। जीएसटी लागू होने के साथ ही महंगे सस्ते का खेल तो क़रीब क़रीब बंद ही हो चुका है। लेकिन अभी इनकम टैक्स के मामले में उम्मीद और आशंका के दरवाज़े खुले हुए हैं।
इस बार यह उम्मीद या मांग बढ़ने की और भी वजहें हैं कि सरकार को टैक्स फ्री आमदनी की सीमा बढ़ानी चाहिए और टैक्स स्लैब भी ऊपर उठाने चाहिए। सबसे बड़ी वजह तो यही है कि कोरोना काल में जहाँ देश की इकोनॉमी और उद्योग-व्यापार को झटका लगा वहीं आम आदमी की जेब और परिवार के बजट को भी इससे कम चोट नहीं पहुँची थी।
सरकार ने उद्योगों को, व्यापारियों को, ग़रीबों को, यहाँ तक कि ईएमआई भरनेवालों और किराए पर रहनेवालों तक को भी कुछ न कुछ राहत देने की कोशिश की। लेकिन मध्यवर्ग को ऐसी कुछ खास राहत नहीं मिली।
देश के सबसे तेज़ तर्रार उद्योग संगठन सीआईआई ने भी बजट से पहले के अपने सुझावों में जोरदार मांग की है कि वित्तमंत्री को इनकम टैक्स की दरें घटानी चाहिए।
आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि के माध्यम से सरकारी राजस्व बढ़ाने के प्रयासों का खामियाजा वेतनभोगी वर्ग को भुगतना पड़ा है। कई तरह की छूट को हटाए जाने और कर नियमों में बदलाव से वेतनभोगी वर्ग को अधिक कर का भुगतान करना पड़ता है।
इस बार बजट में कुछ मिलेगा ऐसी उम्मीदें भी ज्यादा हैं। इसकी वजह यह है कि नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना और यूक्रेन पर रूसी हमले जैसी समस्याओं से जूझने के बावजूद सरकार की कमाई बढ़ती हुई ही दिख रही है। दिसंबर के महीने में जीएसटी से 149507 करोड़ रुपए की वसूली हुई।
इस सरकार से पहले भी न जाने कितनी सरकारें चुनाव से पहले वाले बजट में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को खुश करने का इंतज़ाम करती रही हैं। परंपरा से कहा भी जाता है कि चुनाव जीतने के बाद सरकार पहले इकोनॉमी को मज़बूत करने के लिए कठोर फ़ैसले करती है और चुनाव नज़दीक आने पर फिर लोक लुभावन बजट पेश करती है। इसीलिए चुनाव से पहले के सालों में उम्मीदें बढ़नी शुरू हो जाती हैं।
लेकिन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के सामने चुनौतियाँ कम नहीं हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने उनका काम मुश्किल बनाए रखा है। ब्रिटेन, जापान, यूरोप और अमेरिका में मंदी की आशंका दिनोंदिन हकीकत में बदल रही है और अब सबसे बड़ा सवाल है कि मंदी के अंधड़ के बीच भारत कैसे अपने पैर जमाए रह पाएगा? और क्या इस बार का यह बजट इससे अछूता रह पाएगा?