गाँवों में किसानी और रोज़गार की हालत कितनी ख़राब है, यह मनरेगा के आँकड़े साफ़ बयान कर रहे हैं। पिछले साल के मुक़ाबले इस साल मनरेगा में काम माँगने में रिकॉर्ड दस फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस वित्तीय वर्ष में 25 मार्च तक मनरेगा के तहत 255 करोड़ व्यक्ति दिन काम हुआ और इसमें अभी और भी बढ़ोतरी होने की संभावना है। पिछले साल इस योजना में 233 करोड़ व्यक्ति दिन रोज़गार मिले थे। इस साल मनरेगा में काम मिलने की यह संख्या आठ साल में सबसे ज़्यादा है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि काम माँगने वालों की संख्या में काफ़ी इज़ाफा हुआ है।
मनरेगा में रोज़गार की स्थिति पर अंग्रेज़ी अख़बार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें कहा गया है कि ग्रामीण संकट के एक संकेत के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के आख़िरी साल में मनरेगा के तहत नौकरियों की माँग में ज़बर्दस्त बढ़ोतरी देखी गई है।
इस एनडीए सरकार के पहले साल यानी 2014-15 में जब सिर्फ़ 166 करोड़ व्यक्ति रोज़गार मिले थे तो प्रधानमंत्री मोदी ने मनरेगा योजना को यूपीए सरकार की विफलता का स्मारक बताया था।
हालाँकि, इसके अगले ही साल यह संख्या बढ़कर 235 करोड़ व्यक्ति हो गयी थी और अब यह 255 करोड़ तक पहुँच गयी है।
मनरेगा के तहत साल में सामान्य स्थिति में 100 दिन और सूखे की स्थिति में 150 दिन रोज़गार देना होता है। हालाँकि, आँकड़े बताते हैं कि इस साल मनरेगा में प्रति परिवार 49 दिन ही रोज़गार मिला है। इससे पहले के वर्षों में तो यह और भी कम था। 2009-10 में यूपीए सरकार के समय जब सूखा पड़ा था तब 283 करोड़ व्यक्ति दिन रोज़गार मिला था।
तो कितना गहरा है यह संकट
मनरेगा में काम माँगने वालों की संख्या बढ़ने का मतलब है कि गाँवों में लोगों को रोज़गार मिलने के अवसर कम हुए हैं। कृषि संकट की लगातार रिपोर्टें आती रही हैं। मज़दूर संगठन भी कुछ ऐसा ही मानते हैं। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट में मजदूर किसान शक्ति संगठन के निखिल देव का बयान छपा है। वह कहते हैं कि बेरोज़गारी और सूखे की स्थिति में लोग कोई भी काम करेंगे। उनके अनुसार बेरोज़गारी के कारण मनरेगा के काम की माँग बढ़ी है। वह यह भी कहते हैं कि वित्त मंत्रालय द्वारा इस योजना के लिए अपर्याप्त रुपये आवंटित किए जाने के कारण सभी काम माँगने वालों को दिक्कतें आती रही हैं, लेकिन लगता है कि सरकार ने अब हमारी ज़रूरतों को समझा है।
- अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा योजना लागू करने वाले एक अधिकारी का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे या बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हुई है और इस कारण किसानी में आय कम हुई है। इस कारण लोग मनरेगा की ओर रुख़ कर रहे हैं। हालाँकि, ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले अधिकारी मानते हैं कि गाँवों में रोज़गार के अवसर कम हुए हैं इसीलिए मनरेगा में काम माँगने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
सूखे की स्थिति में 150 दिन रोज़गार
ग्रामीण विकास मंत्रालय के आकलन के अनुसार हाल के वर्षों में देश के एक चौथाई ज़िलों को सूखा घोषित किया गया है और इस कारण मनरेगा में रोज़गार माँगने वालों की संख्या बढ़ी है। झारखंड और कर्नाटक के अधिकतर ज़िलों में सूखे के कारण इस साल 18 मार्च को इस योजना के तहत 150 दिन काम दिए जाने की घोषणा की गयी है। सूखा पड़ने की स्थिति में लोगों के पास काम नहीं होता है और ऐसे वक़्त में उन्हें रोज़गार की ज़रूरत होती है।
बता दें कि झारखंड में सबसे कम 168 रुपए मेहनताना मिलता है। इस योजना के तहत एक व्यक्ति को एक दिन में आमतौर पर आठ घंटे काम करना पड़ता है। इसे एक व्यक्ति दिन माना जाता है।