तुर्की के आयची ने दो हफ्तों में ही एयर इंडिया सीईओ का पद क्यों ठुकराया?

06:24 pm Mar 01, 2022 | सत्य ब्यूरो

तुर्की के इल्कर आयची ने टाटा के एयर इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनने से इनकार कर दिया है।  टाटा संस के बोर्ड ने 14 फरवरी को आयची को एयर इंडिया का सीईओ और एमडी नियुक्त किया था। भारत सरकार एयर इंडिया का स्वामित्व 27 जनवरी को टाटा ग्रुप को सौंप चुकी है। आयची साल 2015 से 2022 तक तुर्की एयरलाइंस के चेयरमैन रह चुके हैं। आयची ने एयर इंडिया में यह पद एक महीने के अंदर क्यों छोड़ा, इस पर सवाल उठना लाजिमी है।

इस सवाल का जवाब इल्कर आयची ने भी दिया है और इसका जवाब उनकी नियुक्ति को लेकर हुए विरोध में भी ढूंढा जा सकता है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, एयर इंडिया के नामित-एमडी और सीईओ इल्कर आयची ने ज़िम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया है। तुर्की में आयची द्वारा जारी एक ई-मेल प्रेस विज्ञप्ति का हवाला दिया गया है।

आयची ने अपने बयान में कहा, 'मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूं कि इस तरह के नैरेटिव के साये में पद को स्वीकार करना संभव या सम्मानजनक निर्णय नहीं होगा।' आयची ने आगे कहा, 'जब से मेरी नियुक्ति की घोषणा हुई है, तब से ही मैं देख रहा था भारतीय मीडिया का एक धड़ा मेरी नियुक्ति को जबरदस्ती कोई और रंग देने में लगा हुआ था। एक बिजनेस लीडर के नाते मैंने हमेशा पेशेवर रवैये को अपनाया है और इससे भी महत्वपूर्ण कि मुझे अपने परिवार की खुशियों व भलाई की फिक्र है। इन सब बातों को देखते हुए मैंने निर्णय लिया कि पेशकश को स्वीकार करना सम्मानजनक नहीं है।'

फ़रवरी के मध्य में जब आयची को एयर इंडिया के प्रमुख पद पर नियुक्त किया गया था तब उन्होंने यह ज़िम्मेदारी मिलने पर खुशी जाहिर की थी। उनकी नियुक्ति गृह मंत्रालय से सुरक्षा मंजूरी मिलने के अधीन थी और उनके 1 अप्रैल को या उससे पहले ज़िम्मेदारी संभालने की उम्मीद थी।

लेकिन कुछ दिनों पहले भारत में इस नियुक्ति पर विवाद शुरू हो गया था। आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने आयची की नियुक्ति पर एतराज़ जताया था।

स्वदेशी जागरण मंच ने आयची और तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन के बीच क़रीबी संबंध होने का आरोप लगाया था और इस आधार पर आयची को एयर इंडिया का एमडी और सीईओ बनाए जाने का विरोध किया था।

रिपोर्ट है कि तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति एर्दोगन जब 1994 में इस्तांबुल के मेयर थे, तब आयची उनके सलाहकार थे। क़रीब चार साल पहले वर्ष 2018 में उनकी शादी के समारोह में भी राष्ट्रपति एर्दोगन शामिल हुए थे। एर्दोगन पाकिस्तान समर्थित बयान देते रहे हैं। बता दें कि तुर्की ने कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने और समान नागरिकता क़ानून पारित किए जाने के बाद भारत का विरोध किया था। तुर्की ने कहा था कि कश्मीर समस्या का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के मुताबिक़ भारत और पाकिस्तान की बातचीत के जरिए ही निकल सकता है। 

बहरहाल, आयची के इस फ़ैसले पर अब तक सरकार व टाटा संस की ओर से प्रतिक्रिया नहीं आई है। 

वैसे, भारत में निजी कंपनियों के कई फ़ैसले दक्षिणपंथी समूहों के विरोध- प्रदर्शन से प्रभावित हुए हैं। पिछले साल कपड़ा का ब्रांड फैबइंडिया के विज्ञापन पर भी विवाद हुआ था। आपत्ति फैबइंडिया के उस कलेक्शन के विज्ञापन पर थी जिसका नाम 'जश्न-ए-रिवाज़' दिया गया था। इस पर बीजेपी नेताओं ने ऐसी आपत्ति की और सोशल मीडिया पर इसके बहिष्कार का अभियान चलाया कि फैबइंडिया को अपना विज्ञापन हटाना पड़ा। साल 2020 में भी दिवाली से पहले तनिष्क के विज्ञापन पर ऐसी ही आपत्ति की गई थी और उसको भी हिंदू-मुसलिम के तौर पर पेश कर विरोध प्रदर्शन किया गया था। उसे भी विज्ञापन हटाना पड़ा था। 

निजी कंपनियों पर ऐसे दबाव दिए जाने के मामले आने पर सवाल उठते रहे हैं कि निजी कंपनियाँ ऐसे में स्वतंत्र रूप से काम कैसे कर पाएँगी और ऐसे हालात में क्या भारत में निवेश को बढ़ावा मिलेगा?