ऐसे समय में जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका और यूरोप की मजबूत अर्थव्यवस्थाएं कोरोना महामारी की चपेट से निकलने के लिए जूझ रही हैं, चीन ने 4.9 प्रतिशत की विकास दर दर्ज कर सबको चौंका दिया है। इससे कई सवाल खड़े हुए और चीनी आर्थिक मॉडल की ओर एक बार फिर लोगों का ध्यान गया। इसके साथ ही यह सवाल भी उठने लगा है कि भारत इससे क्या सीख सकता है ताकि इसकी अर्थव्यवस्था किसी तरह पटरी पर लौट सके।
चीन के ऊहान प्रांत में सबसे पहले कोरोना का मामला आया और यह संक्रमण धीरे-धीरे पूरे चीन में फैलता चला गया। महामारी की चपेट में सबसे पहले चीनी अर्थव्यवस्था ही आई।
चीनी वृद्धि दर
इसी चीनी अर्थव्यवस्था ने जुलाई-सितंबर की तिमाही में पिछले साल इसी दौरान की तुलना में 4.9 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर्ज की। हालांकि दूसरे कुछ देश भी धीरे-धीरे महामारी की चपेट से बाहर निकलने लगे हैं, पर सकारात्मक विकास सबसे पहले चीन ने ही दिखाया है। चीन के नैशनल ब्यूरो ऑफ़ स्टैटिस्टिक्स ने दावा किया है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में 4.9 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर हासिल कर ली गई है।इससे चीनी अर्थव्यवस्था से जुड़े लोगों का मनोबल बढ़ा हुआ है। पीकिंग विश्वविद्यालय के नैशनल स्कूल ऑफ़ डेवलपमेंट के मानद डीन और कैबिनेट के सलाहकार जस्टिन लिन यीफू ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि विश्व अर्थव्यवस्था में चीन की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत तक हो जाएगी।
यह कैसे हुआ
महामारी शुरू होते ही चीन ने पर्सनल प्रोटेक्टिव उपकरण और कोरोना से जुड़ी दूसरी चीजों का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया और इसका निर्यात पूरी दुनिया में किया। इस दौरान इलेक्ट्रॉनिक उद्योग भी इसका बढ़ता रहा, निर्यात बढ़ता रहा। हालांकि इससे बहुत अधिक पैसे तो नहीं मिले, पर यह धारण ज़रूर बनी कि इस भयानक संकट के दौरान चीन अकेला देश है जो निर्यात कर रहा है, पैसे कमा रहा है।महामारी के बावजूद चीन में खपत व मांग निकलती रही। इसका नतीजा यह हुआ कि चीन ने कुछ ज़रूरी खाद्य सामग्रियों का आयात जारी रखा। इसने अमेरिका से अधिक सूअर का मांस, ब्राजील से अधिक मक्का और मलेशिया से अधिक पाम ऑयल खरीदा। इससे इन देशों को तो फ़ायदा हुआ ही, चीन में आवश्यक वस्तु सूचकांक को सहारा मिला और वह एकदम नीचे नहीं गिरा।
चीन की विकास दर बढ़ने से विश्व अर्थव्यवस्था को बहुत अधिक सहारा नहीं मिला क्योंकि चीन ने जितना आयात किया, उससे ज़्यादा निर्यात किया। पर चीन की अर्थव्यवस्था को लाभ ज़रूर हुआ।
ढाँचागत सुविधाओं का विकास
चीनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का एक बहुत बड़ा कारण इसका ढाँचागत सुविधाओं का विकास करना रहा है, जो उसने अपने देश ही नहीं विदेशों में भी किया। इन परियोजनाओं से न केवल उत्पाद खप बढ़ती है बल्कि रोज़गार के नये मौके भी बनते हैं। ये परियोजनाएं एक बार फिर शुरू हो चुकी हैं और इसका असर साफ दिखने लगा है। इसका सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि इसने मांग व खपत बहुत बड़ी मात्रा में पैदा की है और उससे चीनी अर्थव्यवस्था को बहुत सहारा मिला है।
कोरोना महामारी के बीच ही जब चीन ने निर्यात बढ़ाना शुरू किया और आयात भी धीरे-धीरे होने लगा तो देश के तटीय इलाक़ों में सबसे पहले खपत बढ़ी।
बंदरगाह वाले शहरों, निर्यात प्रोसेसिंग ज़ोन वाले शहरों और जिन जगहों पर निर्यात से जुड़े लॉजिस्टक्स के काम होते थे, वहां खपत बढ़ी, मांग बढ़ी। बाद में मांग-खपत बढ़ने का यह सिलसिला तटीय इलाक़ों से निकल कर पूरे देश में बढ़ा।
आर्थिक गतिविधियाँ तेज़
अब स्थिति यह है कि जिस ऊहान में सबसे पहले कोरोना के मामले मिले थे, वहां भी मांग- खपत की स्थिति बहुत अच्छी है। वहां रेस्तरां वगैरह खुल गए हैं और उनमें अब भीड़ होने लगी है, लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है। चीन के पश्चिम प्रातों सिचुआन और चेंग्दू में भी स्थिति बदली हुई है। यही हाल दूसरे राज्यों का है। कुल मिला कर स्थिति यह है कि लगभग पूरे चीन में ही आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आई है।
इसका मतलब यह नहीं है कि चीन की आर्थिक गतिविधियाँ पहले की अपेक्षाओं और योजना के मुताबिक है। चीन के अर्थशास्त्रियों ने पिछले तीन महीने के लिए पहले 5.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया था, लेकिन यह 5.2 प्रतिशत से ऊपर नहीं बढ़ सका।
इसके बावजूद शंघाई, शेनज़ेन और हांगकांग के शेयर बाज़ारों में कारोबार अच्छा हो रहा है और सूचकांक भी ऊपर जा रहा है।
पटरी पर लौटी अर्थव्यवस्था
चीनी अर्थव्यस्था के पटरी पर लौटने के दूसरे इन्डीकेटर भी सकारात्मक नतीजे दिखा रहे हैं। सितंबर महीने में खुदरा बिक्री में 3.3 प्रतिशत और औद्योगिक उत्पादन में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।चीनी अर्थव्यवस्था का दूसरा पक्ष भी है, जो नकारात्मक है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, इस दौरान चीनी सरकार का क़र्ज बेतहाशा बढ़ा है। उस पर सरकार को ब्याज के रूप में अच्छी ख़ासी रकम चुकानी होगी।
कमज़ोरियाँ
दूसरी दिक्क़त यह है कि चीनी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा निर्यात-आधारित है। कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा इससे आता है। यह अमेरिका जैसी स्थापित और सुदृढ़ अर्थव्यवस्थाओं का लगभग दूना है।निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था के साथ दिक्क़त यह है कि यह दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था पर अधिक निर्भर है। इसके अलावा राजनीतिक व दूसरे कारणों से भी वह प्रभावित होता है। ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका से चीन के खराब रिश्ते और ’अमेरिका फर्स्ट’ के नारे से हुए नुक़सान से इसे समझा जा सकता है।
बचत पर जोर
चीनी अर्थव्यवस्था के साथ यह भी गड़बड़ी है कि वहां लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य व बुढापे के लिए बचत करना होता है। कम्युनिस्ट व्यवस्था होने के बावजूद राज्य अब इन चीजों की गारंटी नहीं देता है। चीनी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा 40 के पार है, बुढ़ापे की ओर बढ़ रहा है। उसे अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है, वह वर्ग अधिक खर्च नहीं कर सकता, उसै पैसे बचाने हैं। खपत-मांग की दिशा में यह बड़ी अड़चन है।कोरोना के दौरान चीनी सरकार ने आम लोगों की मदद करने की कोशिश की है, पर वह मुख्य रूप से बैंकों से कर्ज़ और टैक्स में छूट के रूप में ही है। उसने लोगों को नकद पैसे नहीं दिए हैं। विदेशों में काम कर रहे चीनी आप्रावसियों के भेजे गये पैसे से अर्थव्यवस्था को बड़ी ताक़त मिलती थी, उसमें कमी आई है।
इन दिक्क़तों के बावजूद यदि चीनी अर्थव्यवस्था ने पिछली तिमाही में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है और समझा जाता है कि वार्षिक वृद्धि 1.9 प्रतिशत हो जाएगी तो बड़ी बात है।
क्या सीखे भारत
सवाल यह है कि भारत इससे क्या सीख सकता है और कहां से और कैसे शुरुआत कर सकता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने काफी ढोल पीट कर लगभग 20 लाख करोड़ रुपए के कोरोना आर्थिक पैकेज का एलान किया। पर उसमें से लगभग 18 लाख करोड़ रुपए बैंक गारंटी के रूप में ही था।
सवाल यह है कि यदि मांग नहीं निकलेगी तो लोग बैंक से क़र्ज़ क्यों और कैसे लेंगे। इससे मांग-खपत निकलने की गुंजाइश नहीं होगी। ऐसा ही हुआ। मांग-खपत नहीं निकली, अर्थव्यवस्था को समर्थन नहीं मिला।
हालांकि भारत सरकार ने लोगों के बैंक खातों में नकद पैसे डाले हैं, किसानों को कुछ पैसे दिए हैं और मनरेगा से कुछ लोगों को सहारा भी मिला है। लेकिन यह इतना बड़ा नहीं हुआ कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आए।
भारत की दिक्क़तें
भारत में यदि ढाँचागत सुविधाओं का विकास कार्य शुरू हो तो चीन की तरह मांग-खपत निकल सकता है, लेकिन उसके लिए ज़रूरी पैसे सरकार के पास नहीं है क्योंकि आर्थिक बदहाली कोरोना के बहुत पहले से है।निर्यात बढ़ सकता है, लेकिन जिन देशों को यह निर्यात कर सकता है, वहां स्थिति बदतर है। चीन से आर्थिक स्थिति रिश्ते ठीक रहते तो उसी से कुछ आयात-निर्यात का सहारा मिल सकता था। लेकिन अब ऐसा भी नहीं है।
ऐसी स्थिति में भारत के नीति-निर्धारकों को यह सोचना होगा कि वे क्या करें कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटे।