कुन्नूर हेलीकॉप्टर हादसे में मारे गए सीडीएस बिपिन रावत के अंतिम दर्शन के लिए जब किसान नेता राकेश टिकैत पहुंचे तो वहां मौजूद चंद लोगों ने उनके ख़िलाफ़ मुर्दाबाद के नारे लगाए। नारे लगाने वाले ये लोग चंद ही थे लेकिन इनके मन में टिकैत के ख़िलाफ़ ज़हर किसने भरा, ये बड़ा सवाल है।
इसे समझने के लिए थोड़ा विश्लेषण करते हैं। 2014 में केंद्र में बीजेपी की हुकू़मत आने के बाद से ही हर उस शख़्स को जो मोदी सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाए, उसे देश विरोधी बताने का अभियान सोशल मीडिया पर छेड़ दिया गया जो आज भी जारी है।
इसमें शाहीन बाग़ के साथ ही किसान आंदोलन में शामिल लोगों, विपक्षी नेताओं, सरकार के ख़िलाफ़ बोलने वाले तमाम पत्रकारों, सामाजिक मुद्दों पर आवाज़ उठाने वाले लोगों को शामिल किया जा सकता है। इन्हें सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों पर देश का गद्दार बताने का कुचक्र रचा गया।
किसान आंदोलन जब मोदी सरकार के गले की हड्डी बन गया था तो किसानों के ख़िलाफ़ खालिस्तानी, विदेशों से पैसा लेकर देश को कमजोर करने के आरोप ख़ुद बीजेपी के बड़े नेताओं ने खुलकर लगाए।
सोशल मीडिया पर फर्जीवाड़े की दुकान चलाने वालों ने इस तरह समाज के एक वर्ग को अपने साथ ले लिया।
किसान आंदोलन के दिनों में जब राकेश टिकैत मोदी सरकार के लिए मुसीबत बन गए तो उन्हें भी देशद्रोही, गद्दार बताया जाने लगा। और नफ़रती प्रचार तंत्र की चपेट में आए लोग जनरल रावत की विदाई के संवेदनशील मौक़े पर उस ज़हर को उगल बैठे।
क्योंकि दक्षिणपंथियों की लाइन वही है कि जो भी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बोले, उसे देशद्रोही बताना शुरू कर दो।
निश्चित रूप से अपने विरोधियों को विलेन साबित करने की यह ख़तरनाक तरकीब है लेकिन किसान आंदोलन के दौरान जनवादी ताक़तों ने इसे साबित किया है कि अवाम जब इकट्ठा हो जाती है तो इस तरह के नफ़रती तंत्र चलाने वालों को मैदान छोड़कर भागना पड़ता है।
दक्षिणपंथियों की इन हरक़तों का जवाब देने के लिए सोशल मीडिया पर एक मज़बूत विपक्ष तैयार हो चुका है, जो उनकी खोखली बातों और ज़हर उगलने की मशीन को एक्सपोज कर रहा है।