देश सबसे बुरी आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बरक़रार है। यदि इस समय चुनाव हों तो बीजेपी एक बार फिर जीतेगी। वीएमआर के सर्वे से यह बात सामने आई है।
‘फ़र्स्टपोस्ट’ ने ख़बर दी है कि वीएमआर ने 5,000 लोगों का सर्वे किया और उनसे कई तरह के सवाल किए, उसके बाद निष्कर्ष निकाला। इस सर्वे में 35.50 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति पहले की तरह ही है।
लगभग 28.5 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है या उनकी स्थिति बदतर हुई है। सिर्फ 7 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि उनकी स्थिति पहले से बहुत खराब हुई है। मध्यवर्ग के ऊपरी स्तर के लोगों ने कहा है कि उनकी स्थिति बेहतर हुई है। लेकिन निम्न-मध्यवर्ग के लोग आर्थिक स्थिति को लेकर खुश नहीं है।
खर्च करने की प्राथमिकता
जब सर्वे में शामिल लोगों से पूछा गया कि यदि उन्हें एक लाख रुपए दे दिए जाएं तो वे क्या करेंगे, इस सवाल का जवाब अलग-अलग समुदाय के लोगों ने अलग-अलग तरीके से दिया। लगभग 62 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे पैसे बचा लेंगे, खर्च नहीं करेंगे।इसके अलावा 17 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे इस पैसे से अपने पुराने कर्ज चुकाएंगे। सिर्फ 21 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे इस पैसे से कुछ खरीदेंगे।
ज़्यादातर लोगों ने कहा कि वे अतिरिक्त पैसे खाने-पीने की चीजों पर खर्च करेंगे, कुछ लोगों ने कहा कि वे कपड़े वगैरह खरीदेंगे तो कुछ लोगों ने यह भी कहा कि वे उस पैसे से घर खरीदेंगे।
यानी कुल मिला कर स्थिति यह है कि जो लोग अतिरिक्त पैसे खर्च करेंगे, वे भी रोटी-कपड़ा-मकान जैसी बुनियादी चीजों पर ही खर्च करेंगे।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को राहत नहीं
सर्वे से यह पता चलता है कि व्हाइट गुड्स यानी फ्रिज, टेलीविज़न जैसी चीजों पर सबसे बुरा असर पड़ेगा। लोगों ने इन चीजों की खरीद में दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसी तरह कार या ट्रैक्टर जैसी चीजों की खरीद लोगों की प्राथमिकता में सबसे नीचे है। इससे यह तो साफ़ है कि लोग पैसे मिलने पर भी उपभोक्ता वस्तु खरीदने को प्राथमिकता नहीं देंगे।
उपभोक्ता वस्तुओं की माँग बढ़ने पर ही मैन्युफ़ैक्चरिंग क्षेत्र आगे बढ़ता है। लेकिन आज की स्थिति में लोग उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, यानी मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर के आगे बढ़ने की फ़िलहाल बहुत गुंजाइश नहीं है।
वीएमआर के सर्वेक्षण से यह भी संकेत मिलता है कि लोगों की जेब में पैसे डालने की ज़रूरत है। पर महात्मा गाँधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना यानी मनरेगा से बहुत फ़ायदा नहीं होने को है। इसकी वजह यह है कि मनरेगा स्कीम के तहत समाज के एकदम निचले वर्ग को पैसे मिलते हैं क्योंकि वे ही इस तरह का काम करने में दिलचस्पी लेते हैं। उन्हें जो पैसे मिलते हैं, वे उसे खाने-पीने की चीजों पर खर्च करते हैं। यह तबक़ा उपभोक्ता वस्तुओं पर पैसे खर्च नहीं करता है। इसलिए इस स्कीम में पैसे डालने से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बल नहीं मिलेगा।