सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लिए गए मामलों में से कितने में आए फ़ैसले?

02:41 pm Aug 20, 2024 | सत्य ब्यूरो

कोलकाता दुष्कर्म-हत्या के मामले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 10 मामलों में स्वत: संज्ञान लिया है। हालाँकि उनमें से अधिकांश अनिर्णायक रहे हैं। सबसे ताज़ा मामला आरजी कर अस्पताल की घटना ही है। इस मामले में मंगलवार को सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने सुनवाई की। 

सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में मेडिकल प्रोफेशनल की सुरक्षा तय करने और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स गठित करने का प्रस्ताव रखा। सीजेआई ने कहा कि अस्पताल पूरे दिन और रात खुले रहते हैं, डॉक्टर चौबीसों घंटे काम करते हैं व अक्सर मरीजों और उनके परिवारों से दुर्व्यवहार का सामना करते हैं और उन्हें सुरक्षा की ज़रूरत होती है। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के डॉक्टरों से स्वास्थ्य सेवाओं में गिरावट के कारण अपनी हड़ताल खत्म करने को कहा। अदालत ने कहा, 'हम चाहते हैं कि वे हम पर भरोसा करें। उनकी सुरक्षा और सुरक्षा सर्वोच्च राष्ट्रीय चिंता का विषय है।'

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई से स्थिति रिपोर्ट मांगी है। सीबीआई को 14 अगस्त को आरजी कर अस्पताल में हुए भीड़ के हमले और हिंसा पर भी जानकारी देने के लिए कहा गया है। इस मामले में अभी आगे सुनवाई होनी है।

इस साल स्वत: संज्ञान लिए गए 10 मामलों में से एक मामले में तो फ़ैसला एक दिन पहले ही आया है। कलकत्ता हाई कोर्ट के एक अन्य फैसले में किशोरियों से अनावश्यक रूप से यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने के लिए कहा गया था, क्योंकि समाज की नजर में जब वे मुश्किल से दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए झुक जाती हैं, तो वे हार जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कार्यवाही का शीर्षक 'किशोरियों की निजता के अधिकार के संबंध में' रखा और टिप्पणियों को हटा दिया। मई महीने में इस पर फ़ैसला सुरक्षित रखा गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता हाई कोर्ट के 2023 के उस फ़ैसले को खारिज कर दिया, जिसमें किशोरियों को यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह दी गई थी। हाईकोर्ट के 18 अक्टूबर, 2023 के फैसले को खारिज करते हुए जस्टिस एएस ओका और उज्जल भुइयां की दो जजों की बेंच ने कहा कि उसने पोक्सो एक्ट और भारतीय दंड संहिता के तहत आरोपी की सजा को बहाल कर दिया है।

पश्चिम बंगाल सरकार ने भी कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ अपील दायर की।

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार 1991-2022 के बीच इसने 50 से अधिक मामलों का स्वत: संज्ञान लिया, जिनमें से 10 तो 2020 में कोविड महामारी के कहर से जुड़े थे। इसमें दिल्ली और अन्य राज्यों को ऑक्सीजन की आपूर्ति का जायजा लेना, मरीजों को उचित स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना और अस्पतालों में शवों को सम्मानजनक तरीक़े से संभालना, चुनौतीपूर्ण समय में अथक परिश्रम करने वाले डॉक्टरों को पर्याप्त आराम सुनिश्चित करना, न्यायपालिका को वर्चुअल मोड के माध्यम से कार्यात्मक रखना और सरकारों से कोविड से अनाथ हुए बच्चों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिए कहना शामिल था। 

रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष का पहला स्वत: संज्ञान दीवानी मामला 28 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दर्ज किया गया था, जब इसने जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय के उस आदेश पर स्थायी रूप से रोक लगा दी थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के महासचिव से सीजेआई के समक्ष रखे गए दस्तावेज उन्हें भेजने के लिए कहा गया था।

गंगोपाध्याय ने तब से कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दे दिया है और भाजपा के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए हैं।

न्यायपालिका में विकलांग और दृष्टिबाधित व्यक्तियों की भर्ती से संबंधित सुप्रीम कोर्ट द्वारा दो और स्वत: संज्ञान कार्यवाही शुरू की गई थी। अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर जिला बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ़ कार्यवाही की थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों पर कथित हमला करने का आरोप लगाया गया था, जो हड़ताल के आह्वान के बावजूद ट्रायल कोर्ट में पेश हुए थे। मई में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बॉम्बे हाई कोर्ट को एक नई इमारत में स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए स्वतः संज्ञान कार्यवाही शुरू की थी।

सीजेआई के समक्ष पिछली स्वतः संज्ञान कार्यवाही पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायाधीश राजबीर सेहरावत के दुस्साहसिक आदेश को लेकर थी। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय की बुद्धिमत्ता और महिमा पर संदेह जताया था। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीश की अनुचित टिप्पणियों को चेतावनी के साथ हटा दिया था। 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन मामलों में स्वतः संज्ञान लिया, जिनमें से एक सरिस्का टाइगर रिजर्व के प्रबंधन और उसके अंदर एक मंदिर से संबंधित था। 

एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा छह महिला न्यायिक अधिकारियों की सेवाएं समाप्त करने का स्वतः संज्ञान लिया। हालांकि कार्यवाही पिछले साल 17 दिसंबर को शुरू की गई थी, लेकिन जस्टिस बी वी नागरत्ना की अगुवाई वाली बेंच अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है।