पेगासस स्पाइवेयर से कथित जासूसी मामले की जाँच की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच इस पर फ़ैसला देगी। इस मामले की जाँच की मांग के लिए हाल के दिनों में कई याचिकाएँ दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में अन्य सभी के अलावा सुप्रीम कोर्ट से जुड़े लोगों के कथित जासूसी कराए जाने का भी हवाला दिया गया है। अब ताज़ा रिपोर्ट में तो कहा गया है कि पेगासस के निशाने पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा, मौजूदा रजिस्ट्री के लोग सहित कई नामी वकील भी निशाने पर थे।
इजरायली कंपनी एनएसओ के स्पाइवेयर से कथित जासूसी के मामले की जाँच के लिए एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, एन राम व शशि कुमार, परंजॉय गुहा ठाकुरता व चार अन्य लोग, सीपीएम के एक सांसद और वरिष्ठ वकील एम एल शर्मा ने भी अलग-अलग याचिकाएँ दायर की हैं।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने याचिका में विशेष जाँच दल यानी एसआईटी से इसकी जाँच कराने की मांग की है। इसने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह सरकार से स्पाइवेयर सौदे की जानकारी और निशाना बनाए गए लोगों की सूची मांगे।
इजरायली स्पाइवेयर द्वारा निगरानी के लिए निशाने पर रहे परंजॉय गुहा ठाकुरता और चार अन्य ने मांग की है कि स्पाइवेयर के उपयोग को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया जाए। याचिका में कहा गया है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा निगरानी के अनधिकृत उपयोग से संविधान के तहत गारंटी दिए गए उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार ने याचिका में पेगासस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त जज से कराए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि दुनिया भर के कई प्रमुख प्रकाशनों से जुड़ी वैश्विक जाँच से पता चला है कि भारत में 142 से अधिक व्यक्तियों को पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी के संभावित लक्ष्य के रूप में पहचाना गया था। उसमें यह भी कहा गया कि उस स्पाइवेयर के संभावित टार्गेट किए गए कुछ मोबाइल फ़ोन की फ़ोरेंसिक जाँच में भी पेगासस के हमले के निशान मिले हैं।
एन राम और शशि कुमार की याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट को सरकार को यह खुलासा करने का निर्देश देना चाहिए कि क्या उसने स्पाइवेयर के लिए लाइसेंस प्राप्त किया है या इसका इस्तेमाल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह की निगरानी के लिए किया है।
इस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने को लेकर केरल के सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास याचिका दायर कर चुके हैं।
सांसद ने द वायर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि उन नंबरों में से एक नंबर सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के नाम पर पंजीकृत है और यह न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के बराबर है और यह अभूतपूर्व व चौंकाने वाला है।
सांसद की याचिका में कहा गया है कि सरकार ने न तो स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है कि स्पाइवेयर उसकी एजेंसियों द्वारा खरीदा और इस्तेमाल किया गया था। बता दें कि सरकार ने एक बयान में कहा है कि उसकी एजेंसियों द्वारा कोई अनधिकृत रूप से इन्टरसेप्ट नहीं किया गया है और विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।
सबसे पहले वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में कथित पेगासस जासूसी मामले की जाँच के लिए याचिका दायर की थी। मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए एमएल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, 'पेगासस घोटाला गंभीर चिंता का विषय है और भारतीय लोकतंत्र, न्यायपालिका और देश की सुरक्षा पर गंभीर हमला है। निगरानी का व्यापक और ग़ैर-जवाबदेह उपयोग नैतिक रूप से भ्रष्ट है।'
बता दें कि 'द गार्डियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'द वायर' सहित दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है। एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। 'द वायर' के अनुसार इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। जो नंबर पेगासस के निशाने पर थे वे विपक्ष के नेता, मंत्री, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं।