भारत ने माना- रूस के लिए लड़ते हुए 12 भारतीय मारे गये, 16 लापता

06:15 pm Jan 17, 2025 | सत्य ब्यूरो

भारतीय विदेश मंत्रालय (एमईए) ने शुक्रवार को बताया कि चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में कम से कम 12 भारतीय मारे गए हैं, जबकि 16 अन्य लापता हैं। मंत्रालय ने कहा, मारे गये भारतीय युवक रूस की ओर से लड़ रहे थे।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, अभी तक, 126 मामले (रूसी सेना में सेवारत भारतीय नागरिकों के) सामने आए हैं। इन 126 मामलों में से 96 लोग भारत लौट आए हैं और उन्हें रूसी सशस्त्र बल से छुट्टी दे दी गई है। रूसी सेना में 18 भारतीय नागरिक बचे हैं और उनमें से 16 व्यक्तियों के बारे में पता नहीं है।"

जयसवाल ने कहा, "रूस ने उन लोगों को लापता की सूची में डाला है।... हम बचे हुए लोगों की जल्द रिहाई और स्वदेश वापसी की मांग कर रहे हैं... 12 भारतीय नागरिकों की मौत हो गई है जो रूसी सेना में सेवारत थे।"

मंगलवार को विदेश मंत्रालय ने कहा था कि मॉस्को में भारतीय दूतावास भारतीयों के परिवारों के संपर्क में है और हर संभव सहायता दी जा रही है। जयसवाल ने कहा, "हमें केरल के एक भारतीय नागरिक की दुर्भाग्यपूर्ण मौत के बारे में पता चला है, जो जाहिर तौर पर रूसी सेना में सेवा के लिए भर्ती हुआ था।"

विदेश मंत्रालय की यह प्रतिक्रिया यूक्रेन के साथ रूस के चल रहे संघर्ष के दौरान रूसी सेना द्वारा भर्ती किए गए एक भारतीय नागरिक की मौत और एक अन्य के घायल होने के बाद आई है। 

केरल के बिनिल बाबू की यूक्रेन संघर्ष के दौरान मौत हो गई थी। अभी तक उनका पार्थिव शरीर वापस नहीं लाया जा सका है। भारत ने कहा कि वो रूसी अधिकारियों के संपर्क में है। एक अन्य भारतीय नागरिक जैन टीके का मॉस्को में इलाज चल रहा है और इलाज पूरा होने के बाद उनके भारत लौटने की उम्मीद है। एक अन्य व्यक्ति जो घायल हुआ है उसका मॉस्को में इलाज चल रहा है। भारत को उम्मीद है कि इलाज पूरा होने के बाद वह भी जल्द ही लौट आएगा।

यूक्रेन में चल रहे संघर्ष ने न केवल प्रमुख विश्व शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक (जियो पॉलिटिक्स) मतभेदों को उजागर किया है, बल्कि विशेष रूप से दक्षिण एशिया से आर्थिक प्रवासियों के सामने आने वाली कमजोरियों को भी उजागर किया है। भारतीय नागरिकों को रूसी सेना में शामिल किए जाने की परेशान करने वाली प्रवृत्ति एक काले पक्ष को दर्शाती है, जहां भू-राजनीतिक रणनीतियां तमाम देशों में गरीबी और आर्थिक हताशा का फायदा उठाती हैं।

रूस की भर्ती रणनीति, जिसने आकर्षक रोजगार के अवसरों की आड़ में भारतीय युवकों को फंसाया है। यह अनैतिक है। लेकिन भारत इसे शुरुआत में ही नहीं रोक पाया। शुरुआत में इन युवकों को गैर-लड़ाकू भूमिका में "सेना सहायक" के रूप में भर्ती किया गया, लेकिन बाद में भारतीयों से रूसी में अनुबंध पर हस्ताक्षर करने को कहा गया। उन्होंने उस भाषा को समझा नहीं। और बाद में उन्हें सक्रिय सैना में धकेल दिया गया। सैन्य उद्देश्यों के लिए श्रम का यह हेरफेर न केवल नैतिक भर्ती प्रथाओं का उल्लंघन है, बल्कि भारत के मानव संसाधनों का दुरुपयोग भी है जिसे रूस एक रणनीतिक भागीदार मानता है।

बढ़ते घरेलू दबाव और अंतरराष्ट्रीय जांच के बीच भारत सरकार ने बयान जारी कर अपने नागरिकों के बचाव और सुरक्षित वापसी की सुविधा देने का वादा किया। लेकिन इन आश्वासनों के बावजूद, ठोस कार्रवाइयों से नतीजे नहीं आये। प्रभावित लोगों के परिवार भारत सरकार की ओर से निर्णायक कार्रवाई की कमी के कारण निराशा की स्थिति में हैं।

इसराइल के लिए भी दरवाजे खोले

6,000 भारतीय युवकों को इसराइल भेजने के फैसले को सही किस तरह ठहराया जा सकता है। इसराइल-हमास संघर्ष के बीच फिलिस्तीनी मजदूरों की जगह भारतीयों को रखने के लिए यह फैसला इसराइल ने किया था। लेकिन अब भारतीय युवकों की इसराइल में सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं हैं। 

एक तरफ तो भारत सरकार इसराइल के लिए यात्रा सलाह (ट्रैफिक एडवाइजरी) जारी करती है कि वहां न जायें। लेकिन दूसरी तरफ अपने युवकों की इसराइल में भर्ती और बाद में गजा में तैनाती पर चुप रहती है। यह क्या है।आखिर इसराइल को भारत में आकर युवकों की भर्ती का रास्ता किसने बनाया। क्या भारत सरकार की मर्जी के बिना रूस और इसराइल भारत आकर बेरोजगार युवकों की भर्ती कर सकते हैं। भारत ने अपने बदतर बेरोजगारी के आंकड़ों को छिपाने या युवकों को चुप कराने के लिए यह मंजूरी दी। मोदी सरकार इसे स्वीकार करे।

रूस और इसराइल में भारतीय श्रमिकों के दोहरे मापदंड कुछ सोचने को मजबूर करते हैं कैसे अक्सर जियो पॉलिटिक्स में लाभ के लिए आर्थिक हताशा और किसी देश की गरीबी का फायदा उठाया जाता है। दोनों ही मामलों में, बेहतर जीवन की तलाश करने वाले श्रमिक बड़ी भू-राजनीतिक संस्थाओं द्वारा हेरफेर किए जाने पर खुद को अनिश्चित परिस्थितियों में पाते हैं। यह शोषण लोगों को अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में शामिल होने से बचाने में मेजबान और घरेलू देशों दोनों की नैतिक जिम्मेदारियों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है।

रूस और इसराइल में भारतीय श्रमिकों के मामले सभी श्रमिकों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए व्यापक उपायों की तत्काल जरूरत को बताते हैं। भारत सरकार यह सुनिश्चित करे कि आर्थिक अवसरों की उनकी खोज उन्हें खतरनाक या शोषणकारी स्थितियों में न ले जाए। यह संकट केवल राष्ट्रीय चिंता का विषय नहीं है, बल्कि एक ग्लोबल मानवीय मुद्दा है। इसमें शामिल सभी सरकारों से लेकर संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था से ठोस प्रयासों और उपायों की दरकार है।