लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बुधवार को संविधान पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणियों को लेकर उन पर निशाना साधा और उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया।
राहुल गांधी ने यह हमला कांग्रेस के एक कार्यक्रम में भाषण देते समय किया। दिल्ली में कांग्रेस के नए मुख्यालय के उद्घाटन पर बोलते हुए, राहुल ने कहा: "मुझे लगता है कि यह काफी प्रतीकात्मक है कि कल, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत को 1947 में कभी आजादी नहीं मिली। उन्होंने कहा कि सच्ची आजादी तब मिली जब राम मंदिर बनाया गया।" भागवत ने संविधान पर भी हमला किया था, जब उन्होंने कहा कि यह हमारी आजादी का प्रतीक नहीं है।
कांग्रेस सांसद ने कहा: “मोहन भागवत ने देश को यह बताने की जुर्रत की है कि वो स्वतंत्रता आंदोलन और संविधान के बारे में क्या सोचते हैं। वास्तव में, उन्होंने जो कहा वह देशद्रोह है क्योंकि उन्होंने कहा कि हमारा संविधान अमान्य है... कोई और देश होता तो अब तक उन्हें गिरफ्तार करके उन पर मुकदमा चला रहा होता। यह कहना कि भारत को 1947 में आज़ादी नहीं मिली, हर भारतीय का अपमान है। और हमें इसे सुनना बंद करना होगा।”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को दावा किया था कि भारत ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण दिवस पर अपनी 'सच्ची आजादी' हासिल की। उनके मुताबिक राम मंदिर निर्माण की तिथि को ''प्रतिष्ठा द्वादशी'' के रूप में मनाया जाना चाहिए। भागवत ने सोमवार को इंदौर में कहा था- “15 अगस्त, 1947 को भारत को अंग्रेजों से राजनीतिक आजादी मिलने के बाद, देश से निकले उस खास नजरिये के दिखाए रास्ते के अनुसार एक लिखित संविधान बनाया गया, लेकिन दस्तावेज़ के अनुसार नहीं चलाया गया।” (हालांकि कई शहादतों और महात्मा गांधी-नेहरू के लंबे अहिंसा आंदोलन के बाद भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी हासिल हुई। लेकिन आरएसएस की नजर में उसका कोई महत्व नहीं है। )
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आज जो लोग सत्ता में हैं, वे तिरंगे को सलाम नहीं करते... उनके पास भारत के बारे में कांग्रेस की तुलना में बिल्कुल अलग नजरिया है। वे चाहते हैं कि भारत एक संदिग्ध, गुप्त समाज द्वारा चलाया जाए।
-राहुल गांधी, नेता विपक्ष, 15 जनवरी 2025 इंदिरा भवन के उद्घाटन पर सोर्सः पीटीआई
आरएसएस प्रमुख पर अपना हमला जारी रखते हुए राहुल ने कहा, '' वे दलितों, अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों की आवाज को कुचलना चाहते हैं... इस देश में कांग्रेस के अलावा कोई अन्य पार्टी नहीं है जो उन्हें रोक सके। हमारी विचारधारा हजारों साल पुरानी है और भाजपा और आरएसएस से बहुत अलग है।''
कांग्रेस सांसद ने बीजेपी और आरएसएस पर देश की सभी संस्थाओं पर कब्जा करने का भी आरोप लगाया। राहुल ने कहा- “पिछली कार्य समिति की बैठक में, मैंने महाराष्ट्र चुनावों के बारे में अपनी चिंताएँ व्यक्त की थीं… लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच नए मतदाता कैसे सामने आए। आजकल चुनाव आयोग जिस तरह से चुनाव करा रहा है, उससे हम खुश नहीं हैं।''
राहुल ने नए मुख्यालय के उद्घाटन पर सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को बधाई भी दी। उन्होंने कहा, ''यह हमारे देश की मिट्टी और लाखों लोगों की कड़ी मेहनत और बलिदान से उभरा है।''
आरएसएस, सावरकर और अंग्रेज
भारत के महान स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर आखिर आरएसएस इस तरह की बयानबाजी या साजिश क्यों करता रहता है। यह बात स्पष्ट है कि आरएसएस को विरासत में न तो भगत सिंह, न ही आंबेडकर, न ही गांधी और न ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस मिले। उनकी विरासत में सावरकर से लेकर तमाम ऐसे लोग मिले जो जिन्ना की दो राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन करते थे। जिन्होंने जिन्ना की पार्टी के साथ मिलकर अंग्रेजों के समय में बंगाल में सरकार भी चलाई। जिनके नेताओं ने अंग्रेजों से पेंशन भी पाई। नेता विपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने आरएसएस पर ऐसे ही हमला नहीं बोला था।
राहुल संघ पर आक्रामकः राहुल गांधी ने अक्टूबर 2022 में कहा था कि कांग्रेस के नेताओं ने आजादी की लड़ाई लड़ी और कई साल तक जेल में रहे। ऐसे नेताओं में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल आदि नेताओं के नाम हैं लेकिन जितना इतिहास उन्होंने पढ़ा है उसके मुताबिक, आरएसएस उस दौरान अंग्रेजों की मदद कर रहा था। राहुल गांधी ने कहा कि सावरकर को अंग्रेजों से भत्ता मिलता था और यह सभी ऐतिहासिक तथ्य हैं और बीजेपी इन्हें छुपा नहीं सकती है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देश की आजादी के लिए बड़ा आंदोलन खड़ा किया और संविधान बनाया जबकि आजादी की लड़ाई के दौरान बीजेपी कहीं नहीं थी। बीजेपी इस देश को बांट रही है और देश में नफरत फैला रही है।
आरएसएस और तिरंगा
तिरंगे झंडे को सम्मान न देने के आरोपों में घिरे आरएसएस ने अगस्त 2022 में अपने सोशल मीडिया एकाउंट की डीपी पर भगवा झंडे की जगह तिरंगा का फोटो लगा दिया। 52 वर्षों तक आरएसएस ने अपने नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया था। इस पर जब सवाल उठे तो दबाव में आरएसएस को नागपुर मुख्यालय में तिरंगा भी फहराना पड़ा। 26 जनवरी 2001 को तीन युवकों ने आरएसएस मुख्यालय में घुस कर जबरन तिरंगा फहराया। तीनों पर एफआईआर की गई। लेकिन 2013 में उन्हें बरी कर दिया गया। क्योंकि आरएसएस को डर था कि अगर यह मुकदमा चला और युवकों को सजा हुई तो संघ की बदनामी होगी। इसलिए संघ ने उस मुकदमे में दिलचस्पी लेना बंद कर दिया। लेकिन इस घटना का नतीजा यह निकला कि आरएसएस ने संघ मुख्यालय में 26 जनवरी 2002 को पहली बार विधिवत तिरंगा फहराया और अब हर साल वहां तिरंगा फहराया जा रहा है।आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने कभी बाबा साहब अंबेडकर का विरोध भी किया था। उसने बाकायदा संपादकीय लिखकर संविधान का विरोध किया था। उसने कहा था हमे ऐसा संविधान नहीं चाहिए, जिसमें मनु स्मृति से कुछ भी नहीं लिया गया है। आरएसएस चाहता है कि भारत को मनुस्मृति के हिसाब से चलाया जाए। आरएसएस प्रमुख भागवत एससी-एसटी आरक्षण का भी विरोध कर चुके हैं। लेकिन जब उनके बयान की निन्दा हुई तो उन्होंने आरक्षण विरोधी बयान को वापस ले लिया। कुल मिलाकर आरएसएस का नजरिया, नीतियां, कार्यक्रम भारत की विविधता भरी संस्कृति से मेल नहीं खाते।
(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)